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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
    सूक्त - नारायणः देवता - पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त
    49

    यत्पुरु॑षेण ह॒विषा॑ दे॒वा य॒ज्ञमत॑न्वत। व॑स॒न्तो अ॑स्यासी॒दाज्यं॑ ग्री॒ष्म इ॒ध्मः श॒रद्ध॒विः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। पुरु॑षेण। ह॒विषा॑। दे॒वाः। य॒ज्ञम्। अत॑न्वत। व॒स॒न्तः। अ॒स्य॒। आ॒सी॒त्। आज्य॑म्। ग्री॒ष्मः। इ॒ध्मः। श॒रत्। ह॒विः ॥६.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत। वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। पुरुषेण। हविषा। देवाः। यज्ञम्। अतन्वत। वसन्तः। अस्य। आसीत्। आज्यम्। ग्रीष्मः। इध्मः। शरत्। हविः ॥६.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 10
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    हिन्दी (1)

    विषय

    सृष्टिविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जब (हविषा) ग्रहण करने योग्य (पुरुषेण) पुरुष [पूर्ण परमात्मा] के साथ [अर्थात् परमात्मा को यजमान मानकर] (देवाः) विद्वान् लोगों ने (यज्ञम्) यज्ञ [ब्रह्माण्डरूप हवनव्यवहार] को (अतन्वत) फैलाया (वसन्तः) वसन्त ऋतु (अस्य) इस [यज्ञ] का (आज्यम्) घी, (ग्रीष्मः) ग्रीष्म ऋतु (इध्मः) इन्धन और (शरत्) शरद् ऋतु (हविः) हवनद्रव्य (आसीत्) हुआ ॥१०॥

    भावार्थ

    जब विद्वान् लोग इस ब्रह्माण्ड को ऐसे सिद्ध कर रहे हों जैसे कोई मनुष्य यज्ञ कर रहा हो, तो विद्वानों को जानना चाहिये कि सृष्टि के लिये वसन्त, ग्रीष्म और शरद् ऋतु परमात्मा ने ऐसे उपयोगी बनाये हैं, जैसे यज्ञ के लिये घृत, समिधा और अन्य हवन सामग्री होते हैं। इस मन्त्र में वसन्त, ग्रीष्म और शरद् तीन ही ऋतुएँ वर्ष के माने हैं जैसे ग्रीष्म, वर्षा और शीत तीन ऋतु प्रायः माने जाते हैं ॥१०॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१०।९०।६। और यजुर्वेद में ३१।१४। और इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध आ चुका है-अथर्व० ७।५।४ ॥ १०−(यत्) यदा (पुरुषेण) पूर्णेन परमात्मना (हविषा) आदातव्येन ग्राह्येण (देवाः) विद्वांसः (यज्ञम्) ब्रह्माण्डरूपहवनव्यवहारम् (अतन्वत) विस्तारितवन्तः। कल्पितवन्तः (वसन्तः) ऋतुविशेषः (अस्य) यज्ञस्य (आज्यम्) घृतं यथा (ग्रीष्मः) निदाघकालः (इध्मः) काष्ठं यथा (शरत्) ऋतुविशेषः (हविः) होतव्यं द्रव्यं यथा ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Purusha, the Cosmic Seed

    Meaning

    When the Devas, natural forms enacted and brilliant sages visualised the cosmic yajna of creation, then the spring season was the ghrta, summer, the fuel, and winter was the havi. (This natural and meditative enactment is in terms of nature’s evolution. Prakrti, with the divine presence and immanent will, evolves into material, biological and psychic forms.)

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१०।९०।६। और यजुर्वेद में ३१।१४। और इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध आ चुका है-अथर्व० ७।५।४ ॥ १०−(यत्) यदा (पुरुषेण) पूर्णेन परमात्मना (हविषा) आदातव्येन ग्राह्येण (देवाः) विद्वांसः (यज्ञम्) ब्रह्माण्डरूपहवनव्यवहारम् (अतन्वत) विस्तारितवन्तः। कल्पितवन्तः (वसन्तः) ऋतुविशेषः (अस्य) यज्ञस्य (आज्यम्) घृतं यथा (ग्रीष्मः) निदाघकालः (इध्मः) काष्ठं यथा (शरत्) ऋतुविशेषः (हविः) होतव्यं द्रव्यं यथा ॥

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