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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 12
    ऋषिः - नारायणः देवता - पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त
    68

    तस्मा॒दश्वा॑ अजायन्त॒ ये च॒ के चो॑भ॒याद॑तः। गावो॑ ह जज्ञिरे॒ तस्मा॒त्तस्मा॑ज्जा॒ता अ॑जा॒वयः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मा॑त्। अश्वाः॑। अ॒जा॒य॒न्त॒। ये। च॒। के। च॒। उ॒भ॒याद॑तः। गावः॑। ह॒। ज॒ज्ञि॒रे॒। तस्मा॑त्। तस्मा॑त्। जा॒ताः। अ॒ज॒ऽअ॒वयः॑ ॥६.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्मादश्वा अजायन्त ये च के चोभयादतः। गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मात्। अश्वाः। अजायन्त। ये। च। के। च। उभयादतः। गावः। ह। जज्ञिरे। तस्मात्। तस्मात्। जाताः। अजऽअवयः ॥६.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 12
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    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टिविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (तस्मात्) उस [पुरुष परमात्मा] से (अश्वाः) घोड़े (अजायन्त) उत्पन्न हुए, (च च) और [अन्य गदहा खच्चर आदि भी] (ये) जो (के) कोई (उभयादतः) दोनों ओर [नीचे ऊपर] दातोंवाले हैं। (तस्मात्) उससे (ह) ही (गावः) गौएँ बैल [एक ओर दाँतवाले पशु] (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए, (तस्मात्) उससे (अजावयः) बकरी भेड़ (जाताः) उत्पन्न हुए ॥१२॥

    भावार्थ

    जिस परमेश्वर ने घोड़े, गदहे, गौ, बैल, बकरी, भेड़ आदि उपकारी पशु उत्पन्न किये हैं, सब मनुष्य उसकी आज्ञा का पालन करते रहें ॥१२॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र ऋग्वेद में हैं−१०।९०।१० और यजुर्वेद−३१।८ ॥ १२−(तस्मात्) पुरुषात् (अश्वाः) तुरङ्गाः (अजायन्त) उत्पन्नाः (ये) (के) (च) गर्दभखचरादयः (उभयादतः) छन्दसि च। पा० ५।४।१४२। दन्तस्य दतृभावः। अन्येषामपि दृश्यते। पा–० ६।३।१३७। इति दीर्घः। ऊर्ध्वाधोभागयोरुभयोर्दन्तयुक्ताः (गावः) धेनुवृषभाः (ह) एव (जज्ञिरे) उत्पन्नाः (तस्मात्) (तस्मात्) (जाताः) (अजावयः) अजाश्वावयश्च ॥

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    विषय

    मानव-जीवन के साथ सम्बद्ध पशु

    पदार्थ

    १. (तस्मात्) = उस प्रभु के द्वारा (अश्वा अजायन्त) = घोड़ों को जन्म दिया गया (च) = तथा (ये के) = जो कोई (उभयादत:) = दोनों ओर दाँतोंवाले खच्चर आदि पशु हैं, उनका प्रभु द्वारा प्रादुर्भाव किया गया। २. (गावः ह) = गौवें निश्चय से (तस्मात् जज्ञिरे) = उसी प्रभु से उत्पन्न की गई और (तस्मात्) = उससे (अजा अवयः) = बकरियाँ व भेड़ें (जाता:) = उत्पन्न हुई। ३. गौ हमारे जीवनों में सात्त्विक दुग्धरूप भोजन को देती हुई ज्ञानवृद्धि का कारण बनती है। घोड़ा व्यायामादि का साधन बनता हुआ'क्षत्र' वृद्धि का साधन होता है। बकरी का दूध 'सब रोगों को दूर करनेवाला' [सर्वरोगापह] बनता है और भेड़ ऊन के वस्त्रों को प्राप्त कराके हमें शीत से बचाती है। संक्षेप में 'गौ व घोड़ा' मनुष्य के दायें हाथ हैं तो 'अजा और अवि' उसके बायें हाथ हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ने हमारे जीवनों में सहायक होनेवाले 'गौ, घोड़ा, बकरी व भेड़' आदि पशुओं को उत्पन्न किया है।

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    भाषार्थ

    (अश्वाः) घोड़े तथा (ये) जो (के) कोई (च) और गदहा आदि (उभयादतः) दोनों ओर ऊपर-नीचे दांतों वाले हैं, वे (तस्मात्) उस परमेश्वर से (अजायन्त) पैदा हुए हैं। (तस्मात्) उसी से (गावः) गौएँ (ह) निश्चय करके (जज्ञिरे) उत्पन्न हुई, और (तस्मात्) उसी से (अजावयः) बकरियाँ भेड़ें (जाताः) उत्पन्न हुई।

    टिप्पणी

    [“गावः” शब्द एक ओर दांत वालों का उपलक्षक है। इस के द्वारा अन्य भी एक ओर दांतवाले लिये जाते हैं। (यजुर्वेद ३१।८) महर्षि-भाष्य।]

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    विषय

    महान् पुरुष का वर्णन।

    भावार्थ

    (अश्वाः) अश्व, घोड़े और (ये च के च) जो कोई भी (उभयादतः) ऊपर नीचे दोनों जबाड़े के दातों वाले प्राणी हैं (तस्मात्) उस परम पुरुष से ही (अजायन्त) उत्पन्न होते हैं। और (तम्मात्) उससे ही (गावः) गौंएं, दूध देने वाले वे पशु जिनके ऊपर के दात नहीं होते वे भी ऊत्पन्न हुए। और (तस्मात्) उससे ही (अजावयाः) बकरी और भेड़ें भी (जाताः) पैदा हुई। अर्थात् नाना पशु भी उस ईश्वर के सामर्थ्य से ही पैदा हुए। अध्यात्म में—सब पशु भी उस आत्मा के ही नाना शरीर हैं। उसी से उत्पन्न होते हैं।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘ये के चो’ इति ऋ० यजु०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुरुषसूक्तम्। नारायण ऋषिः। पुरुषो देवता। अनुष्टुभः। षोडशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Purusha, the Cosmic Seed

    Meaning

    From that yajna enacted by Nature with the immanent will were born the horses and those which have two rows of teeth up and down. From that were born the cows, and from that were born the goat and the sheep.

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    Translation

    From that cosmic sacrifice horses are born and all other cattle having two rows of teeth.Cows are born out of it and so are goats and sheep. (Yv. XXXI.8)

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    Translation

    The horses and those creatures which have two rows of teeth were born this Yajna-purusha. From it were born kine, from it goats and from it were born the sheep.

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    Translation

    From the great sacrifice initiated by God, the Creator, were born the horses and all cattle with two rows of teeth. Verily the cows were generated from Him. From Him were born the goats and the sheep.

    Footnote

    cf. Rig, 10.90.10, Yajur, 31.8.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र ऋग्वेद में हैं−१०।९०।१० और यजुर्वेद−३१।८ ॥ १२−(तस्मात्) पुरुषात् (अश्वाः) तुरङ्गाः (अजायन्त) उत्पन्नाः (ये) (के) (च) गर्दभखचरादयः (उभयादतः) छन्दसि च। पा० ५।४।१४२। दन्तस्य दतृभावः। अन्येषामपि दृश्यते। पा–० ६।३।१३७। इति दीर्घः। ऊर्ध्वाधोभागयोरुभयोर्दन्तयुक्ताः (गावः) धेनुवृषभाः (ह) एव (जज्ञिरे) उत्पन्नाः (तस्मात्) (तस्मात्) (जाताः) (अजावयः) अजाश्वावयश्च ॥

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