अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 16
ऋषिः - आदित्य
देवता - त्र्यवसाना सप्तदातिधृति
छन्दः - ब्रह्मा
सूक्तम् - अभ्युदयार्थप्रार्थना सूक्त
57
त्वं र॑क्षसेप्र॒दिश॒श्चत॑स्र॒स्त्वं शो॒चिषा॒ नभ॑सी॒ वि भा॑सि। त्वमि॒मा विश्वा॒ भुव॒नानु॑तिष्ठस ऋ॒तस्य॒ पन्था॒मन्वे॑षि वि॒द्वांस्तवेद्वि॑ष्णो बहु॒धावी॒र्याणि। त्वंनः॑ पृणीहि प॒शुभि॑र्वि॒श्वरू॑पैः सु॒धायां॑ मा धेहि पर॒मे व्योमन् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । र॒क्ष॒से॒ । प्र॒ऽदिश॑: । चत॑स्र: । त्वम् । शो॒चिषा॑ । नभ॑सी॒ इति॑ । वि । भा॒सि॒ । त्वम् । इ॒मा । विश्वा॑ । भुव॑ना । अनु॑ । ति॒ष्ठ॒से॒ । ऋ॒तस्य॑ । पन्था॑म् । अनु॑ । ए॒षि॒ । वि॒द्वान् । तव॑ । इत् । वि॒ष्णो॒ इति॑ । ब॒हु॒ऽधा । वी॒र्या᳡णि । त्वम् । न॒: । पृ॒णी॒हि॒ । प॒शुऽभि॑: । वि॒श्वऽरू॑पै: । सु॒ऽधाया॑म् । मा॒ । धे॒हि॒ । प॒र॒मे । विऽओ॑मन् ॥१.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं रक्षसेप्रदिशश्चतस्रस्त्वं शोचिषा नभसी वि भासि। त्वमिमा विश्वा भुवनानुतिष्ठस ऋतस्य पन्थामन्वेषि विद्वांस्तवेद्विष्णो बहुधावीर्याणि। त्वंनः पृणीहि पशुभिर्विश्वरूपैः सुधायां मा धेहि परमे व्योमन् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । रक्षसे । प्रऽदिश: । चतस्र: । त्वम् । शोचिषा । नभसी इति । वि । भासि । त्वम् । इमा । विश्वा । भुवना । अनु । तिष्ठसे । ऋतस्य । पन्थाम् । अनु । एषि । विद्वान् । तव । इत् । विष्णो इति । बहुऽधा । वीर्याणि । त्वम् । न: । पृणीहि । पशुऽभि: । विश्वऽरूपै: । सुऽधायाम् । मा । धेहि । परमे । विऽओमन् ॥१.१६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आयु की बढ़ती के लिये उपदेश।
पदार्थ
[हे परमेश्वर !] (त्वम्) तू (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) बड़ी दिशाओं की (रक्षसे) रक्षा करता है, (त्वम्) तू (शोचिषा) प्रकाश से (नभसी) सूर्य और पृथिवी में (वि) विविध प्रकार (भासि) चमकता है। (त्वम्) तू (इमा) इन (विश्वा) सब (भुवना अनु) भुवनों [लोकों]में (तिष्ठसे) ठहरता है, और (विद्वान्) जानता हुआ तू (ऋतस्य) सत्यधर्म के (पन्थाम्) मार्ग पर (अनु) लगातार (एषि) चलता है, (विष्णो) हे विष्णु ! [सर्वव्यापक परमेश्वर] (तव इत्) तेरे ही... [मन्त्र ६] ॥१६॥
भावार्थ
परमात्मा सब दिशाओंमें हमारी रक्षा करता है, सूर्य पृथिवी आदि लोकों में प्रकाश पहुँचाकर सबकाधारण करता है और सदा सत्य नियम पर चलता है, तुम उसी की आराधना से धर्मपथ पर चलकर अपनी उन्नति करो ॥१६॥
टिप्पणी
१६−(त्वम्) (रक्षसे) रक्षसि। पालयसि (प्रदिशः) प्रकृष्टादिशाः (चतस्रः) चतुःसंख्याकाः (त्वम्) (शोचिषा) प्रकाशेन (नभसी) सुपां सुलुक्०।पा० ७।१।३९। पूर्वसवर्णदीर्घः। ईदूतौ च सप्तम्यर्थे। पा० १।१।१९। इति प्रगृह्यम्।नभस्योर्द्यावापृथिव्योर्मध्ये (वि) विविधम् (भासि) दीप्यसे (त्वम्) (इमा)दृश्यमानानि (विश्वा) सर्वाणि (भुवना) लोकान् (अनु) प्रति (तिष्ठसे) वर्त्तसे (ऋतस्य) सत्यधर्मस्य (पन्थाम्) मार्गम् (अनु) निरन्तरम् (एषि) गच्छसि (विद्वान्)जानन् सन्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
ऋत के मार्ग के अनुपात में
पदार्थ
१. हे प्रभो! (त्वम्) = आप ही (चतस्त्रः प्रदिश:) = चारों प्रकृष्ट दिशाओं को-इन दिशाओं में स्थित प्राणियों को (रक्षसे) = रक्षित करते हैं। (त्वम्) = आप ही (शोचिषा) = दीप्ति से (नभसी) = द्युलोक व अन्तरिक्षलोक को (विभासि) = विशिष्टरूप से दीप्त करते हैं। २. (त्वम्) = आप (इमा) = इन (विश्वा भुवना) = सब लोकों में (अनुतिष्ठसे) = व्याप्त होकर स्थित हैं। (विद्वान) = सर्वज्ञ होते हुए आप (ऋतस्य पन्थाम् अनु एषि) = ऋत के मार्ग के अनुपात में हमें प्राप्त होते हैं। जितना-जितना हम ऋत के मार्ग का अनुसरण करते हैं, उतना ही आपको प्राप्त करनेवाले होते हैं। हे प्रभो! आपके तो अनन्त पराक्रम हैं। शेष पूर्ववत्।
भावार्थ
उस सर्वरक्षक, सर्वव्यापक प्रभु को हम उतना ही प्राप्त करेंगे जितना कि ऋत के मार्ग पर चलेंगे। हमारे कर्म ऋत के अनुसार हों-ठीक समय पर व ठीक स्थान में हों।
भाषार्थ
हे परमेश्वर ! (त्वम्) तू (चतस्रः प्रदिशः) चारों विस्तृत-दिशाओं का (रक्षसे) रक्षा करता है, (त्वम्) तू (शोचिषा) प्रकाश द्वारा (नभसी) द्यूलोक और पृथिवी के प्रति (वि भासि) चमक रहा है। (त्वम्) तू (विश्वा) समग्र (भुवना) भुवनों में (अनु) निरन्तर (तिष्ठसे) स्थित है, तू (विद्वान्) ज्ञाता (ऋतस्य) सत्य के (पन्थाम्) मार्ग पर (अनु) निरन्तर अर्थात् सदा (एषि) चलता है, (तवेद् विष्णो)…. अर्थ पूर्ववत् [मन्त्र ६]।
टिप्पणी
[चतस्रः प्रदिशः =जैसे राष्ट्र रक्षा के लिये राष्ट्र की दिशाओं, सीमाओं की रक्षा की जाती है, वैसे मानो ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिये, ब्रह्माण्ड की चहुं-दिशाओं की रक्षा परमेश्वर कर रहा है। इस लिये परमेश्वर को परिभूः भी कहते हैं। नभसी = द्यावापृथिवीनाम (निघं० ३।३०)। सत्यस्य पन्थाम्=सत्य नियमों का मार्ग, सनातन Law of order]
विषय
अभ्युदय की प्रार्थना।
भावार्थ
हे परमात्मन् ! (त्वं) तू (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) दिशाओं, उनमें निवास करने वाले लोकों की (रक्षसे) रक्षा करता है। और (त्वं) तू (शोचिषा) अपने तेज, दीप्ति से (नभसी) नीचे और ऊपर के दोनों आकाशों के बीच के समस्त लोकों को भी (वि भासि) विविध रूपों में प्रकाशित करता है। (त्वम्) तू (इमा) इन (विश्वा भुवना) समस्त उत्पन्न होने वाले लोकों का (अनुतिष्ठसे) अनुष्ठान करता है, बनाता है और उनके समस्त कार्यों का संचालन, सम्पादन करता है। तू ही (विद्वान्) सब कुछ जानता हुआ (ऋतस्य) त्रिकाल, परम सत्य के (पन्थाम्) मार्ग का (अन्वेषि) अनुसरण करता है। (तव इत्०) इत्यादि पूर्ववत्।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्माऋषिः। आदित्यो देवता। १ जगती १-८ त्र्यवसाना, २-५ अतिजगत्यः ६, ७, १९ अत्यष्टयः, ८, ११, १६ अतिधृतयः, ९ पञ्चपदा शक्वरी, १०, १३, १६, १८, १९, २४ त्र्यवसानाः, १० अष्टपदाधृतिः, १२ कृतिः, १३ प्रकृतिः, १४, १५ पञ्चपदे शक्कर्यौ, १७ पञ्चपदाविराडतिशक्वरी, १८ भुरिग् अष्टिः, २४ विराड् अत्यष्टिः, १, ५ द्विपदा, ६, ८, ११, १३, १६, १८, १९, २४ प्रपदाः, २० ककुप्, २७ उपरिष्टाद् बृहती, २२ अनुष्टुप्, २३ निचृद् बृहती (२२, २३ याजुष्यौद्वे द्विपदे), २५, २६ अनुष्टुप्, २७, ३०, जगत्यौ, २८, ३० त्रिष्टुभौ। त्रिंशदृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
You pervade and protect all four quarters of space. With your blazing splendour you shine and illuminate heaven and earth. You pervade and abide by all these regions of the universe. Lord omniscient, you inform and traverse by all the paths of universal truth and the universal law of Rtam operative in the universal dynamics of existence. Vishnu, lord omnipresent, infinite are your acts and powers in the universe, pray bless us with the fulfilment of our earthly mission and, with universal forms of perception and vision, establish us in the nectar joy of immortality in the highest regions of Divinity.
Translation
It is you, who protect the four mid-quarters; it is you who shine up in the firmament with radiance. It is you, who rule over all these worlds. You follow the path of righteousness knowing it well. O pervading Lord, manifold, indeed, are your valours. May you enrich us with cattle of all sorts. May you put me in comfort and happiness in the highest heaven.
Translation
O Almighty Lord, you guard the people of four celestial regions, you illuminate heaven and earth with light, you ordain all these worlds and you knowing everything follow the path of eternal laws-pervasiveness.
Translation
O God, Thou guardest well the denizens of the four celestial regions. With Thy light and splendor Thou illuminest the heaven and earth. Thou givest help to all these living creatures. Being Omniscient Thou followest the path of truth. Manifold are Thy great deeds, Thine, O God. Sate us with creatures of all forms and colors: set me in happiness in the loftiest position.
Footnote
our regions: East, South, West, North.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१६−(त्वम्) (रक्षसे) रक्षसि। पालयसि (प्रदिशः) प्रकृष्टादिशाः (चतस्रः) चतुःसंख्याकाः (त्वम्) (शोचिषा) प्रकाशेन (नभसी) सुपां सुलुक्०।पा० ७।१।३९। पूर्वसवर्णदीर्घः। ईदूतौ च सप्तम्यर्थे। पा० १।१।१९। इति प्रगृह्यम्।नभस्योर्द्यावापृथिव्योर्मध्ये (वि) विविधम् (भासि) दीप्यसे (त्वम्) (इमा)दृश्यमानानि (विश्वा) सर्वाणि (भुवना) लोकान् (अनु) प्रति (तिष्ठसे) वर्त्तसे (ऋतस्य) सत्यधर्मस्य (पन्थाम्) मार्गम् (अनु) निरन्तरम् (एषि) गच्छसि (विद्वान्)जानन् सन्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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