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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 136

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 136/ मन्त्र 12
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - निचृत्ककुबुष्णिक् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    सुदे॑वस्त्वा म॒हान॑ग्नी॒र्बबा॑धते मह॒तः सा॑धु खो॒दन॑म्। कु॒सं पीव॒रो न॑वत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सुदे॑व: । त्वा । म॒हान् । अ॑ग्नी॒: । बबाध॑ते॒ । मह॒त: । सा॑धु । खो॒दन॑म् ॥ कु॒सम् । पीव॒र: । नव॑त् ॥१३६.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुदेवस्त्वा महानग्नीर्बबाधते महतः साधु खोदनम्। कुसं पीवरो नवत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुदेव: । त्वा । महान् । अग्नी: । बबाधते । महत: । साधु । खोदनम् ॥ कुसम् । पीवर: । नवत् ॥१३६.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 12

    भाषार्थ -
    पति कहता है कि हे पत्नी! (सुदवेः) श्रेष्ठ परमेश्वर-देव ही (त्वा) तुझे और तेरे जैसी (महानग्नीः) महा-अपठिता स्त्रियों को, (बबाधते) ऐसे कठोर कर्मों से रोक सकता है। (महतः) मैं जो घर में बड़ा हूँ उसकी (साधु खोदनम्) काफी पिसाई हुई है—इस प्रकार कहता हुआ (पीवरः) मोटी बुद्धिवाला पति, (कुसम्) बड़बक्कु पत्नी की (नवत्) प्रशंसा करने लग जाता है।

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