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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 136

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 136/ मन्त्र 2
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    यदा॑ स्थू॒लेन॒ पस॑साणौ मु॒ष्का उपा॑वधीत्। विष्व॑ञ्चा व॒स्या वर्ध॑तः॒ सिक॑तास्वेव॒ गर्द॑भौ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदा॑ । स्थू॒लेन॒ । पय॑सा । अणो । मु॒ष्कौ । उप॑ । अ॒व॒धी॒त् ॥ विष्व॑ञ्चा । व॒स्या । वर्धत॒: । सिक॑तासु । ए॒व । गर्द॑भौ ॥१३६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदा स्थूलेन पससाणौ मुष्का उपावधीत्। विष्वञ्चा वस्या वर्धतः सिकतास्वेव गर्दभौ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदा । स्थूलेन । पयसा । अणो । मुष्कौ । उप । अवधीत् ॥ विष्वञ्चा । वस्या । वर्धत: । सिकतासु । एव । गर्दभौ ॥१३६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (यदा) जब कुमारी, (स्थूलेन) शक्तिशाली (पससा) सतीत्वरूपी विनाशक-साधन द्वारा, (मुष्कौ अणौ) प्राणशक्तिसम्पन्न दो मुष्टण्डों का (उपावधीत्) लगभग हनन कर देती है, तब (अस्याः) इस कुमारी के वे दोनों मुष्टण्डे (विश्वञ्चा) इधर-उधर फड़कते हुए (वर्धतः) इस प्रकार लम्बे लेट जाते हैं, (एव=एवम्) मानो कि (सिकतासु) रेत या मिट्टी में (गर्दभौ) दो गधे लोट-पोट रहे हों।

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