अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 26
ऋषिः - आदित्य
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - ब्रह्मा
सूक्तम् - अभ्युदयार्थप्रार्थना सूक्त
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सू॑र्यनावमारुक्षः श॒तारि॑त्रां स्व॒स्तये॑। रात्रिं॒ मात्य॑पीप॒रोऽहः॑ स॒त्राति॑पारय ॥
स्वर सहित पद पाठसूर्य॑ । नाव॑म् । आ । अ॒रु॒क्ष॒: । श॒त॒ऽअरि॑त्राम् । स्व॒स्तये॑ । रात्रि॑म् । मा॒ । अति॑ । अ॒पी॒प॒र॒: । अह॑: । स॒त्रा । अति॑ । पा॒र॒य॒ ॥१.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
सूर्यनावमारुक्षः शतारित्रां स्वस्तये। रात्रिं मात्यपीपरोऽहः सत्रातिपारय ॥
स्वर रहित पद पाठसूर्य । नावम् । आ । अरुक्ष: । शतऽअरित्राम् । स्वस्तये । रात्रिम् । मा । अति । अपीपर: । अह: । सत्रा । अति । पारय ॥१.२६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आयु की बढ़ती के लिये उपदेश।
पदार्थ
(सूर्य) हे सूर्य ! [सबके चलानेवाले जगदीश्वर] (स्वस्तये) [हमारे] आनन्द के लिये (शतारित्राम्)सैकड़ों डाड़ोंवाली (नावम्) नाव पर (आ अरुक्षः) तू चढ़ा है। (मा) मुझ से (रात्रिम्) रात्रि को (अति अपीपरः) तूने सर्वथा पार कराया है, (अहः) दिन (सत्रा)भी (अति पारय) सर्वथा तू पार करा ॥२६॥
भावार्थ
जो जगदीश्वर इस संसारको विविध प्रकार चला रहा है, मनुष्य उसकी महती कृपा से रात्रि का कर्त्तव्य पूराकरके दिन का कर्त्तव्य पूरा करने का उद्योग करें, और इस मन्त्र से प्रातःकाल मेंप्रार्थना करें ॥२६॥
टिप्पणी
२६−(सूर्य) हे सर्वप्रेरक जगदीश्वर (रात्रिम्) रात्रिकर्त्तव्यम् (अहः) दिनकर्त्तव्यम्। अन्यत् पूर्ववत्-म० २५॥
विषय
शतारित्रा नौः
पदार्थ
१. हे (सूर्य) = सम्पूर्ण जगत् को उत्पन्न व प्रेरित करनेवाले प्रभो! मैं (नावम्) = नौकारूप आप पर (आरुक्ष:) = आरूढ़ हुआ हूँ। यह (नाव शतारित्रा) = सैकड़ों चप्पुओंवाली है। (स्वस्तये) = यह हमारे कल्याण के लिए है। (रात्रिं मा अति अपीपर:) = रात में आपने मुझे पार किया ही है। अब (सत्रा) = साथ ही, बिना व्यवधान के (अहं अतिपारय) = दिन में भी पार कीजिए।
भावार्थ
प्रभु का आश्रय ही हमें इस भवसागर से तराता है।
भाषार्थ
(सूर्य) अज्ञान-अन्धकार के विनाशक हे आदित्यवर्णी परमेश्वर । तू (शतारित्राम्) सौ चप्पुओं वाली (नावम्) मेरी शरीर-नौका पर (स्वस्तये) मेरे कल्याण के लिये, (आ अरुक्षः) आरूढ़ हुआ है। (मा) मुझे (रात्रिम्, अति, अपीपरः) रात्रि से तूने पार कर दिया है (सत्रा) यह सत्य है। (अहः) दिन से भी (अति, पारय) मुझे पार कर दे।
टिप्पणी
[उपासक ने मन्त्र २५ में रात्री में होने वाले देवासुर संग्राम से बचने की प्रार्थना परमेश्वर से की है। उपासक ने अनुभव किया है कि वस्तुतः परमेश्वर ने उसे रात्रि के संग्रामों से बचा दिया है। इसी प्रकार वह पुनः प्रार्थना करता है कि नए दिन में भी परमेश्वर उसे इन संग्राम से बचाए। हम में से प्रत्येक व्यक्ति को जागते तथा सोते समय, ऐसी प्रार्थनाएं करनी चाहियें, और इन प्रार्थनाओं के अनुकूल जीवन ढालना भी चाहिये]
विषय
अभ्युदय की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (सूर्य) सब जगत् के प्रेरक सूर्य परमात्मन् ! (स्वस्तये) कल्याण के लिये तू (शतारित्राम्) सैंकड़ों कष्टों से त्राण करने वाली, (नावम्) जगत् की प्रेरक शक्ति को (आरुक्षः) व्यापता है, उस पर अधिष्ठित है। (रात्रिं मा अति अपपिरः) इत्यादि पूर्ववत्।
टिप्पणी
‘नावमारिक्षम्’ ‘अहनोऽत्यपीपरः’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्माऋषिः। आदित्यो देवता। १ जगती १-८ त्र्यवसाना, २-५ अतिजगत्यः ६, ७, १९ अत्यष्टयः, ८, ११, १६ अतिधृतयः, ९ पञ्चपदा शक्वरी, १०, १३, १६, १८, १९, २४ त्र्यवसानाः, १० अष्टपदाधृतिः, १२ कृतिः, १३ प्रकृतिः, १४, १५ पञ्चपदे शक्कर्यौ, १७ पञ्चपदाविराडतिशक्वरी, १८ भुरिग् अष्टिः, २४ विराड् अत्यष्टिः, १, ५ द्विपदा, ६, ८, ११, १३, १६, १८, १९, २४ प्रपदाः, २० ककुप्, २७ उपरिष्टाद् बृहती, २२ अनुष्टुप्, २३ निचृद् बृहती (२२, २३ याजुष्यौद्वे द्विपदे), २५, २६ अनुष्टुप्, २७, ३०, जगत्यौ, २८, ३० त्रिष्टुभौ। त्रिंशदृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
O Aditya, self-refulgent lord, you have ascended the hundred-oared ark of life with me for our well-being. You have helped me cross over the night. Pray help me to cross over the day as well.
Translation
O Surya (sun), you have embarked upon the hundred-oared boat for (our) weal. You have brought me across to the night; in the same way, may you take me across to the day.
Translation
O Most Impellant God, you maunt to pervade this world- ship having hundred oars for our happiness in this world. and in that world. O Lord, please carry me to my destina- tion in the period of creation also in the period of world's dissolution.
Translation
O God, the Master of all, for the good of humanity, Thou possesses! the power of urging the world, and making us tide over untold sufferings. Thou hast made me perform my duty during the night, let me also perform my duty during the day.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२६−(सूर्य) हे सर्वप्रेरक जगदीश्वर (रात्रिम्) रात्रिकर्त्तव्यम् (अहः) दिनकर्त्तव्यम्। अन्यत् पूर्ववत्-म० २५॥
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