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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 7/ मन्त्र 11
    सूक्त - दुःस्वप्ननासन देवता - साम्नी बृहती छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    यदह॑रहरभि॒गच्छा॑मि॒ तस्मा॑देन॒मव॑ दये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अह॑:ऽअह: । अ॒भि॒ऽगच्छा॑मि । तस्मा॑त् । ए॒न॒म् । अव॑ । द॒ये॒ ॥७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदहरहरभिगच्छामि तस्मादेनमव दये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अह:ऽअह: । अभिऽगच्छामि । तस्मात् । एनम् । अव । दये ॥७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 7; मन्त्र » 11

    भाषार्थ -
    (यद्) जिसे (अहः अहः) दिन प्रतिदिन (अभि गच्छामि) मैं प्राप्त होता रहता हूं (तस्मात्) उस दुष्वप्न्य से (एनम्) इस अपने-आप को (अवदये) मैं छुड़ाता हूं, या मार्जन विधि द्वारा [मन्त्र ८] अपने-आप को सुरक्षित करता हूं ॥११॥

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