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यजुर्वेद अध्याय - 31

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  • यजुर्वेद - अध्याय 31/ मन्त्र 10
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - पुरुषो देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    यत्पुरु॑षं॒ व्यद॑धुः कति॒धा व्य॑कल्पयन्।मुखं॒ किम॑स्यासी॒त् किं बा॒हू किमू॒रू पादा॑ऽउच्येते॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। पुरु॑षम्। वि। अद॑धुः। क॒ति॒धा। वि। अ॒क॒ल्प॒य॒न् ॥ मुख॑म्। किम्। अ॒स्य॒। आ॒सी॒त्। किम्। बा॒हूऽइति॑ बा॒हू। किम्। ऊ॒रूऽइत्यू॒रू। पादौ॑। उ॒च्ये॒ते॒ऽइत्यु॑च्येते ॥१० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्पुरुषँव्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् । मुखङ्किमस्यासीत्किम्बाहू किमूरू पादाऽउच्येते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। पुरुषम्। वि। अदधुः। कतिधा। वि। अकल्पयन्॥ मुखम्। किम्। अस्य। आसीत्। किम्। बाहूऽइति बाहू। किम्। ऊरूऽइत्यूरू। पादौ। उच्येतेऽइत्युच्येते॥१०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 31; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो! भवन्तो यद्यं पुरुषं व्यदधुस्तं कतिधा व्यकल्पयन्नस्य सृष्टौ मुखं किमासीद् बाहू किमुच्येते। ऊरू पादौ च किमुच्येते॥१०॥

    पदार्थः

    (यत्) यम् (पुरुषम्) पूर्णम् (वि) विविधप्रकारेण (अदधुः) धरन्ति (कतिधा) कतिप्रकारैः (वि) विशेषेण (अकल्पयन्) कथयन्ति (मुखम्) मुखस्थानीयं श्रेष्ठम् (किम्) (अस्य) पुरुषस्य (आसीत्) अस्ति (किम्) (बाहू) भुजबलभृत् (किम्) (ऊरू) जानुन ऊर्द्ध्वावयवस्थानीयम् (पादौ) नीचस्थानीयम् (उच्येते)॥१०॥

    भावार्थः

    हे विद्वांसोऽत्र संसारेऽसंख्यं सामर्थ्यमीश्वरस्यास्ति तत्र समुदाये मुखमुत्तमाङ्गं बाह्वादीनि चाङ्गानि कानि सन्ति इति ब्रूत॥१०॥

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    हिन्दी (5)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वान् लोगो! आप (यत्) जिस (पुरुषम्) पूर्ण परमेश्वर को (वि, अदधुः) विविध प्रकार से धारण करते हो, उसको (कतिधा) कितने प्रकार से (वि, अकल्पयन्) विशेषकर करते हैं और (अस्य) इस ईश्वर की सृष्टि में (मुखम्) मुख के समान श्रेष्ठ (किम्) कौन (आसीत्) है (बाहू) भुजबल का धारण करने वाला (किम्) कौन (ऊरू) घोंटू के कार्य्य करने हारे और (पादौ) पांव के समान नीच (किम्) कौन (उच्येते) कहे जाते हैं॥१०॥

    भावार्थ

    हे विद्वानो! इस संसार में असंख्य सामर्थ्य ईश्वर का है, उस समुदाय में उत्तम अङ्ग मुख और बाहू आदि अङ्ग कौन हैं? यह कहिये॥१०॥

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    पदार्थ

    पदार्थ = ( यत् ) = जिस  ( पुरुषम्  ) = पूर्ण परमात्मा को विद्वान् पुरुष  ( वि अदधुः ) = विविध प्रकारों से धारण करते हैं उसकी  ( कतिधा ) = कितने प्रकार से  ( वि अकल्पयन् ) = कल्पना करते हैं।  ( अस्य मुखम् किम् ) = इस ईश्वर की सृष्टि में मुख के समान श्रेष्ठ कौन  ( आसीत् ) = है  ( बाहू किम् ) = भुजबल का धारण करनेवाला कौन  ( ऊरू ) = जंघें  ( किम् ) = कौन हैं  ( पादौ ) = पाँव के समान  ( किम् ) = कौन  ( उच्येते ) = कहा जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ = इस जगत् में ईश्वर का सामर्थ्य असंख्य है,उस  समुदाय के उत्तम अंग मुख अर्थात् मुख्य गुणों से इस संसार में क्या उत्पन्न हुआ है ? बाहूबल, वीर्य्य, शूरता और युद्ध - विद्या आदि गुणों से कौन पदार्थ उत्पन्न हुआ है ? व्यापार, कृषि आदि मध्यम गुणों से किसकी उत्पत्ति हुई है ? मूर्खता आदि नीच गुणों से किसकी उत्पत्ति हुई है ? इन चार प्रश्नों के उत्तर आगे के मन्त्र में दिए हैं।

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    विषय

    पुरुष प्रजापति की विविध अंग की कल्पना और वर्णविषयक प्रश्न और उत्तर ।

    भावार्थ

    ( यत् ) जो विद्वान् ज्ञानी पुरुष ( पुरुषम् ) उस महान् पूर्ण, पुरुष का (वि अदधुः) विविध प्रकारों से वर्णन करते हैं, वे उसको (कतिधा) कितने प्रकार से( वि अकल्पयन् ) विभक्त करते या कल्पना करते हैं । (अस्य मुखम् किम् ) इसका मुख भाग क्या है ? ( बाहू किम् ) बाहुएं क्या हैं ( ऊरू किम् ) जांघें क्या हैं ? ( पादौ उच्येते) दोनों पैर क्या कहे जाते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृदनुष्टुप् । गान्धारः॥

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    विषय

    एक प्रश्न

    पदार्थ

    १. (यत्) = जब (पुरुषम्) = उस पुरुष प्रभु से (व्यदधुः) = ये 'देव, साध्य व ऋषि' (व्यकल्पयन्) = [वि+कल्पय्=सामर्थ्य] अपने को विशिष्ट सामर्थ्यवाला बनाते हैं। प्रभु के धारण से यह परिणाम निश्चित है कि प्रभु की शक्ति इन उपासकों को प्राप्त होती है। यहाँ जिज्ञासु के मन में यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि इस प्रभु के धारण करनेवाले को किस प्रकार का उत्कृष्ट सामर्थ्य प्राप्त होता है? २. इसी प्रश्न को जिज्ञासु कुछ विस्तार से इस प्रकार करता है कि [क] (अस्य) = इस प्रभु के धारण करनेवाले का (मुखम्) = मुख (किम् आसीत्) = क्या हो जाता है? [ख] (किं बाहू) = इसकी बहुएँ क्या बन जाती हैं? [ग] (किम् ऊरू) = इसकी जाँघें क्या हो जाती हैं? [घ] (पादा) = इसके पाँव (किम् उच्येते) = कैसे कहे जाते हैं? ३. यहाँ प्रश्न है कि यह प्रभु का धारण करनेवाला कैसा होता है। एक समान्य व्यक्ति के और इसके मुख में क्या अन्तर होता है? इसकी बाहुएँ क्या बन जाती हैं? इसकी जाँघों व पाँवों का क्या नाम पड़ जाता है ? सामान्य व्यक्ति के अङ्गों में क्या कमी होती है। जो इस प्रभु का पोषण करनेवाले में नहीं रहती ! इतनी बात तो ठीक है कि उसके अङ्ग शक्तिशाली बन जाते हैं, परन्तु ‘उनमें क्या शक्ति आ जाती है'? यह प्रश्न है, जिसका उत्तर अगले मन्त्र में देते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु को धारण करनेवाले मनुष्य के मुख आदि में एक विशेष शक्ति उत्पन्न हो जाती है, जो उसे सामान्य पुरुषों से विशिष्ट बना देती है।

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    मन्त्रार्थ

    (यत् पुरुषं व्यदधुः) जो यह परमात्मा को पुरुषरूप में देवान् की भांति आदि विद्वानों ने ऋषियों ने माना है (कतिधा-व्यकल्पयन्) उसे कितने विभागों में कल्पित किया है-समझा है । पुनः (स्य किं मुखम्) मानव जगत् में पूर्ण पुरुष का मुख क्या है-कौन मानव है, किस प्रकार का या कैसा मानव है । (किं बाहू) कौन भुजाएं हैं (क्रिम्-उरू) कौन जंघाऐं हैं,, और (पादौ-उच्येते) कौन पैर कहे जाते हैं ॥१०॥

    विशेष

    (ऋग्वेद मं० १० सूक्त ६०) ऋषि:- नारायणः १ - १६ । उत्तरनारायणः १७ – २२ (नारा:आपः जल है आप: नर जिसके सूनु है- सन्तान हैं, ऐसे वे मानव उत्पत्ति के हेतु-भूत, अयन-ज्ञान का आश्रय है जिसका बह ऐसा जीवजन्मविद्या का ज वाला तथा जनकरूप परमात्मा का मानने वाला आस्तिक महाविद्वान् ) देवता - पुरुष: १, ३, ४, ६, ८–१६। ईशानः २। स्रष्टा ५। स्रष्टेश्वरः ७। आदित्यः १७-१९, २२। सूर्य २०। विश्वे देवाः २१। (पुरुष- समष्टि में पूर्ण परमात्मा)

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे विद्वानांनो ! या जगात ईश्वराचे अनंत सामर्थ्य आहे. या जगात मुख, बाहू इत्यादी श्रेष्ठ अवयवाप्रमाणे कोण आहे? हे सांगा.

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    विषय

    पुनश्‍च, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे विद्वज्जनहो, (यत्) ज्या (पुरूषम्) पूर्ण परमेश्‍वराला तुम्ही (वि, अदधुः) विशेषत्वाने धारण करता (म्हणजे त्या विषयीचे संपूर्ण ज्ञान तुम्हाला आहे, तर त्याचे वर्णन (कतिधा) किती प्रकाराने (वि, अकल्पयन् सांगितले जाते (ते आम्हांस सांगा) (सांगा की) (अस्य) या ईश्‍वराच्या सृष्टीत (मुखम्) मुखाप्रमाणे श्रेष्ठ (क्किम्) कोण (आसीत्) आहे? (बाहू) भुजाप्रमाणे शक्ति धारण करणारा (किम्) कोण आहे? (उरू) जंघा वा (किम्) गुडघ्याप्रमाणे कार्य करणारा (किम्) कोण आणि (पादौ) पायाप्रमाणे निम्नस्थानी (किम्) असलेला (किम्) कोणाला (उच्यते) म्हटले जाते? (ते सांगा) ॥10॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे विद्वज्जनहो, या संसारात ईश्‍वराचे सामर्थ्य अमाप वा असंख्य आहे. त्या समुदायात (समाजात) उत्तम अंग मुख, बाहु आदी अंगे कोणती आहेत? ते सांगा. ॥10॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned people, ye realise the perfect God in diverse ways : and describe Him in manifold manners. In this creation of God, who is exalted like the mouth ? Who possesses the strength like arms ? Who does the work of thighs ? Who is low like the feet ?

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    Meaning

    How do the Rishis visualise the various manifestive modes of the Purusha? What was His mouth? What the arms? What the thighs? What are the feet as they are said to be?

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    Translation

    The Man (the mankind) they create, in what portions do they figurize it? Which are His mouth, which the two arms, which the two thighs and which are said to be His feet? (1)

    Notes

    Vyakalpayan, विविधं अकल्पयन्, figurized in different forms.

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    बंगाली (2)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে বিদ্বান্গণ ! আপনারা (য়ৎ) যে (পুরুষং) পূর্ণ পরমেশ্বরকে (বি, অদধুঃ) বিভিন্ন প্রকারে ধারণ করেন তাহাকে (কতিধা) কত প্রকারে (বি, অকল্পয়ন্) বিশেষ করিয়া করেন এবং (অস্য) এই ঈশ্বরের সৃষ্টিতে (মুখম্) মুখের সমান শ্রেষ্ঠ (কিম্) কে (আসীৎ) আছে (বাহূ) ভুজবলকে ধারণ করে (কিম্) কে (ঊরূ) ঊরূর কার্য্য কে করে এবং (পাদৌ) পায়ের সমান নীচ (কিম্) কে (উচ্যেতে) অভিহিত হয় ॥ ১০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে বিদ্বান্গণ ! এই সংসারে অসংখ্য সামর্থ্য ঈশ্বরের, সেই সমুদায় উত্তম অঙ্গ মুখ ও বাহূ আদি অঙ্গকে কী বলা হয়? ইহা বলুন ॥ ১০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ৎপুর॑ুষং॒ ব্যদ॑ধুঃ কতি॒ধা ব্য॑কল্পয়ন্ ।
    মুখং॒ কিম॑স্যাসী॒ৎ কিং বা॒হূ কিমূ॒রূ পাদা॑ऽউচ্যেতে ॥ ১০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়ৎপুরুষমিত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । পুরুষো দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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    পদার্থ

    যৎপুরুষং ব্যদধুঃ কতিধা ব্যকল্পয়ন্ ।

    মুখং কিমস্যাসীক্তিংবাহূ  কিমূরূ পাদাঽউচ্যতে।।৭১।।

    (যজু ৩১।১০)

    পদার্থঃ (যৎ) যে (পুরুষম্) পূর্ণ পরমাত্মাকে বিদ্বান ব্যক্তি (বি অদধুঃ) বিবিধ প্রকারে ধারণ করে তাঁকে (কতিধা) নানা প্রকারে (বি অকল্পয়ন্) কল্পনা করেন, (অস্য মুখম্ কিম্) এই ঈশ্বরের সৃষ্টিতে মুখের সমান শ্রেষ্ঠ কে? (আসীত্) হয় (বাহূ কিম্) বাহু সমান পরাক্রমকে ধারণকারী কে? (ঊরূ) উরুর (কিম্) তুল্য কে? (পাদৌ) পায়ের তুল্যই বা (কিম্) কে (উচ্যতে) বলা যায়।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে বিদ্বানগণ! এই সংসারে অশেষ সামর্থ্যগুণ ঈশ্বরের রয়েছে। সেই অসংখ্য সামর্থ্যের মধ্যে মুখের তুল্য কী উৎপন্ন হয়েছে? সে সমুদয় গুণের মধ্যে বাহু, উরু এবং পায়ের তুল্য কী উৎপন্ন হয়েছে? এর উত্তর পরের মন্ত্রে।।৭১।।

     

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