Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 2 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 17
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कामः छन्दः - जगती सूक्तम् - काम सूक्त
    44

    येन॑ दे॒वा असु॑रा॒न्प्राणु॑दन्त॒ येनेन्द्रो॒ दस्यू॑नध॒मं तमो॑ नि॒नाय॑। तेन॒ त्वं का॑म॒ मम॒ ये स॒पत्ना॒स्तान॒स्माल्लो॒कात्प्र णु॑दस्व दू॒रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । दे॒वा: । असु॑रान् । प्र॒ऽअनु॑दन्त ।येन॑ । इन्द्र॑: । दस्यू॑न् । अ॒ध॒मम् । तम॑: । नि॒नाय॑ । तेन॑ । त्वम् । का॒म॒ । मम॑ । ये । स॒ऽपत्ना॑: । तान् । अ॒स्मात् । लो॒कात् । प्र । नु॒द॒स्व॒ । दू॒रम् ॥२.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन देवा असुरान्प्राणुदन्त येनेन्द्रो दस्यूनधमं तमो निनाय। तेन त्वं काम मम ये सपत्नास्तानस्माल्लोकात्प्र णुदस्व दूरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । देवा: । असुरान् । प्रऽअनुदन्त ।येन । इन्द्र: । दस्यून् । अधमम् । तम: । निनाय । तेन । त्वम् । काम । मम । ये । सऽपत्ना: । तान् । अस्मात् । लोकात् । प्र । नुदस्व । दूरम् ॥२.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (येन) जिस [उपाय] से (देवाः) विजयी लोगों ने (असुरान्) असुरों [विद्वानों के विरोधियों] को (प्राणुदन्त) निकाल दिया है, (येन) जिस [यत्न] से (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुष ने (दस्यून्) डाकुओं को (अधमम् तमः) नीचे अन्धकार में (निनाय) पहुँचाया था। (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर] (त्वम्) तू (मम) मेरे (ये) जो (सपत्नाः) शत्रु हैं, (तेन) उसी [उपाय] से (तान्) उनको (अस्मात् लोकात्) इस स्थान से (दूरम्) दूर (प्र णुदस्व) निकाल दे ॥१७॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर के ज्ञान रखनेवाले पूर्वज विद्वानों और वीरों के समान उपाय करके दुराचारियों का नाश करें ॥१७॥

    टिप्पणी

    १७−(येन) प्रयत्नेन (देवाः) विजिगीषवः (असुरान्) सुरविरोधिनो दुष्टान् (प्राणुदन्त) प्रेरितवन्तः (येन) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (दस्यून्) अ० २।१४।५। चोरादीन् (अधमम्) कुत्सितम् (तमः) अन्धकारम् (निनाय) प्रापितवान् (तेन) उपायेन (अस्मात्) दृश्यमानात् (लोकात्) स्थानात् (प्रणुदस्व) बहिष्कुरु। अन्यद् गतम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    देव+इन्द्र

    पदार्थ

    १. (येन) = जिस बल से (देवा:) = देववृत्ति के पुरुष (असुरान् प्राणुदन्त) = आसुरभावों को अपने से दूर धकेल देते हैं, (येन) = जिस बल से (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय पुरुष (दस्यून्) = 'काम-क्रोध-लोभ' रूप विनाशक वृत्तियों को (अधमं तमः निनाय) = घने अँधेरे में पहुँचा देता है. हे (काम) = कमनीय प्रभो! (तेन) = उस बल से (त्वम्) = आप (तान्) = उन्हें (अस्मात् लोकात्) = इस लोक से (दूरं प्रणुदस्व) = दूर धकेल दो, (ये) = जोकि (मम सपत्ना:) = मेरे शत्र हैं।

    भावार्थ

    हम 'देव व इन्द्र'-दिव्यवृत्ति के व जितेन्द्रिय बनकर आसुर व दास्यव भावों को-अपने ही पोषण [आसुर] व दूसरों के विनाश [दस्यु] के भावों को अपने से दूर धकेल दें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (येन) जिस वेद द्वारा (देवाः) दिव्य लोगों ने (असुरान्) आसुर विचारों को (प्राणुदन्त) धकेला, (येन) जिस वेद द्वारा (इन्द्रः) प्रबुद्ध जीवात्मा ने (दस्यून्) उपक्षयकारी भावों को (अधमम्, तमः) अधमकोटि के तमोगुण में (निनाय) प्राप्त कर दिया, (तेन) उस वेद द्वारा (काम) हे कमनीय परमेश्वर ! (त्वम्) तू (मम ये सपत्नाः) मेरे जो सपत्न हैं, (तान्) उन्हें (अस्मात् लोकात्) इस पृथिवी लोक से (दूरम्) दूर (प्रणुदस्व) धकेल दे।

    टिप्पणी

    [असुरान्= असु हैं "प्राण" + राः (वाले), प्राणपोषण तत्पर, जिन्हें कि अध्यात्म तत्वों की परवाह नहीं। दस्यून्= दसु उपक्षये (दिवादिः)। दस्युभाव तमोगुण में पनपते हैं]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रजापति परमेश्वर और राजा और संकल्प का ‘काम’ पद द्वारा वर्णन।

    भावार्थ

    (येन) जिस उपरोक्त साधन से (देवाः) विद्वान् गण (असुरान्) आसुर-भावों को (प्र अनुदन्त) धकेलते, दूर करते हैं और (येन) जिस उपरोक्त साधन के सामर्थ्य से (इन्द्रः) आत्मिक शक्ति सम्पन्न व्यक्ति (दस्यून्) विनाशकारी इन अन्तःशत्रुओं को (अधमं तमः) अज्ञान पक्ष में (निनाय) डालता है, हे (काम) मेरे सत्संकल्प ! (मम) मेरे (ये) जो (सपत्नाः) अन्तःशत्रु हैं (तेन) उस उपरोक्त बल से (तान्) उनको (अस्मात् लोकात्) इस मेरे शरीर और लोक से (दूरम्) दूर (प्र नुदस्व) हटा दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः॥ कामो देवता॥ १, ४, ६, ९, १०, १३, १९, २४ अनुष्टुभः। ५ अति जगती। ८ आर्चीपंक्तिः। ११, २०, २३ भुरिजः। १२ अनुष्टुप्। ७, १४, १५ १७, १८, २१, २२ अतिजगत्यः। १६ चतुष्पदा शक्वरीगर्भा पराजगती। पञ्चविंशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kama: Love and Determination

    Meaning

    By the force and armour by which the Devas, divinities of nature and nobilities of humanity, ward off and throw away the destructive elements of life, by which Indra, the ruling power, throws the saboteurs and other lawless forces into deepest darkness, by that love, knowledge and power of action throw out far from this world whatever adverse elements there may be against us, O power of love and determination.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    With which the enlightened ones repel the life-enjoyers (asuras), with which the resplendent self sends the robbers to the worst darkness (adhamam tamah), with that strength, O Kama, may you drive far away from this world those, who are my rivals.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the noble and firm intention send my internal enemies for away from this world of mine through the force where- with the Sun-rays repell the disease-germs and wherewith Indra, the powerful electricity cost down the clouds in deepest darkness to release the waters contained by them.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Far from this body of mine, O iron determination, drive thou my moral foes with that selfsame weapon of Vedic knowledge, wherewith the learned repelled vices, and a spiritually advanced soul cast down immoral tendencies into deepest darkness!

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(येन) प्रयत्नेन (देवाः) विजिगीषवः (असुरान्) सुरविरोधिनो दुष्टान् (प्राणुदन्त) प्रेरितवन्तः (येन) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (दस्यून्) अ० २।१४।५। चोरादीन् (अधमम्) कुत्सितम् (तमः) अन्धकारम् (निनाय) प्रापितवान् (तेन) उपायेन (अस्मात्) दृश्यमानात् (लोकात्) स्थानात् (प्रणुदस्व) बहिष्कुरु। अन्यद् गतम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top