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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 11
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - तक्मनाशनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त
    65

    मा स्मै॒तान्त्सखी॑न्कुरुथा ब॒लासं॑ का॒समु॑द्यु॒गम्। मा स्मातो॒ऽर्वाङैः पुन॒स्तत्त्वा॑ तक्म॒न्नुप॑ ब्रुवे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । स्म॒ । ए॒तान् । सखी॑न् । कु॒रु॒था॒: । ब॒लास॑म् । का॒सम् । उ॒त्ऽयु॒गम् । मा । स्म॒ । अत॑: । अ॒र्वाङ् । आ । ऐ॒: । पुन॑: । तत् । त्वा॒ । त॒क्म॒न् । उप॑ । ब्रु॒वे॒ ॥२२.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा स्मैतान्त्सखीन्कुरुथा बलासं कासमुद्युगम्। मा स्मातोऽर्वाङैः पुनस्तत्त्वा तक्मन्नुप ब्रुवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । स्म । एतान् । सखीन् । कुरुथा: । बलासम् । कासम् । उत्ऽयुगम् । मा । स्म । अत: । अर्वाङ् । आ । ऐ: । पुन: । तत् । त्वा । तक्मन् । उप । ब्रुवे ॥२२.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (बलासम्) बल गिरानेवाले सन्निपात कफ आदि, (कासम्) कुत्सित शब्द करनेवाली खाँसी और (उद्युगम्) सुख रोकनेवाले, क्षयी रोग, (एतान्) इनको (सखीन्) अपना मित्र [मा स्म कुरुथाः] कभी मत बना। [अतः] उस स्थान से (पुनः) फिर (अर्वाङ्) हमारे सन्मुख होकर (मा स्म आ ऐः) कभी मत आ। [तत्] यह बात (तक्मन्) हे ज्वर ! (त्वा) तुझ से (उप ब्रुवे) मैं कहे देता हूँ ॥११॥

    भावार्थ

    सद्वैद्य प्रयत्न करे, जिससे ज्वर के साथ अन्य रोग न होने पावें और ज्वर छुटता चला जावे ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(स्म) अवश्यम् (एतान्) निर्दिष्टान् (सखीन्) मित्रवत्सहायकान् (मा कुरुथाः) लङि रूपम्, माङि अडभावः। मा कुरु (बलासम्) अ० ४।९।८। बलस्य क्षेप्तारम्। श्लेष्मविकारम् (कासम्) अ० १।१२।३। रोगविशेषम्। (उद्युगम्) उत्+युगि वर्जने−घञर्थे क, नलोपः। सुखवर्जकं क्षयरोगम् (अतः) तस्मात् स्थानात् (अर्वाङ्) अ० ३।२।३। अस्मदभिमुखः सन् (मा आ ऐः) इण् गतौ−लङ्। नागच्छ (पुनः) पश्चात् (तत्) वचनम् (त्वा) त्वाम् (तक्मन्) हे ज्वर ! (उप) उपेत्य (ब्रुवे) कथयामि ॥

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    विषय

    बलासं, कासं, उद्यगम्

    पदार्थ

    १. हे (तक्मन्) = ज्वर ! तू (बलासम्) = कफ़ को, (कासम्) = खाँसी को (उधुगम्) = क्षय को [युगि वर्जने] (एतान्) = इन सबको (सखीन् मा स्म कुरुथा:) = मित्र मत बना। ज्वर के साथ कफ़ [बलगम], खाँसी व क्षय का उपद्रव न खड़ा हो जाए। २. (अतः अर्वाङ्मा स्म ऐ:) = इसलिए तू हमारे समीप मत आ। ज्चर के साथ कितने ही उपद्रव आ खड़े होते है, अतः यह हमारे समीप नहीं आये तभी ठीक है। पुनः फिर मैं (त्वा) = तुझे (तत् उपबुवे) = वह बात कहता हूँ कि तू हमारे समीप मत आ।

    भावार्थ

    ज्वर के साथ कफ, खाँसी, क्षय आदि कितने ही उपद्रव उठ खड़े होते है, अत: ज्वर हमारे समीप न ही आये।

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    भाषार्थ

    (एतान) इन अर्थात् (बलासम्) बल्गम, (कासम) खाँसी, (उद्युगम) और हिचकी को (सखीन्) साथी (मा स्म कुरुथाः) तू न कर, (अत:) इस रुग्ण व्यक्ति से (अर्वाङ) इधर हमारी और (मा, स्म, आ, ऐ:) तू न आ, (तत्) यह (तक्मन्) हे तक्मा-ज्वर! (पुनः) फिर (त्वा) तुझे (उपब्रुवे) मैं कहता हूँ।

    टिप्पणी

    [बलासम्= बलम् अस्यति प्रक्षिपतीति, जो बल का प्रक्षेपण कर दे: कफ। बलगम। उद्युगम्= उद् (ऊपर की ओर) +युजिर् योगे (रुधादिः); तक्मा ज्वर में बलास, खाँसी और हिचकी हो जाती हैं।]

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    विषय

    ज्वर का निदान और चिकित्सा।

    भावार्थ

    हे (तक्मन्) ज्वर ! तू (बलासं) कफ़, (कासम्) खांसी और (उत्-युगम्) क्षयी (एतान्) इन रोगों को (सखीन्) अपना साथी, संगी, मित्र (मा स्म कुरुथाः) मत बना। (अतः अर्वाङ्) अब से आगे (मा स्म ऐः) तू मत आ। हे (तक्मन्) ज्वर ! (तत् त्वा) यह तुझे (पुनः उप बुवे) मैं बार बार कहता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरसो ऋषयः। तक्मनाशनो देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। (१ भुरिक्) ५ विराट् पथ्याबृहती। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure of Fever

    Meaning

    Let fever never come with its concomitant ailments such as cough, dry or with sputum, or consumption. It should be cotrolled, not allowed to grow on. I say this again and again.

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    Translation

    May you not these your companions - the wasting disease (balasa), the cough and collapse (udyuga) Do not come nearer than this to us, this I request you once again.

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    Translation

    Let this fever not accompany its friends-cough, dry or wet cough and consumption, let it not come near us and I, the physician warn it again.

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    Translation

    Take none of these to be thy friends, cough, or consumption, or a wasting disease: never come thence again to us, O Fever, thus I counsel thee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(स्म) अवश्यम् (एतान्) निर्दिष्टान् (सखीन्) मित्रवत्सहायकान् (मा कुरुथाः) लङि रूपम्, माङि अडभावः। मा कुरु (बलासम्) अ० ४।९।८। बलस्य क्षेप्तारम्। श्लेष्मविकारम् (कासम्) अ० १।१२।३। रोगविशेषम्। (उद्युगम्) उत्+युगि वर्जने−घञर्थे क, नलोपः। सुखवर्जकं क्षयरोगम् (अतः) तस्मात् स्थानात् (अर्वाङ्) अ० ३।२।३। अस्मदभिमुखः सन् (मा आ ऐः) इण् गतौ−लङ्। नागच्छ (पुनः) पश्चात् (तत्) वचनम् (त्वा) त्वाम् (तक्मन्) हे ज्वर ! (उप) उपेत्य (ब्रुवे) कथयामि ॥

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