अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 8
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - तक्मनाशनः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त
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म॑हावृ॒षान्मूज॑वतो॒ बन्ध्व॑द्धि प॒रेत्य॑। प्रैतानि॑ त॒क्मने॑ ब्रूमो अन्यक्षे॒त्राणि॒ वा इ॒मा ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हा॒ऽवृ॒षान् । मूज॑ऽवत: । बन्धु॑।अ॒ध्दि॒ । प॒रा॒ऽइत्य॑ ।प्र । ए॒तानि॑ । त॒क्मने॑ । ब्रू॒म॒: । अ॒न्य॒ऽक्षे॒त्राणि॑ । वै । इ॒मा ॥२२.८॥
स्वर रहित मन्त्र
महावृषान्मूजवतो बन्ध्वद्धि परेत्य। प्रैतानि तक्मने ब्रूमो अन्यक्षेत्राणि वा इमा ॥
स्वर रहित पद पाठमहाऽवृषान् । मूजऽवत: । बन्धु।अध्दि । पराऽइत्य ।प्र । एतानि । तक्मने । ब्रूम: । अन्यऽक्षेत्राणि । वै । इमा ॥२२.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोग नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(परेत्य) दूर जाकर (महावृषान्) बड़ी वृष्टिवाले देशों और (मूजवतः) मूजवाले पहाड़ों, (बन्धु=बन्धून्) अपने बन्धुओं को (अद्धि) खाले। (एतानि) इन और (इमा=इमानि) इन (अन्यक्षेत्राणि) अन्य निवासस्थानों को (तक्मने) ज्वर के लिये (वै) अवश्य (प्रब्रूमः) हम बताये देते हैं ॥८॥
भावार्थ
अधिक वृष्टिवाले, अधिक तृणवाले, और इसी प्रकार अधिक तापवाले देशों में प्राणी ज्वर से पीड़ित रहते हैं। इससे मनुष्य उचित प्रबन्ध रक्खें ॥८॥
टिप्पणी
८−(महावृषान्) म० ५। अतिवृष्टियुक्तान् देशान् (मूजवतः) म० ६। (बन्धु) विभक्तिलोपः। स्वबन्धून् (परेत्य) दूरे गत्वा (प्र) प्रकर्षेण (एतानि) समीपस्थानि (तक्मने) ज्वराय (ब्रूमः) कथयामः (अन्यक्षेत्राणि) क्षि निवासे−ष्ट्रन्। अन्यनिवासस्थानानि (वै) निश्चयेन (इमा) इमानि पार्श्वस्थानि ॥
विषय
महावृषान् मूजवत:
पदार्थ
१. हे ज्वर ! तू (महावृषान्) = अति वृष्टिवाले प्रदेशों को तथा (मूजवत:) = घासवाले प्रदेशों को (परेत्य) = सुदूर प्राप्त होकर (बन्धु अद्धिः) = उन्हें बाँधनेवाला होकर खानेवाला बन। तेरा बन्धन इन प्रदेशों को ही प्राप्त हो-इन्हें ही तू खा। २. (एतानि) = इन अतिवृष्टिवाले व घासवाले प्रदेशों को ही (तबमने बूमः) = ज्वर के लिए प्रकर्षेण कहते हैं। (इमा) = ये हमारे शरीर तो (वा) = निश्चत से (अन्यक्षेत्राणि) = अन्य ही क्षेत्र हैं-ये वे क्षेत्र नहीं जहाँ ज्वर आया करता है।
भावार्थ
ज्वर अतिवृष्टिवाले, घास-फूस से भरे प्रदेशों में ही लोगों को जकड़कर पीड़ित करनेवाला हो। हमारे शरीर ज्वर के अधिष्ठान नहीं हैं।
भाषार्थ
(महावृषान्, मूजवतः परेत्य) महावर्षावाले और मूँजवाले प्रदेशों को, जो कि परे हैं, उन्हें प्राप्त करके, (बन्धु) उन बन्धुओं को (अद्धि) खा उनका भक्षण कर। (एतानि) इन [महावृष आदि] प्रदेशों को (तक्मने) तक्मा के लिए (प्रब्रूमः) हम कहते हैं, निर्दिष्ट करते हैं, (वै) निश्चय से (इमा=इमानि) ये (अन्यक्षेत्राणि) अन्य प्रदेश हैं जो कि तेरे निवास के योग्य हैं।
विषय
ज्वर का निदान और चिकित्सा।
भावार्थ
(महा-वृषान्) बड़े बलवान् (मूज-वतः) देहधारियों को (बन्धु) अपना बन्धु बना कर (अद्धि) तू खा डालता है और (परा-इत्य) उनसे भी आगे बढकर प्राणियों का नाश करता है। (एतानि) ये तो (तक्मने) ज्वर के क्षेत्र हैं ही। इनसे (अन्य-क्षेत्राणि) अन्य स्थान या देह भी (इमा) हैं इनको भी ज्वर के क्षेत्र ही (प्र-ब्रूमः) हम बतलाते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरसो ऋषयः। तक्मनाशनो देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। (१ भुरिक्) ५ विराट् पथ्याबृहती। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Cure of Fever
Meaning
Go far to rainy areas, to grassy areas, and destroy your own species. These are the breeding areas we say, and others also can be.
Translation
Having gone far away, may you eat up the regions of much rain-fall and the regions, where the munja grass grows, your own kins. We allow these regions to fever or other regions even farther than these.
Translation
Let this fever going to the places of heavy rainfall and the places of Munja grass eat its own germinators. We the physicians declare that these and those other are the Places of fever.
Translation
Go hence and eat thy kinsmen in grassy and marshy places. These and those foreign regions we proclaim to Fever for its home.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(महावृषान्) म० ५। अतिवृष्टियुक्तान् देशान् (मूजवतः) म० ६। (बन्धु) विभक्तिलोपः। स्वबन्धून् (परेत्य) दूरे गत्वा (प्र) प्रकर्षेण (एतानि) समीपस्थानि (तक्मने) ज्वराय (ब्रूमः) कथयामः (अन्यक्षेत्राणि) क्षि निवासे−ष्ट्रन्। अन्यनिवासस्थानानि (वै) निश्चयेन (इमा) इमानि पार्श्वस्थानि ॥
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