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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 11
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१७
    64

    बृह॒स्पति॑र्नः॒ परि॑ पातु प॒श्चादु॒तोत्त॑रस्मा॒दध॑रादघा॒योः। इन्द्रः॑ पु॒रस्ता॑दु॒त म॑ध्य॒तो नः॒ सखा॒ सखि॑भ्यो॒ वरि॑वः कृणोतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॒स्पति॑: । न॒: । परि॑ । पा॒तु॒ । प॒श्चात् । उ॒त । उत्ऽत॑रसमात् । अध॑रात् । अ॒घ॒ऽयो: ॥ इन्द्र॑: । पु॒रस्ता॑त् । उ॒त । म॒ध्य॒त: । न॒: । सखा॑ । सखि॑ऽभ्य: । वरि॑व: । कृ॒णो॒तु॒ ॥१७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहस्पतिर्नः परि पातु पश्चादुतोत्तरस्मादधरादघायोः। इन्द्रः पुरस्तादुत मध्यतो नः सखा सखिभ्यो वरिवः कृणोतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहस्पति: । न: । परि । पातु । पश्चात् । उत । उत्ऽतरसमात् । अधरात् । अघऽयो: ॥ इन्द्र: । पुरस्तात् । उत । मध्यत: । न: । सखा । सखिऽभ्य: । वरिव: । कृणोतु ॥१७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 17; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े शूरों का रक्षक सेनापति] (नः) हमें (पश्चात्) पीछे से (उत्तरस्मात्) ऊपर से (उत) और (अधरात्) नीचे से (अघायोः) बुरा चीतनेवाले शत्रु से (परि पातु) सब प्रकार बचावे। (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (पुरस्तात्) आगे से (उत) और (मध्यतः) मध्य से (नः) हमारे लिये (वरिवः) सेवनीय धन (कृणोतु) करे, (सखा) [जैसे] मित्र (सखिभ्यः) मित्रों के लिये [करता है] ॥११॥

    भावार्थ

    मनुष्य वीरों में महावीर और प्रतापियों में महाप्रतापी होकर दुष्टों से प्रजा की सदा रक्षा करें ॥११॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऊपर आ चुका है-अ० ७।१।१, मन्त्र १० की भी टिप्पणी देखो ॥ ११−(वरिवः) अ० २०।११।१। बहुवरणीयं धनम्। अन्यत् पूर्ववत्-अ० ७।१।१ ॥

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    विषय

    'बृहस्पति+इन्द्र' का आराधन

    पदार्थ

    १. (बृहस्पति:) = ज्ञान का स्वामी (प्रभुन:) = हमें पश्चात् पीछे से (उत) = और (उत्तरस्मात्) = ऊपर से व (अधरात्) = नीचे से (अपायो:) = हमारी हिंसा [पाप] को चाहनेवाले पुरुष से (परिपात) = सर्वथा रक्षित करें। २. (इन्द्रः) = वह शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला प्रभु (पुरस्तात्) = सामने से (उत) = और (मध्यत:) = बीच से (न:) = हमारा रक्षण करे। वह (सखा) = सबका मित्र प्रभु (सखिभ्य:) = मित्रभूत हम उपासकों के लिए (वरिवः) = धन को (कृणोतु) = करे।

    भावार्थ

    हम ज्ञान को प्राप्त करनेवाले बनकर 'बृहस्पति' के उपासक हों, जितेन्द्रिय बनकर 'इन्द्र' के उपासक हों। ये बृहस्पति व इन्द्र हमें अघायु पुरुषों से रक्षित करें और हमारे लिए आवश्यक धनों को प्रास कराएँ।

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    भाषार्थ

    (बृहस्पतिः) बृहती-वेदवाणी का आचार्य, तथा (इन्द्रः) परमेश्वर (पश्चात्) पश्चिम से, (उत) और (उत्तरस्मात्) उत्तर से, (अधरात्) दक्षिण से, (पुरस्तात्) पूर्व से, (उत) और (मध्यतः) मध्यभाग से, हम पर आक्रमण करनेवाले और (अघायोः) हमारी हत्या चाहने वाले पापों से (नः) हमारी (परिपातु) पूर्णतया रक्षा करें। और बृहस्पति तथा इन्द्र, इनमें से प्रत्येक (सखा) हमारा सखा बनकर (नः सखिभ्यः) हम सखाओं के लिए (वरिवः) आध्यात्मिक-धन (कृणोतु) सम्पन्न करे।

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    विषय

    परमेश्वरोपासना

    भावार्थ

    (बृहस्पतिः) महान् संसार का पालक, एवं बड़े राष्ट्र का पालक, वेदज्ञ विद्वान् (नः) हमें (पश्चात्) पीछे से (उत् उत्तरस्मात्) उत्तर से या दायें से या ऊपर से और (अधरात्) नीचे से (अघायोः) हम पर आक्रमण एवं आधात करने की इच्छा करने वाले दुष्ट पुरुष से और हे (इन्द्र) राजन् ! (पुरुस्तात् उत मध्यतः) आगे और हमारे बीच में से भी हम पर आक्रमण करने वाले दुष्ट रुप से (नः परिपातु) हमारी रक्षा करे। और वह (नः) हमारा (सखा) मित्र होकर हमारे (सखिभ्यः) समस्त स्नेही मित्रों या हम मित्रों को (वरिवः) धन ऐश्वर्य (कृणोतु) प्रदान करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-१० कृष्ण ऋषिः। १२ वसिष्ठः। इन्द्रो देवता। १-१० जगत्यः। ११,१२ त्रिष्टुभौ। द्वादशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    May Brhaspati, Lord of Infinity and the master of knowledge, protect us against the violence of sin and sinners upfront, behind, above or below. May Indra, ruler and friend of humanity, create and lead us to the wealth of life for us and our friends, all at present and in our midst. 11. May Brhaspati, lord of Infinity and the master of knowledge protect us against the violence of sin and sinners upfront, behind, above or below. May Indra, ruler and friend of humanity, create and lead us to the wealth of life for us and our friends, all at present and in our midst.

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    Translation

    May Brihaspati, Lord of Vedic speech protect us from behind, from above and from below region from wicked, may the mighty ruler guard us from front side and from the centre and may like friend to friends he vouchsafe accomodation and freedom.

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    Translation

    May Brihaspati, Lord of Vedic speech protect us from behind, from above and from below region from wicked, may the mighty ruler guard us from front side and from the centre and may like friend to friends he vouchsafe accommodation and freedom.

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    Translation

    May the Mighty Lord of the universe, the king or the Vedic scholar protect us from the attacking foe from behind, above or below. May the Evil-Destroyer God, king or learned person, from the front-side or the middle. Being our friend, may He grant us. His friends riches and glory.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऊपर आ चुका है-अ० ७।१।१, मन्त्र १० की भी टिप्पणी देखो ॥ ११−(वरिवः) अ० २०।११।१। बहुवरणीयं धनम्। अन्यत् पूर्ववत्-अ० ७।१।१ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বৃহস্পতিঃ) বৃহস্পতি [বীরদের রক্ষক সেনাপতি] (নঃ) আমাদের (পশ্চাৎ) পেছন থেকে (উত্তরস্মাৎ) উপর থেকে (উত) এবং (অধরাৎ) নীচে থেকে (অঘায়োঃ) কুচিন্তনকারী শত্রু থেকে (পরি পাতু) সকল প্রকারে রক্ষা করুক। (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [ঐশ্বর্যবান রাজা] (পুরস্তাৎ) সামনে থেকে (উত)(মধ্যতঃ) মধ্য থেকে (নঃ) আমাদের জন্য (বরিবঃ) সেবনীয় ধন (কৃণোতু) করুক, (সখা) [যেরকম] মিত্র/সখা (সখিভ্যঃ) মিত্রের জন্য [করে]।।১১।।

    भावार्थ

    মনুষ্য বীরদের মধ্যে মহাবীর এবং প্রতাপীদের মধ্যে মহাপ্রতাপী হয়ে দুষ্টদের থেকে প্রজাদের সদা রক্ষা করুক।।১১।। এই মন্ত্র কিছুটা আলাদাভাবে আছে-অ০ ৭।১।১, মন্ত্র ১০ এর টিপ্পণী দেখো ॥

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    भाषार्थ

    (বৃহস্পতিঃ) বৃহতী-বেদবাণীর আচার্য, তথা (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (পশ্চাৎ) পশ্চিম থেকে, (উত) এবং (উত্তরস্মাৎ) উত্তর থেকে, (অধরাৎ) দক্ষিণ থেকে, (পুরস্তাৎ) পূর্ব থেকে, (উত) এবং (মধ্যতঃ) মধ্যভাগ থেকে, আমাদের ওপর আক্রমণকারী এবং (অঘায়োঃ) আমাদের হত্যাকাঙ্ক্ষী পাপ থেকে (নঃ) আমাদের (পরিপাতু) পূর্ণরূপে রক্ষা করুক। এবং বৃহস্পতি তথা ইন্দ্র, এরা প্রত্যেকে (সখা) আমাদের সখা হয়ে (নঃ সখিভ্যঃ) আমাদের সখাদের জন্য (বরিবঃ) আধ্যাত্মিক-ধন (কৃণোতু) সম্পন্ন করে/করুক।

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