Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 30
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    2

    सꣳस॒मिद्यु॑वसे वृष॒न्नग्ने॒ विश्वा॑न्य॒र्य्यऽआ। इ॒डस्प॒दे समि॑ध्यसे॒ स नो॒ वसू॒न्याभ॑र॥३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सꣳस॒मिति॒ सम्ऽस॑म्। इत्। यु॒व॒से॒। वृ॒ष॒न्। अग्ने॑। विश्वा॑नि। अ॒र्य्यः। आ। इडः॒। प॒दे। सम्। इ॒ध्य॒से॒। सः। नः॒। वसू॑नि। आ। भ॒र॒ ॥३० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सँसमिद्युवसे वृषन्नग्ने विश्वान्यर्य आ । इडस्पदे समिध्यसे स नो वसून्या भर ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सꣳसमिति सम्ऽसम्। इत्। युवसे। वृषन्। अग्ने। विश्वानि। अर्य्यः। आ। इडः। पदे। सम्। इध्यसे। सः। नः। वसूनि। आ। भर॥३०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 30
    Acknowledgment

    Translation -
    O fire-divine, showerer of wealth. being the lord, you bring each and every one to a concord. You are kindled at the place of praiseworthy actions. As such, may you bring riches to us. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top