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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कामः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काम सूक्त
    66

    नु॒दस्व॑ काम॒ प्र णु॑दस्व का॒माव॑र्तिं यन्तु॒ मम॒ ये स॒पत्नाः॑। तेषां॑ नु॒त्ताना॑मध॒मा तमां॒स्यग्ने॒ वास्तू॑नि॒ निर्द॑ह॒ त्वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नु॒दस्व॑ । का॒म॒ । प्र । नु॒द॒स्व॒ । का॒म॒ । अव॑र्तिम् । य॒न्तु॒ । मम॑ । ये । स॒ऽपत्ना॑: । तेषा॑म् । नु॒त्ताना॑म् । अ॒ध॒मा । तमां॑सि । अग्ने॑ । वास्तू॑नि । नि: । द॒ह॒ । त्वम् ॥२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नुदस्व काम प्र णुदस्व कामावर्तिं यन्तु मम ये सपत्नाः। तेषां नुत्तानामधमा तमांस्यग्ने वास्तूनि निर्दह त्वम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नुदस्व । काम । प्र । नुदस्व । काम । अवर्तिम् । यन्तु । मम । ये । सऽपत्ना: । तेषाम् । नुत्तानाम् । अधमा । तमांसि । अग्ने । वास्तूनि । नि: । दह । त्वम् ॥२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर !] [हमें] (नुदस्व) बढ़ा, (काम) हे कमनीय ! (प्र णुदस्व) आगे बढ़ा, वे लोग (अवर्तिम्) निर्जीविका को (यन्तु) प्राप्त हों, (ये) जो (मम) मेरे (सपत्नाः) वैरी हैं। (अग्ने) हे तेजस्वी परमेश्वर ! (त्वम्) तू (अधमा) अति नीचे (तमांसि) अन्धकारों में (नुत्तानाम्) पड़े हुए (तेषाम्) उन [शत्रुओं] के (वास्तूनि) घरों को (निःदह) भस्म कर दे ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्नपूर्वक उन्नति करके दुष्ट जनों और दुष्ट स्वभावों का नाश करें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(नुदस्व) प्रेरय (काम) म० १। हे कमनीय (प्र) प्रकर्षेण (नुदस्व) (काम) (अवर्तिम्) निर्जीविकाम् (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (मम) (ये) (सपत्नाः) शत्रवः (तेषाम्) शत्रूणाम् (नुत्तानाम्) प्रेरितानाम् (अधमा) नीचानि (तमांसि) अन्धकारान्। अज्ञानानि (अग्ने) हे तेजस्विन् परमात्मन् (वास्तूनि) अ० ७।१०८।१। गृहाणि (निर्दह) भस्मीकुरु (त्वम्) ॥

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    विषय

    शत्रुत्व का दण्ड

    पदार्थ

    १. हे (काम) = कमनीय प्रभो! (ये मम सपत्ना:) = जो मेरे शत्रु हैं, उन्हें (नुदस्व) = धकेलिए, (प्रणदस्व) = खुब ही दूर धकेल दीजिए। हे (काम) = कमनीय प्रभो! वे (अवर्ती यन्तु) = निर्जीविका [दरिद्रता] की स्थिति को प्राप्त हों, (अधमा तमांसि) = घने अंधेरे में (नुत्तानाम्) = धकेले हुए (तेषाम्) = उन शत्रुओं के (वास्तूनि) = घरों को हे (अग्ने) = प्रभो! (त्वम्) = आप (निर्दह) = भस्म कर दीजिए।

    भावार्थ

    हे कमनीय प्रभो! औरों से शत्रुता करनेवाले लोग समाज से पृथक् कर दिये जाएँ। ये अवर्ति [दरिद्रता], अन्धकार व गृहशून्यता [बेघरबारी] को प्राप्त हों।

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    भाषार्थ

    (काम) हे कमनीय परमेश्वर ! (नुदस्व) धकेल, (काम) हे कमनीय परमेश्वर ! (प्रणुदस्व) परे धकेल, (ये) जो (मम) सपत्नाः मेरे सपत्न हैं, वे (अवर्तिम्) अजीविका को (यन्तु) प्राप्त हों। (तेषाम् नुत्तानाम्) धकेले गए उन के (वास्तूनि) बसने के स्थानों को (अग्ने) अग्निरूप हुआ हे परमेश्वर ! (त्वम्) तू (निर्दह) निरवशेष रूप से दग्ध कर दे, जो बसने के स्थान कि (अधमा तमांसि) नीच कोटि के तमोगुण हैं।

    टिप्पणी

    [अवर्तिम्= बुरे विचार और बुरे स्वप्न हैं, सपत्न। इनकी आजीविका का स्रोत है तमोगुण। यह ही इनका निवास स्थान है। इन निवास स्थानों को भस्मीभूत कर देने की प्रार्थना की गई हैं।

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    विषय

    प्रजापति परमेश्वर और राजा और संकल्प का ‘काम’ पद द्वारा वर्णन।

    भावार्थ

    हे (काम) मेरे सत्संकल्प ! (अग्ने) हे मेरी ज्ञानाग्नि (मम) मेरे (ये) जो (सपत्ना:) अन्तः-शत्रु हैं उनको (नुदस्व) परे कर, (प्र णुदस्व) और परे हटा, हे (काम) सत्संकल्प ! वे अन्तः-शत्रु (अवर्तिम्) अपनी रोजगारी अर्थात् हमें पतित करने के काम से पृथक् (यन्तु) हों। (अधमा तमांसि) अधम अन्धकार अर्थात् तमोगुण पक्ष में (नुत्तानां) ढकेले हुए उन अन्तः-शत्रुओं के (वास्तूनि) निवासों को हे (अग्ने) मेरी ज्ञानाग्नि ! (त्वम्) तू (निर्दह) जला डाल।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः॥ कामो देवता॥ १, ४, ६, ९, १०, १३, १९, २४ अनुष्टुभः। ५ अति जगती। ८ आर्चीपंक्तिः। ११, २०, २३ भुरिजः। १२ अनुष्टुप्। ७, १४, १५ १७, १८, २१, २२ अतिजगत्यः। १६ चतुष्पदा शक्वरीगर्भा पराजगती। पञ्चविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kama: Love and Determination

    Meaning

    O Kama, love and desire of the heart, O faith and determination, put off want and distress, drive off depression far out. Let all misfortune revert to my enemies and adversaries and fall upon our negativities themselves. O Agni, leading light and fire of love and life, burn out the deepest darknesses and the very stronghold of those distresses when they are thrown out.

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    Translation

    Push, O Kama; push hard, O Kama; may those, who are my rivals, come to disaster. Of them, thrown into the vilest darknesses, O fire, may you burn down the dwellings.

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    Translation

    Let my noble intention cause me proceed on the path of progress. Let it make us advance further, let our internal enemies go to calamity. O enlightened man! you burn down the abiding supports of those our internal enemies which are gropping in the deepest darkness of ignorance.

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    Translation

    O true determination, O fire of knowledge, drive away, drive afar, my internal moral foes. May they refrain from degrading me. When they have been cast down to utter darkness, consume their dwellings with thy fire, O knowledge!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(नुदस्व) प्रेरय (काम) म० १। हे कमनीय (प्र) प्रकर्षेण (नुदस्व) (काम) (अवर्तिम्) निर्जीविकाम् (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (मम) (ये) (सपत्नाः) शत्रवः (तेषाम्) शत्रूणाम् (नुत्तानाम्) प्रेरितानाम् (अधमा) नीचानि (तमांसि) अन्धकारान्। अज्ञानानि (अग्ने) हे तेजस्विन् परमात्मन् (वास्तूनि) अ० ७।१०८।१। गृहाणि (निर्दह) भस्मीकुरु (त्वम्) ॥

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