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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 7/ मन्त्र 12
    सूक्त - दुःस्वप्ननासन देवता - भुरिक् प्राजापत्या अनुष्टुप् छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    तं ज॑हि॒ तेन॑मन्दस्व॒ तस्य॑ पृ॒ष्टीरपि॑ शृणीहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ज॒हि॒ । तेन॑ । म॒न्द॒स्य॒ । तस्य॑ । पृ॒ष्टी: । अपि॑ । शृ॒ण॒हि॒ ॥७.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं जहि तेनमन्दस्व तस्य पृष्टीरपि शृणीहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । जहि । तेन । मन्दस्य । तस्य । पृष्टी: । अपि । शृणहि ॥७.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 7; मन्त्र » 12

    भाषार्थ -
    [हे मेरे पुत्र, मन्त्र ८] (तम्) उस दुःस्वप्न्य को तू भी (जहि) मार डाल, (तेन) और उस हनन द्वारा (मन्दस्व) मोद-प्रमोद तथा हर्ष को प्राप्त हो, (तस्य) उस दुःष्वप्न की (पृष्टीः) पृष्ठभूमि को (अपि) भी (शृणीहि) शीर्ण कर दे ॥ १२ ॥

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