अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिषन्धिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
शि॑तिप॒दी सं द्य॑तु शर॒व्ये॒यं चतु॑ष्पदी। कृत्ये॒ऽमित्रे॑भ्यो भव॒ त्रिष॑न्धेः स॒ह सेन॑या ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒ति॒ऽप॒दी । सम् । द्य॒तु॒ । श॒र॒व्या᳡ । इ॒यम् । चतु॑:ऽपदी । कृत्ये॑ । अ॒मित्रे॑भ्य: । भ॒व॒ । त्रिऽसं॑धे: । स॒ह । सेन॑या ॥१२.६॥
स्वर रहित मन्त्र
शितिपदी सं द्यतु शरव्येयं चतुष्पदी। कृत्येऽमित्रेभ्यो भव त्रिषन्धेः सह सेनया ॥
स्वर रहित पद पाठशितिऽपदी । सम् । द्यतु । शरव्या । इयम् । चतु:ऽपदी । कृत्ये । अमित्रेभ्य: । भव । त्रिऽसंधे: । सह । सेनया ॥१२.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(शितिपदी) काले लोहे के पैरों वाली, (चतुष्पदी) चार पैरों वाली (इयम् शरव्या) यह शरव्या (सं द्यतु) सम्यक् प्रकार से शत्रु का क्षय करे। (कृत्ये) हे शत्रुदल का छेदन करने वाली शरव्ये ! (अमित्रेभ्यः भव) शत्रुओं के [संहार के] लिये तू हो, (त्रिषन्धेः सेनया सह) त्रिषन्धि की सेना के साथ।
टिप्पणी -
[शिति = शुक्ल तथा कृष्ण। मन्त्र में कृष्ण अर्थ अभिप्रेत है। शरव्या के चार पैर अर्थात् पहिये हों, जोकि कृष्णायस् अर्थात् काले लोहे के हों। शयव्या द्वारा शत्रु को शरों द्वारा घेरा जाता है। शरव्या=शर (बाण) + व्येञ् संवरणे। सायणाचार्य ने शरव्या का अर्थ किया है "शरसमूहः" "पाशादिभ्योः य” (अष्टा० ४।२।४९) इति समूहार्थे यः) कृत्या=कृती छेदने। संद्यतु = सम् + दीङ् क्षये। त्रिषन्धि की सेना के साथ, शरव्या युद्ध भूमि में चलती है, अतः इस के चार पैरों अर्थात् पहियों का वर्णन हुआ है। शरव्या चार पैरों वाली तोप प्रतीत होती है]।