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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 9
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - तक्मनाशनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त
    61

    अ॑न्यक्षे॒त्रे न र॑मसे व॒शी सन्मृ॑डयासि नः। अभू॑दु॒ प्रार्थ॑स्त॒क्मा स ग॑मिष्यति॒ बल्हि॑कान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न्य॒ऽक्षे॒त्रे । न । र॒म॒से॒ । व॒शी । सन् । मृ॒ड॒य॒सि॒ । न॒: । अभू॑त् । ऊं॒ इति॑ । प्र॒ऽअर्थ॑: । त॒क्मा । स: । ग॒मि॒ष्य॒ति॒ । बल्हि॑कान् ॥२२.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्यक्षेत्रे न रमसे वशी सन्मृडयासि नः। अभूदु प्रार्थस्तक्मा स गमिष्यति बल्हिकान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अन्यऽक्षेत्रे । न । रमसे । वशी । सन् । मृडयसि । न: । अभूत् । ऊं इति । प्रऽअर्थ: । तक्मा । स: । गमिष्यति । बल्हिकान् ॥२२.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (अन्यक्षेत्रे) दूर देश में (न) इस समय (वशी) वश में करनेवाला (सन्) होकर (रमसे=रमस्व) तू ठहर, और (नः) हमें (मृडयासि) सुख दे। (तक्मा) ज्वर (प्रार्थः) चालू (उ) अवश्य (अभूत्) हो गया है, (सः) वह (बल्हिकान्) हिंसावाले देशों को (गमिष्यति) चला जाएगा ॥९॥

    भावार्थ

    सदाचारी पुरुष प्रयत्न करके नीरोग, और हिंसाप्राय लोग रोगग्रसित रहते हैं ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(अन्यक्षेत्रे) दूरदेशे (न) सम्प्रति−निरु० ७।३१। (रमसे) लोडर्थे−लट्। रमस्व। विरम (वशी) अ० १।२१।१। वशयिता (मृडयासि) लेटि रूपम्। सुखयेः (नः) अस्मान् (अभूत्) (उ) अवश्यम् (प्रार्थः) उषिकुषिगार्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। इति ऋ गतौ−थन्। प्रकर्षेण गतिशीलः (तक्मा) ज्वरः (सः) (गमिष्यति) प्राप्स्यति (बल्हिकान्) म० ५। हिंसादेशान् ॥

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    विषय

    प्रार्थ: तक्मा

    पदार्थ

    १. हे तक्मन्! तू (अन्यक्षेत्रे) = इस असाधारण मानव शरीर में [Extra-ordinary] (न रमसे) = क्रीड़ा नहीं करता। (वशी सन्) = वश में हुआ-हुआ-काबू किया हुआ तू (नः मृडयासि) = हमें सुखी करता है। २. (तक्मा) = यह ज्वर (उ) = निश्चय से (प्रार्थः अभूत्) = प्रकृष्ट याचनावाला हुआ, अर्थात् जब इस ज्वर को मानव-शरीर में स्थान न मिला तो यह मानो दीनता से पूछता है कि मैं कहाँ जाऊँ? तो इसे यही उत्तर मिलता है कि तू बल्हिकों के प्रति जा, अत: (स:) = वह ज्वर (बल्हिकान् गमिष्याति) = बहुत बोलनेवाले, हिंसक वृत्तिवाले [मांसाहारी], घरों में घुसे रहनेवाले लोगों को प्राप्त होगा।

    भावार्थ

    ज्वर अद्भुत मानव-शरीर में क्रीडा न करता हुआ, हमें सुखी करता है, यह बल्हिकों को ही प्रास होता है।

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    भाषार्थ

    (अन्यक्षेत्रे) अन्य प्रदेश अर्थात् हमारे प्रदेशों से भिन्न महावृष आदि प्रदेशों में (न रमसे) यदि तू रमण नहीं करता, [उनमें यदि तू नहीं रहना चाहता] तो (वशी सन्) हमारे वश में होकर (न:) हमें (मृडयासि) तू सुख प्रदान कर। (तक्मा) तक्मा ज्वर (प्रार्थः) प्रगत-प्रयोजन अर्थात् निष्प्रयोजनवाला१, यहाँ के प्रदेशों से (अभूत्) हो गया है, (स:) वह (गमिष्यति) चला जायगा (बल्हिकान्) बल्हिक प्रदेशों को।

    टिप्पणी

    [महावृष और बल्हिक प्रदेशों से भिन्न क्षेत्रों में तक्मा नहीं होता, अतः इन भिन्न क्षेत्रों में वह रमण नहीं कर पाता, अत: इन प्रदेशों के लोग सुखी रहते हैं। इन प्रदेशों में तक्मा का निवास निष्प्रयोजन हो गया है। इसलिए वह इन प्रदेशों को त्याग कर बल्हिक प्रदेशों को चला जाएगा, जहाँ कि उसे मौका मिल सके निज वृद्धि का। वैदिक वर्णन बहुधा कवियों की शैली में हुए हैं, अत: अचेतन तक्मा को चेतन कल्पित कर उसमें चेतन धर्मों और कृत्यों का आरोप किया है। यथा "चेतनावद हि स्तुतयो भवन्ति" "अचेतनान्यप्येवं स्तूयन्ते यथाक्षप्रभृतीन्योषधिपर्यन्तानि" (निरुक्त ७.२.६, ७.२.७ प्रकरण)।] [१. इन प्रदेशों में वह निवासियों के वश में रहता है, परवश होकर रहता है, निज प्रभाव-प्रदर्शन नहीं कर पाता। उसका रहना अब निष्प्रयोजन हो गया है, अत: वह बल्हिक आदि प्रदेशों में चला जाएगा, यह निश्चित है।]

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    विषय

    ज्वर का निदान और चिकित्सा।

    भावार्थ

    (अन्य-क्षेत्रे) मनुष्य से अतिरिक्त शरीर में (न रमसे) तू बहुत क्रीड़ा नहीं करता। (वशी सन्) जब तू वश में कर लिया जाता है (नः मृडयासि) तब तू हमें सुख भी देता है। जब भू (तक्मा) कष्टदायी ज्वर (प्र-अर्थः अभूत् उ) प्रबल हो जाता है। तब (सः) वह तू (बल्हिकान्) बल्हिक अर्थात् बलवान् देहों में भी (गमिष्यति) चला जाता है, प्रवेश कर जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरसो ऋषयः। तक्मनाशनो देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। (१ भुरिक्) ५ विराट् पथ्याबृहती। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure of Fever

    Meaning

    The fever does not affect other bodies than human, and relief is felt only when it is controlled. And when it is in bushy and marshy places of operssive climate, there it rages as epidemic.

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    Translation

    You do not delight in other's region. Being under control, you bring happiness to us. The fever has agreed to our request and to Balhikas it will go.

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    Translation

    This fever does not generally enjoy increase in the bodies other than of the human beings. When it is under-control it gives relief to us. If this fever is sever let it go to the places of dampness.

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    Translation

    Fever, thou joyest not in a body, other than that of a human being, subdued, thou wilt be kind to us. When thou becomest powerful, thou attackest even the able-bodied persons!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(अन्यक्षेत्रे) दूरदेशे (न) सम्प्रति−निरु० ७।३१। (रमसे) लोडर्थे−लट्। रमस्व। विरम (वशी) अ० १।२१।१। वशयिता (मृडयासि) लेटि रूपम्। सुखयेः (नः) अस्मान् (अभूत्) (उ) अवश्यम् (प्रार्थः) उषिकुषिगार्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। इति ऋ गतौ−थन्। प्रकर्षेण गतिशीलः (तक्मा) ज्वरः (सः) (गमिष्यति) प्राप्स्यति (बल्हिकान्) म० ५। हिंसादेशान् ॥

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