अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 9
उज्जा॑यतां पर॒शुर्ज्योति॑षा स॒ह भू॒या ऋ॒तस्य॑ सु॒दुघा॑ पुराण॒वत्। वि रो॑चतामरु॒षो भा॒नुना॒ शुचिः॒ स्वर्ण शु॒क्रं शु॑शुचीत॒ सत्प॑तिः ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । जा॒य॒ता॒म् । प॒र॒शु: । ज्योति॑षा । स॒ह । भू॒या: । ऋ॒तस्य॑ । सु॒ऽदुघा॑ । पु॒रा॒ण॒ऽवत् ॥ वि । रो॒च॒ता॒म् । अ॒रु॒ष: । भा॒नुना॑ । शुचि॑: । स्व॑: । न । शु॒क्रम् । शु॒शु॒ची॒त॒ ।सत्ऽप॑ति: ॥१७.९॥
स्वर रहित मन्त्र
उज्जायतां परशुर्ज्योतिषा सह भूया ऋतस्य सुदुघा पुराणवत्। वि रोचतामरुषो भानुना शुचिः स्वर्ण शुक्रं शुशुचीत सत्पतिः ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । जायताम् । परशु: । ज्योतिषा । सह । भूया: । ऋतस्य । सुऽदुघा । पुराणऽवत् ॥ वि । रोचताम् । अरुष: । भानुना । शुचि: । स्व: । न । शुक्रम् । शुशुचीत ।सत्ऽपति: ॥१७.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(परशुः) फरसा [कुल्हाड़ा] (ज्योतिषा सह) प्रकाश के साथ (उत् जायताम्) ऊँचा होवे, (ऋतस्य) सत्य की (सुदुघा) अच्छे प्रकार पूर्ण करनेहारी [वेदवाणी] (पुराणवत्) पहिले के समान (भूयाः) वर्तमान होवे। (अरुषः) गतिमान् (शुचिः) शुद्धाचारी, (सत्पतिः) सत्पुरुषों का रक्षक पुरुष (भानुना) अपने प्रकाश से (वि) विविध प्रकार (रोचताम्) प्रिय होवे, और (शुक्रम्) निर्मल (स्वः न) सूर्य के समान (शुशुचीत) चमकता रहे ॥९॥
भावार्थ
जब शूर सेनापति अपने उज्ज्वल तीक्ष्ण हथियारों से शत्रुओं को मारकर सत्य की स्थापना करता है, तब वह अपने उपकारों से सूर्यसमान प्रतापी होकर सबको प्रिय लगता है ॥९॥
टिप्पणी
९−(उत्) ऊर्ध्वम् (जायताम्) प्रादुर्भवतु (परशुः) कुठारः। वज्रः (ज्योतिषा) प्रकाशेन (सह) (भूयाः) प्रथमस्य मध्यमपुरुषः। भूयात् (ऋतस्य) सत्यस्य (सुदुघा) दुह प्रपूरणे-कप्, टाप्, हस्य घः। सुष्ठु पूरयित्री वेदवाणी (पुराणवत्) पूर्वं यथा (वि) विविधम् (रोचताम्) रोचकः प्रियो भवतु (अरुषः) अ० ३।३।२। पॄनहिकलिभ्य उषच्। उ० ४।७। ऋ गतिप्रापणयोः-उषच्। गतिशीलः (भानुना) स्वप्रकाशेन (शुचिः) शुद्धाचारी (स्वः) आदित्यः (न) यथा (शुक्रम्) शुक्लम्। निर्मलम् (शुशुचीत) शुच शोके-लिङि शपः श्लु। दीप्यताम् (सत्पतिः) सत्पुरुषाणां पालकः ॥
विषय
परशः ज्योतिषा सह
पदार्थ
१. हमारे जीवनों में (परशः) = शत्रुओं को क्षीण करनेवाला [शो तनकरणे] वज्र (ज्योतिषा सहः) = ज्ञान-ज्योति के साथ (उत् जायताम्) = उत्कर्षेण प्रादुर्भूत हो। हम स्वाध्याय द्वारा ज्ञान का वर्धन करें और क्रियाशीलतारूप वज्र के द्वारा वासनाओं का विनाश करें। हमारे लिए यह वेद (धेनु पुराणवत्) = सदा की भाँति (ऋतस्य) = सत्य-ज्ञान का सुदुघा दोहन करनेवाली हो। २. हमारे हदयों में (अरुष:) = वह आरोचमान, (भानुना) = अपने तेज से (शुचिः) = दीप्त होता हुआ प्रभु (विरोचताम्) = विशिष्ट शोभावाला हो। हम हृदयों में प्रभु के प्रकाश को देखनेवाले हों। (सत्पति:) = सज्जनों के पालक प्रभु (स्वः न) = सूर्य के समान (शुक्र शुशुचीत) = दीप्ति के साथ अतिशयेन दीप्त हों।
भावार्थ
हम ज्ञान प्राप्त करें, क्रियाशीलतारूप वज्र के द्वारा वासनाओं का विनाश करें। हमारे हृदयों में प्रभु का प्रकाश हो।
भाषार्थ
हे उपासक! (ज्योतिषा सह) परमेश्वरी ज्योति के साथ-साथ (परशुः) तेरा परशु भी (उद् जायताम्) ऊँचा उठे। तू (पुराणवत्) प्राचीन अर्थात् अनादिकाल के ऋषियों की तरह (ऋतस्य) सच्चाई का (सुदुघा) सुगमता से दोहनेवाला (भूयाः) हो जा। ताकि (भानुना) परमेश्वरीय-प्रभा द्वारा तू (अरुषः) चमकता हुआ (वि रोचताम्) खूब अधिक चमके। और (सत्पतिः) सच्चा-पति परमेश्वर तुझे (स्वः न) सूर्य के समान (शुचिः) पवित्र तथा (शुक्रं शुशुचीत) ज्योतिर्मय रूप में चमका दे।
टिप्पणी
[परशुः=“प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते” (मुण्डक २.५.४) में ओ३म्-जप को धनुष् कहा है। इसी ओ३म्-जप को मन्त्र में परशु कहा है। परशु=कुल्हाड़ा। अथवा परशु का अभिप्राय है तीव्र प्रयत्न।]
विषय
परमेश्वरोपासना
भावार्थ
(परशुः) आत्मा से पर, दूसरे, अन्य अनात्म पदार्थों को काटने में समर्थ ज्ञानरूप वज्र (ज्योतिषा सह) अपने वास्तविक आत्मप्रकाश के साथ (उत् जायताम्) उदित हो। अर्थात् आत्मा के प्रकाश के साथ साथ ज्ञान का उदय हो। और (ऋतस्य) सत्य ज्ञान की (सुदुघा) अच्छे प्रकार देने वाली ऋतम्भरा नाम की प्रज्ञा (पुराणवत्) अति प्राचीन, सबसे पुराण पुरुष परमेश्वर के समान शुद्ध होकर (सह) उसके साथ (भूयाः=भूयात्) तन्मय होकर रहे। और (अरूपः) दीप्तिमान् (शुचिः) शुद्ध आत्मा (भानुना) दीप्ति से या भासमान ज्ञान के प्रकाश से (विरोचताम्) विशेष रूप से चमके। (सत्पतिः) सत्, स्वरूप ब्रह्मज्ञान का पालक होकर (स्वः न) आदित्य के समान (शुक्रम्) अपने शुद्ध, दीप्तिमय स्वरूप को (शुशुचीत) और भी उज्ज्वल करे। राजा के पक्ष में—(परशुः*) शत्रुओं को काटने वाला बल (ज्योतिषा सह उत् जायताम्) पराक्रम या तेज के साथ उदय हो, उठे, बढ़े। (ऋतस्य सुदुघा) सत्य व्यवहार को, यज्ञमय राष्ट्र को अच्छी प्रकार दोहने वाली नीति (पुराणवत्) पूर्ववत् (भूयाः) स्थापित रहे। (अरूषः) कान्तिमान या रोष रहित राजा (शुचिः) शुद्ध निष्कपट होकर (भानुना) तेजसे प्रकाशित हो। और वह (सत्पतिः) सज्जनों का परिपालक होकर (स्वः न) आदित्य के समान (शुक्रम् शुशुचीत) अपने बल को और भी प्रज्ज्वलित करे।
टिप्पणी
* परान् शृणाति इति परशुः, इति दण्डनाथ वृत्तिः। परात् श्यतीति परशुः इति क्षीरस्वामी। आङ् परयोखनिशॄभ्योडिच्चे। मृगष्वादित्वाद्वाकुः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-१० कृष्ण ऋषिः। १२ वसिष्ठः। इन्द्रो देवता। १-१० जगत्यः। ११,१२ त्रिष्टुभौ। द्वादशर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Indr a Devata
Meaning
Let the thunderbolt of power and justice rise, let the voice of truth and law divine be generous, creative and fruitful as ever before, let the bright sun rise with its immaculate light and glory, may the lord protector and promoter of the good reveal the light and power of divinity as the bliss of heaven.9. Let the thunderbolt of power and justice arise, let the voice of truth and law divine be generous, creative and fruitful as ever before, let the bright sun rise with its immaculate light and glory, may the lord protector and promoter of the good reveal the light and power of divinity as the bliss of heaven.
Translation
Let the thunder-axe rise with the lightening, let the pours of water like always, be here and let the radiant sun pure in nature, shine with refulgence. May the man guarding pious ones luminate his gleam like the sun shining in the heaven.
Translation
Let the thunder-axe rise with the lightening, let the pours of water like always; be here and let the radiant sun pure in nature, shine with refulgence. May the man guarding pious ones luminate his gleam like the sun shining in the heaven.
Translation
Let the axe, cutting asunder the forces of evil, rise along with the light of knowledge. Let the truth-bearing sharp intellect easily milking the nector, be in perfect unison with the Primal Lord. Let the refulgent soul specially shine with the brilliance of the spiritual Sun. May the Lord of the virtuous shed His splendour, pure and serene like the Sun.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(उत्) ऊर्ध्वम् (जायताम्) प्रादुर्भवतु (परशुः) कुठारः। वज्रः (ज्योतिषा) प्रकाशेन (सह) (भूयाः) प्रथमस्य मध्यमपुरुषः। भूयात् (ऋतस्य) सत्यस्य (सुदुघा) दुह प्रपूरणे-कप्, टाप्, हस्य घः। सुष्ठु पूरयित्री वेदवाणी (पुराणवत्) पूर्वं यथा (वि) विविधम् (रोचताम्) रोचकः प्रियो भवतु (अरुषः) अ० ३।३।२। पॄनहिकलिभ्य उषच्। उ० ४।७। ऋ गतिप्रापणयोः-उषच्। गतिशीलः (भानुना) स्वप्रकाशेन (शुचिः) शुद्धाचारी (स्वः) आदित्यः (न) यथा (शुक्रम्) शुक्लम्। निर्मलम् (शुशुचीत) शुच शोके-लिङि शपः श्लु। दीप्यताम् (सत्पतिः) सत्पुरुषाणां पालकः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(পরশুঃ) পরশু [কুঠার] (জ্যোতিষা সহ) প্রকাশ সহিত (উৎ জায়তাম্) উচ্চ হোক, (ঋতস্য) সত্যকে (সুদুঘা) উত্তমরূপে পূরণকারী [বেদবাণী] (পুরাণবৎ) পূর্বের ন্যায় (ভূয়াঃ) বর্তমান হোক। (অরুষঃ) গতিমান (শুচিঃ) শুদ্ধাচারী, (সৎপতিঃ) সৎপুরুষদের রক্ষক পুরুষ (ভানুনা) নিজের প্রকাশ দ্বারা (বি) বিবিধ প্রকারে (রোচতাম্) প্রিয় হোক, এবং (শুক্রম্) নির্মল (স্বঃ ন) সূর্যের সমান (শুশুচীত) চমকিত হোক।।৯।।
भावार्थ
যখন বীর সেনাপতি তার উজ্জ্বল তীক্ষ্ণ/ধারালো অস্ত্র দ্বারা শত্রুদের হনন করে সত্যের স্থাপন করে, তখন সে নিজের এই উপকার দ্বারা সূর্যের ন্যায় প্রতাপী হয়ে সকলের নিকট প্রিয় হয়।।৯।।
भाषार्थ
হে উপাসক! (জ্যোতিষা সহ) পরমেশ্বরীয় জ্যোতির সাথে-সাথে (পরশুঃ) তোমার পরশু/কুঠারও (উদ্ জায়তাম্) উঁচুতে উঠুক। তুমি (পুরাণবৎ) প্রাচীন অর্থাৎ অনাদিকালের ঋষিদের মতো (ঋতস্য) সত্যের (সুদুঘা) সুগমতাপূর্বক দোহনকারী (ভূয়াঃ) হও। যাতে (ভানুনা) পরমেশ্বরীয়-প্রভা দ্বারা তুমি (অরুষঃ) চমকিত/দীপ্ত হয়ে (বি রোচতাম্) খুব অধিক চমকিত/দীপ্ত হও। এবং (সৎপতিঃ) ধ্রুব-পতি পরমেশ্বর তোমাকে (স্বঃ ন) সূর্যের সমান (শুচিঃ) পবিত্র তথা (শুক্রং শুশুচীত) জ্যোতির্ময় রূপে চমকিত/দীপ্ত করুক/করুন।
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