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अथर्ववेद के काण्ड - 17 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
    ऋषिः - आदित्य देवता - पञ्चपदा शक्वरी छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - अभ्युदयार्थप्रार्थना सूक्त
    49

    त्वं न॑ इन्द्रमह॒ते सौभ॑गा॒याद॑ब्धेभिः॒ परि॑ पाह्य॒क्तुभि॒स्तवेद्वि॑ष्णो बहु॒धा वी॒र्याणि। त्वं नः॑ पृणीहि प॒शुभि॑र्विश्वरूपैः सु॒धायां॑ मा धेहि पर॒मे व्योमन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । न॒: । इ॒न्द्र॒:। म॒ह॒ते । सौभ॑गाय । अद॑ब्धेभि: । परि॑ । पा॒हि॒ । अ॒क्तुऽभि॑: । तव॑ । इत् । वि॒ष्णो॒ इति॑ । ब॒हु॒ऽधा । वी॒र्या᳡णि । त्वम् । न॒: । पृ॒णी॒हि॒ । प॒शुऽभि॑: । वि॒श्वऽरू॑पै: । सु॒ऽधाया॑म् । मा॒ । धे॒हि॒ । प॒र॒मे । विऽओम॑न् ॥१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं न इन्द्रमहते सौभगायादब्धेभिः परि पाह्यक्तुभिस्तवेद्विष्णो बहुधा वीर्याणि। त्वं नः पृणीहि पशुभिर्विश्वरूपैः सुधायां मा धेहि परमे व्योमन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । न: । इन्द्र:। महते । सौभगाय । अदब्धेभि: । परि । पाहि । अक्तुऽभि: । तव । इत् । विष्णो इति । बहुऽधा । वीर्याणि । त्वम् । न: । पृणीहि । पशुऽभि: । विश्वऽरूपै: । सुऽधायाम् । मा । धेहि । परमे । विऽओमन् ॥१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 17; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आयु की बढ़ती के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [परम ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] (त्वम्) तू (नः) हमें (महते) बड़े (सौभगाय) सुन्दरऐश्वर्य के लिये (अदब्धेभिः) [अपने] अखण्ड (अक्तुभिः) प्रकाशों के साथ (परि) सबओर से (पाहि) बचा, (विष्णो) हे विष्णु ! [सर्वव्यापक परमेश्वर] (तव इत्) तेरेही.... [मन्त्र ६] ॥९॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा केअखण्डज्ञान के प्रकाश से संसार में बड़ा ऐश्वर्य पाकर सुरक्षित रहें॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(त्वम्) (नः) अस्मान् (महते) प्रवृद्धाय (सौभगाय) महैश्वर्यप्राप्तये (अदब्धेभिः) अहिंसितैः। अखण्डितैः (परि) सर्वतः (पाहि) रक्ष (अक्तुभिः) पःकिच्च। उ० १।७१। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-तुन्। व्यञ्जकैः प्रकाशैःकिरणैः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    महते सौभगाय

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (त्वम्) = आप (नः) = हमारे (महते सौभगाय) = महान् सौभाग्य के लिए (अदब्धेभि) = अहिंसित (अक्तुभि:) = प्रकाश की किरणों से (परिपाहि) = सब ओर से रक्षा कीजिए। प्रकाश की किरणों के द्वार सदा कर्तव्यपथ को देखते हुए हम कर्तव्यमार्ग का अनुसरण करें। यह मार्गानुसरण हमारे सौभाग्य का साधक हो। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ

    हम प्रभु से निरन्तर प्रकाश की किरणों को प्राप्त करके मार्ग पर ही चलें। मार्ग पर चलते हुए हम प्रथमाश्रम में ऐश्वर्यसाधक शिक्षा व धर्म को प्राप्त करें, द्वितीयाश्रम में संयम द्वारा वीर्य तथा यज्ञ के भागी बनें तथा तृतीया श्रम में ज्ञान व वैराग्य का साधन करें। यही तो महान् सौभाग्य है।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवान् परमेश्वर ! (त्वम्) तू (अदब्धेभिः) न दबने वाले (अक्तुभिः) निज अभिव्यक्त प्रकाशों द्वारा, (महते सौभगाय) हमारे महा सौभाग्य के लिये, (परि पाहि) हमारी सब ओर से रक्षा कर। (तवेद् विष्णो)…शेष अर्थ पूर्ववत् [मन्त्र ६]

    टिप्पणी

    [उपासक योगी को, जब परमेश्वर की अनश्वर ज्योति का दर्शन हो जाता है तब उस का महासौभाग्य प्रकट होता है, और वह अपने आप को पूर्णतया सुरक्षित अनुभव करने लगता है। अक्तुभिः= यह शब्द यद्यपि रात्री-अर्थ में प्रसिद्ध है, परन्तु वर्तमान मन्त्र में यौगिक-अर्थ अधिक उपर्युक्त प्रतीत होता है, "अञ्ज् अभिव्यक्तौ"]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    O lord omnipotent Indra, pray protect and promote us to achieve great good fortune by irresistible light and splendour of Divinity. O lord omnipresent, Vishnu, infinite are your powers and potentials. Bless us with all forms of perceptive organs and serviceable living beings. Pray establish me in the nectar joy of immortality in the highest regions of Divinity.

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    Translation

    O resplendent Lord, may you protect us from all sides with your unsuppressible rays of our great happiness. O pervading Lord, manifold, indeed, are your valours. May you enrich us with cattle of all sorts. May you put me in comfort and happiness in the highest heaven.

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    Translation

    O Almighty God, please protect me for the great fortune with your inviolable powers--pervasiveness.

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    Translation

    Do Thou, O God, for our great good fortune, with thine inviolable lights of knowledge protect us! Manifold are Thy great deeds. Thine, O God! Sate us with creatures of all forms and colors: set me in happiness in the loftiest position,

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(त्वम्) (नः) अस्मान् (महते) प्रवृद्धाय (सौभगाय) महैश्वर्यप्राप्तये (अदब्धेभिः) अहिंसितैः। अखण्डितैः (परि) सर्वतः (पाहि) रक्ष (अक्तुभिः) पःकिच्च। उ० १।७१। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-तुन्। व्यञ्जकैः प्रकाशैःकिरणैः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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