अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 20
ऋषिः - आदित्य
देवता - ककुप् उष्णिक्
छन्दः - ब्रह्मा
सूक्तम् - अभ्युदयार्थप्रार्थना सूक्त
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शु॒क्रोऽसि॑भ्रा॒जोऽसि॑। स यथा॒ त्वं भ्राज॑ता भ्रा॒जोऽस्ये॒वाहं भ्राज॑ता भ्राज्यासम्॥
स्वर सहित पद पाठशु॒क्र:। अ॒सि॒ । भ्रा॒ज: । अ॒सि॒ । स: । यथा॑ । त्वम् । भ्राज॑ता । भ्रा॒ज: । अ॒सि॒ । ए॒व । अ॒हम् । भ्राज॑ता । भ्रा॒ज्या॒स॒म् ॥१.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
शुक्रोऽसिभ्राजोऽसि। स यथा त्वं भ्राजता भ्राजोऽस्येवाहं भ्राजता भ्राज्यासम्॥
स्वर रहित पद पाठशुक्र:। असि । भ्राज: । असि । स: । यथा । त्वम् । भ्राजता । भ्राज: । असि । एव । अहम् । भ्राजता । भ्राज्यासम् ॥१.२०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आयु की बढ़ती के लिये उपदेश।
पदार्थ
[हे परमेश्वर !] तू (शुक्रः) शुद्ध [स्वच्छ निर्मल] (असि) है, तू (भ्राजः) प्रकाशमान (असि) है। (सःत्वम्) सो तू (यथा) जैसे (भ्राजता) प्रकाशमान स्वरूप के साथ (भ्राजः) प्रकाशमान (असि) है, (एव) वैसे ही (अहम्) मैं (भ्राजता) प्रकाशमान स्वरूप के साथ (भ्राज्यासम्) प्रकाशमान रहूँ ॥२०॥
भावार्थ
जगदीश्वर के प्रकाशस्वरूप का ध्यान करके मनुष्य विद्या आदि उत्तम गुणों से संसार में तेजस्वी होवें॥२०॥
टिप्पणी
२०−(शुक्रः) शुक्लः। शुद्धः (असि) (भ्राजः) भ्राजृ दीप्तौ-पचाद्यच्।प्रकाशमानः (असि) (सः) तादृशः (यथा) येन प्रकारेण (त्वम्) (भ्राजता) प्रकाशमानेनस्वरूपेण (भ्राजः) प्रकाशमानः (असि) (एवम्) (अहम्) उपासकः (भ्राजता) दीप्यमानेनस्वरूपेण (भ्राज्यासम्) दीपिषीय ॥
विषय
शुक्रः-भ्राजः
पदार्थ
१. हे प्रभो! आप (शुक्रः असि) = अत्यन्त निर्मलस्वरूप हैं-कलुष-लेश से भी संस्कृष्ट नहीं हैं-अपापविद्ध हैं। (भ्राजः असि) = दीप्त हैं-सकल-लोक-प्रकाशक तेज से युक्त हैं। २. (सः त्वम्) = वे आप (यथा) = जिस प्रकार भाजता (भ्राजः असि) = सकल-लोक-प्रकाशक तेजोमयरूप से दीप्त हैं, (एव) = इसीप्रकार (अहम्) = मैं भाजता-दौसरूप शरीर-कान्ति से (भ्राज्यासम्) = दीप्त होऊँ। तेजोमय आपकी उपासना मुझे भी तेजोमय बनाए।
भावार्थ
प्रभु अत्यन्त निर्मलस्वरूप है, तेजस्वी हैं। प्रभु की उपासना से मैं भी दीप्स बन आऊँ।
भाषार्थ
हे सूर्य! (शुक्रः) पवित्र (असि) तू है, (भ्राजः) दीप्तिमान् (असि) तू है। (यथा) जैसे (सः त्वम्) वह तू, (भ्राजता) प्रदीप्यमान परमेश्वर द्वारा (भ्राजः) दीप्तिमान् (असि) है, (एव=एवम्) ऐसे ही (अहम्) मैं (भ्राजता) प्रदीप्यमान परमेश्वर द्वारा (भ्राज्यासम्) दीप्तिमान् होऊं।
टिप्पणी
[सूर्य पवित्र है तथा भूमण्डल को पवित्र कर रहा है। सूर्य, परमेश्वर के प्रकाश द्वारा, प्रकाशित हो रहा है, "तस्य भासा सर्वमिदं विभाति" (मुण्डक २।१०)। उपासक इच्छा प्रकट करता है कि मैं भी परमेश्वर का प्रकाश पा कर प्रकाशित हो जाऊं। इस प्रकार मन्त्र में मुख्य रूप से सूर्य का वर्णन हुआ है, और साथ ही, सूर्य को प्रदीप्त करने वाले परमेश्वर का भी वर्णन हुआ है। भ्राजता=भाजृ दीप्तौ+शतृ (कर्तरि)। "योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्। ओऽम् खं ब्रह्म" (यजु० ४०।१७)]
विषय
अभ्युदय की प्रार्थना।
भावार्थ
हे परमेश्वर ! तू (शुक्रः असि) ‘शुक्र’ क्रान्तिमय, तेजोमय, एवं सब संसार का लीनरूप है। (भ्राजः असि) हे परमेश्वर तू ‘भ्राज’ अति देदीप्यमान, सबका परिपाक करनेहारा है। (सः त्वं) वह तू (यथा) जिस प्रकार से (भ्राजता) अपने प्रखर प्रताप से, या जगत् के समस्त पदार्थों के परिपाक करने के सामर्थ्य से (भ्राजः असि) तू ‘भ्राज’ सबका परिपाक करनेहारा है (एवं) उसी प्रकार मैं (भ्राजता) प्रखर प्रताप से (भ्राज्यासम्) देदीप्यमान होऊं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्माऋषिः। आदित्यो देवता। १ जगती १-८ त्र्यवसाना, २-५ अतिजगत्यः ६, ७, १९ अत्यष्टयः, ८, ११, १६ अतिधृतयः, ९ पञ्चपदा शक्वरी, १०, १३, १६, १८, १९, २४ त्र्यवसानाः, १० अष्टपदाधृतिः, १२ कृतिः, १३ प्रकृतिः, १४, १५ पञ्चपदे शक्कर्यौ, १७ पञ्चपदाविराडतिशक्वरी, १८ भुरिग् अष्टिः, २४ विराड् अत्यष्टिः, १, ५ द्विपदा, ६, ८, ११, १३, १६, १८, १९, २४ प्रपदाः, २० ककुप्, २७ उपरिष्टाद् बृहती, २२ अनुष्टुप्, २३ निचृद् बृहती (२२, २३ याजुष्यौद्वे द्विपदे), २५, २६ अनुष्टुप्, २७, ३०, जगत्यौ, २८, ३० त्रिष्टुभौ। त्रिंशदृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
O Sun, you are pure and powerful. You are bright and blazing. As you are bright and blazing by the power of the self-refulgent Indra, so may I be bright, ever shining by the light and grace of self-refulgent Vishnu.
Translation
You are bright; you are the blaze. Just as your blazing with the blaze, so may I also blaze with the blazing.
Translation
O God, you are bright and refulgent, as you shine with splendour so I indeed shine with splendour.
Translation
O God, Pure art Thou, and Refulgent as Thou shinest with splendor, so I fain would shine with splendor!
Footnote
I: The devotee.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२०−(शुक्रः) शुक्लः। शुद्धः (असि) (भ्राजः) भ्राजृ दीप्तौ-पचाद्यच्।प्रकाशमानः (असि) (सः) तादृशः (यथा) येन प्रकारेण (त्वम्) (भ्राजता) प्रकाशमानेनस्वरूपेण (भ्राजः) प्रकाशमानः (असि) (एवम्) (अहम्) उपासकः (भ्राजता) दीप्यमानेनस्वरूपेण (भ्राज्यासम्) दीपिषीय ॥
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