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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 20
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - गौः, विराट्, अध्यात्मम् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आत्मा सूक्त
    70

    सू॑यव॒साद्भग॑वती॒ हि भू॒या अधा॑ व॒यं भग॑वन्तः स्याम। अ॒द्धि तृण॑मघ्न्ये विश्व॒दानीं॒ पिब॑ शु॒द्धमु॑द॒कमा॒चर॑न्ती ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒य॒व॒स॒ऽअत् । भग॑ऽवती । हि । भू॒या: । अध॑ । व॒यम् । भग॑ऽवन्त: । स्या॒म॒ । अ॒ध्दि । तृण॑म् । अ॒घ्न्ये॒ । वि॒श्व॒ऽदानी॑म् । पिब॑ । शु॒ध्दम् । उ॒द॒कम् । आ॒ऽचर॑न्ती ॥१५.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूयवसाद्भगवती हि भूया अधा वयं भगवन्तः स्याम। अद्धि तृणमघ्न्ये विश्वदानीं पिब शुद्धमुदकमाचरन्ती ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुयवसऽअत् । भगऽवती । हि । भूया: । अध । वयम् । भगऽवन्त: । स्याम । अध्दि । तृणम् । अघ्न्ये । विश्वऽदानीम् । पिब । शुध्दम् । उदकम् । आऽचरन्ती ॥१५.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    जीवात्मा और परमात्मा के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे प्रजा, सब स्त्री-पुरुषो !] (सूयवसात्) सुन्दर अन्न आदि भोगनेवाली और (भगवती) बहुत ऐश्वर्यवाली (हि) ही (भूयाः) हो, (अध) फिर (वयम्) हम लोग (भगवन्तः) बड़े ऐश्वर्यवाले (स्याम) होवें। (अघ्न्ये) हे हिंसा न करनेवाली प्रजा ! (विश्वदानीम्) समस्त दानों की क्रिया का (आचरन्ती) आचरण करती हुई तू [हिंसा न करनेवाली गो के समान] (तृणम्) घास [अल्पमूल्य पदार्थ] को (अद्धि) खा और (शुद्धम्) शुद्ध (उदकम्) जल को (पिब) पी ॥२०॥

    भावार्थ

    जैसे गौ अल्पमूल्य घास खाकर और शुद्ध जल पीकर दूध-घी आदि देकर उपकार करती है, वैसे ही मनुष्य थोड़े व्यय से शुद्ध आहार-विहार करके संसार का सदा उपकार करें ॥२०॥ यह मन्त्र ऊपर आ चुका है-अ० ७।७३।११। और (अध) के स्थान पर ऋग्वेद में [अथो] है−१।१६४।४०। तथा नि–० ११।४४ ॥

    टिप्पणी

    २०-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।७३।११ ॥

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    विषय

    सूयवसाद् भगवती

    पदार्थ

    इस मन्त्र की व्याख्या अथर्व०७७३।११ पर द्रष्टव्य है।

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    भाषार्थ

    [(१) (अन्ये) हे अगम्ये विद्युत् (भगवती) ऐश्वर्यसम्पन्ना तू हो, (अधा) तदनन्तर (वयम्) हम (भगवन्तः) ऐश्वर्यौ वाले (स्याम) हों। (सूयवसाद्) तू उत्तम-यवस का भक्षण करती है, (तृणम्) तू निःसार तृणों को (अद्धि) खाया कर (आ चरन्ती) मेघों में गति करती हुई तू (विश्वदानीम्) सदा (शुद्धम्, उबकम् ,पिब) मेषस्थ शुद्ध उदक का पान किया कर। [विद्युत् अगम्या है, मेघीय विद्युत् प्राप्त नहीं की जा सकती। अघ्न्या= अ+हन् (मतौ) +यक् (उणा० ४।११३)। विद्युत् वर्षा द्वारा ऐश्वर्योत्पादिका है। इस के ऐश्वर्यवती होते हम भी ऐश्वर्यवान् होते हैं। यह जब वज्रपात करती है तब उत्तम-यवसों को भी खा जाती है, भस्मीभूत कर देती है। उत्तम यवस हैं फलदार घने वृक्ष आदि। कवित्व भाषा में इसे कहा है कि तू निःसार तृणों को ही खाया कर, उन्हीं पर ही तेरा वज्रपात हुआ करे। (२) महर्षि दयानन्द कृत अर्थ– हे (अघ्न्ये) न हनन योग्य गौ के समान वर्तमान विदुषी ! तु (सूयवसात्) सुन्दर सुखों को भोगने वाली, (भगवती) बहुत ऐश्वर्य वाली (भूयाः) हो, कि (हि) जिस कारण (वयय्) हम लोग (भगवन्तः) बहुत ऐश्वर्ययुक्त (स्याम) हों। जैसे कि (तृणम्) तृण को खा (शुद्धम्) शुद्ध (उदकम्) जल को पी, और दुग्ध देकर बछड़े आदि को सुखी करती है वैसे (विश्वदानीम्) समस्त जिस में दान,— उस क्रिया का (आचरन्ती) सत्य-आचरण करती हुई, (अथो) इस के अनन्तर सुख को (अद्धि) भोग, और विद्यारस को (पिब) पी। [मन्त्र में वाचक लुप्तोपमालंकार है] (ऋ० १।१६४।४०)]

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    विषय

    आत्मा और परमात्मा का ज्ञान।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो अथर्व० [ ७। ७३। ११ ]।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। गौः, विराड् आत्मा च देवताः। १, ७, १४, १७, १८ जगत्यः। २१ पञ्चपदा शक्वरी। २३, २४ चतुष्पदा पुरस्कृतिर्भुरिक् अतिजगती। २, २६ भुरिजौ। २, ६, ८, १३, १५, १६, १९, २०, २२, २५, २७, २८ त्रिष्टुभः। अष्टाविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Spiritual Realisation

    Meaning

    Adorable Voice of knowledge, vision and wisdom, be great and illustrious with holy food for mind and soul and then, we pray, we too may have the honour and prosperity of knowledge and well being. Holy and inviolable as mother cow living on pure food and drinking pure water, and conducting yourself always with kindness and grace, bless us with the generous gift of knowledge and the joy of life.

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    Translation

    Comé, may you be rich in milk through abundant fodder, that we may also be rich (in abundance); eat grass at all seasons and roaming (at will), drink-pure water. (Also Re. I.164.40)

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    Translation

    May this cow (Aghnya) eating the nice fodder of barley be fortunate enough and may we also have a plenty of fortunes let it eat grass always and drink pure water grazing in the pasture.

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    Translation

    Fortunate mayst thou be with goodly pasture, and may we also be exceeding wealthy, Feed on the grass, O indestructible cow, through all the seasons, and roaming everywhere drink limpid water.

    Footnote

    See Atharva, 7-73-11.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।७३।११ ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    সূয়বসাদ্ভগবতী হি ভূয়া অধা বয়ং ভগবন্তঃ স্যাম।

    অদ্ধি তৃণমঘ্ন্যে বিশ্বদানীং পিব শুদ্ধমুদকমাচরন্তী ।।৪৮।।

    (অথর্ব ৯।১০।২০)

    পদার্থঃ (সূয়বসাৎ) উৎকৃষ্ট অন্ন ভোগকারী প্রজা (ভগবতী হি ভূয়াঃ) বহু ঐশ্বর্যবান হোক। (অধ) পুনঃ (বয়ম্) আমরাও (ভগবন্তঃ স্যাম) ঐশ্বর্যবান হই। (অঘ্ন্যে) হে অহিংসক মানুষ! (বিশ্বদানীং) সমস্ত প্রকার দানকর্মের (আচরন্তী) আচরণ করে তুমি [হিংসার অযোগ্য গো এর মত] (তৃণম্) তৃণাদি পদার্থকে (অদ্ধি) খাও ও (শুদ্ধম্ উদকং পিব) শুদ্ধ জল পান করো।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ পরমাত্মা বেদ দ্বারা আমাদের উপদেশ দিচ্ছেন যে, হে আমার প্রজা! যেভাবে গরু সাধারণ ঘাস খেয়ে শুদ্ধ জল পান করে দুগ্ধাদি প্রদান করে উপকার করে থাকে, ঠিক তেমনি তোমরাও স্বল্পমূল্যে আহারাদি সম্পন্ন করে দানাদি কর্মের মাধ্যমে সংসারের উপকার করো। তোমাদের জীবন শুদ্ধ হোক ।।৪৮।।

     

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