अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 10/ मन्त्र 13
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिषन्धिः
छन्दः - षट्पदा जगती
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
बृह॒स्पति॑राङ्गिर॒सो वज्रं॒ यमसि॑ञ्चतासुर॒क्षय॑णं व॒धम्। तेना॒हम॒मूं सेनां॒ नि लि॑म्पामि बृहस्पते॒ऽमित्रा॑न्ह॒न्म्योज॑सा ॥
स्वर सहित पद पाठबृह॒स्पति॑: । आ॒ङ्गि॒र॒स: । वज्र॑म् । यम् । असि॑ञ्चत । अ॒सु॒र॒ऽक्षय॑णम् । व॒धम् । तेन॑ । अ॒हम् । अ॒मूम् । सेना॑म् । नि । लि॒म्पा॒मि॒ । बृ॒ह॒स्प॒ते॒ । अ॒मित्रा॑न् । ह॒न्मि॒ । ओज॑सा ॥१२.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहस्पतिराङ्गिरसो वज्रं यमसिञ्चतासुरक्षयणं वधम्। तेनाहममूं सेनां नि लिम्पामि बृहस्पतेऽमित्रान्हन्म्योजसा ॥
स्वर रहित पद पाठबृहस्पति: । आङ्गिरस: । वज्रम् । यम् । असिञ्चत । असुरऽक्षयणम् । वधम् । तेन । अहम् । अमूम् । सेनाम् । नि । लिम्पामि । बृहस्पते । अमित्रान् । हन्मि । ओजसा ॥१२.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 13
भाषार्थ -
बृहस्पति आङ्गिरस ने जिस असुरों के क्षय करने वाले तथा वध करने वाले वज्र को सींचा है (मन्त्र १२ का उत्तरार्ध) (तेन) उस वज्र द्वारा (अहम्) मैं अर्बुदि, (अमूं सेनाम्) उस सेना को (निलिम्पामि) नितरां अर्थात् पूर्णतया लीपता हूँ, और (बृहस्पतेः अमित्रान्) बृहस्पति अर्थात् त्रिषन्धि के शत्रुओं को (ओजसा) पराक्रम द्वारा (हन्मि) मार डालता हूँ।
टिप्पणी -
[आहुत्या = योद्धाओं के निज शरीरों की आहुति। वज्रम् असिञ्चत= यह वज्र द्रवरूप प्रतीत होता है "असिञ्चत" के प्रयोग द्वारा। सींचना द्रव द्वारा सम्भव है, ठोस वस्तु द्वारा नहीं। यह रसायनिक-द्रव या जल सम्भव है। बृहस्पति द्वारा आज्ञापित अर्बुदि ने प्रथम द्रव का प्रयोग किया, तदनन्तर या तो इस द्रवरूपी ओज द्वारा, या सींचने के पश्चात् निज पराक्रम रूपी ओज द्वारा उस ने शत्रुओं का वध किया। असुर= प्राण पोषण तत्पर और धनलोभी शत्रुगण। द्रव का सींचना किसी मशीन द्वारा ही सम्भव है। संस्कृत साहित्य में "वारुणास्त्र" का भी वर्णन हुआ है, जिस द्वारा जल सींचा जाता है। द्रव-आयुध सम्भवतः जल की वर्षा करता हो]।