अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 10/ मन्त्र 17
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिषन्धिः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
यदि॑ प्रे॒युर्दे॑वपु॒रा ब्रह्म॒ वर्मा॑णि चक्रि॒रे। त॑नू॒पानं॑ परि॒पाणं॑ कृण्वा॒ना यदु॑पोचि॒रे सर्वं॒ तद॑र॒सं कृ॑धि ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । प्र॒ऽई॒यु: । दे॒व॒ऽपु॒रा: । ब्रह्म॑ । वर्मा॑णि । च॒क्रि॒रे । त॒नू॒ऽपान॑म् । प॒रि॒ऽपान॑म् । कृ॒ण्वा॒ना: । यत् । उ॒प॒ऽऊ॒चि॒रे । सर्व॑म् । तत् । अ॒र॒सम् । कृ॒धि॒ ॥१२.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि प्रेयुर्देवपुरा ब्रह्म वर्माणि चक्रिरे। तनूपानं परिपाणं कृण्वाना यदुपोचिरे सर्वं तदरसं कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । प्रऽईयु: । देवऽपुरा: । ब्रह्म । वर्माणि । चक्रिरे । तनूऽपानम् । परिऽपानम् । कृण्वाना: । यत् । उपऽऊचिरे । सर्वम् । तत् । अरसम् । कृधि ॥१२.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 17
भाषार्थ -
(यदि देवपुराः) यदि हम देवों के पुरा अर्थात् नगरों या दुर्गों में (प्रेयुः) शत्रु अर्थात् असुर पहुंच गए हैं, और (ब्रह्म) हमारे धनों और अन्नों को उन्होंने (वर्माणि) अपने कवच रूप में (चक्रिरे) कर लिया है, और (तनूपानम्) अपने देहों की रक्षा तथा (परिमाणम्) सब प्रकार के खान पान को (कृण्वानाः) करते हुए (यद्) जो वे (उप ऊचिरे) गुप्त बातें करते हैं (तत् सर्वम्) उस सबको हे अर्बु दि! तू (अरसम्) रस रहित कर, विफल कर।
टिप्पणी -
[देवपुराः= देव पुर् + टाप् (टापं चैव हलन्तानाम्) + द्वि. वि. बहुवचन। तनूपानम् =तनू +पा (रक्षणे)। परिपाणम्= परि + पा (पाने), खाना-पीना। असुर भक्ष्या-भक्ष्य का विचार न कर सब कुछ खाते-पीते हैं। ब्रह्म= धननाम (निघं० २।१०); अन्ननाम (निघं० २।७)। अरसम्= रस रहित वृक्ष, सूख कर फलविहीन हो जाता है इसी प्रकार असुरों को विफल कर देना। मन्त्र में त्रिषन्धि, अर्बुदि को आदेश देता है। प्रेयुः= तीन मित्रराष्ट्रों की संयुक्त सेना, त्रिषन्धि के संचालन में, असुरों के साथ युद्ध में व्यापृत है। संयुक्त सेना को भेद कर आसुरी सेना देवपुरों में प्रवेश नहीं पा सकती। युद्धव्यापृत संयुक्त सेना से रहित हुए देवपुरों को जान कर, किसी छद्म प्रकार से किसी मार्ग द्वारा यदि आसुरी सेना देवपुरों में पहुंच गई है तो उस अवस्था का वर्णन मन्त्र में हुआ है]। [१. इन्द्रः= सम्राट् “इन्द्रश्च सम्राट् वरुणश्च राजा" (यजु० ८।३७) बृहस्पतिः= बृहती सेना तस्याः पतिः। यज्ञः = यज् संगतिकरणे। शत्रु सेनया सह युद्धार्थ स्वसेनायाः संगमकर्ता सेनाध्यक्षः। सोमः= सेनाप्रेरकः (षू प्रेरणे) देवसेना= विजिगीषूणां स्वसैनिकानां सेना।]