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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 136

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 136/ मन्त्र 3
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - आर्ष्यनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    यद॑ल्पिका॒स्वल्पिका॒ कर्क॑न्धू॒केव॒ पद्य॑ते। वा॑सन्ति॒कमि॑व॒ तेज॑नं॒ यन्त्य॒वाता॑य॒ वित्प॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अल्पि॑का॒सु । अ॑ल्पिका॒ । कर्क॑ऽधू॒के । अव॒ऽसद्यते ॥ वास॑न्ति॒कम्ऽइ॑व॒ । तेज॑न॒म् । यन्ति॒ । अ॒वाता॑य॒ । वित्प॑ति ॥१३६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदल्पिकास्वल्पिका कर्कन्धूकेव पद्यते। वासन्तिकमिव तेजनं यन्त्यवाताय वित्पति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अल्पिकासु । अल्पिका । कर्कऽधूके । अवऽसद्यते ॥ वासन्तिकम्ऽइव । तेजनम् । यन्ति । अवाताय । वित्पति ॥१३६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    कुमारी (यद्) चाहे (अल्पिका) विवाहित स्त्री से अल्प आयुवाली हो, अर्थात् लगभग विवाह-योग्य आयुवाली हो, या (स्वल्पिका) और अल्प आयुवाली हो—(कर्कन्धूका=कर्कन्धूकानि) वह पके मीठे बेरों के सदृश मधुर स्वभाववाली होती हुई भी—बलात्कार की चेष्टा होने पर (अव षद्यते) खिन्न हो जाती है, (वित्पति) मानो प्राप्त-पतिका स्त्री के सदृश उस समय, (वासन्तिकम्) वसन्तकाल के (तेजनम् इव) तेज सूर्य के सदृश तेज धारण कर लेती है। और तब बलात्कारी पुरुष (अवाताय यन्ति) निष्प्राण हो जाने की ओर पग बढ़ा रहे होते हैं।

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