अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 30/ मन्त्र 15
मा ते॑ प्रा॒ण उप॑ दस॒न्मो अ॑पा॒नोऽपि॑ धायि ते। सूर्य॒स्त्वाधि॑पतिर्मृ॒त्योरु॒दाय॑च्छतु र॒श्मिभिः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठमा । ते॒ । प्रा॒ण: । उप॑ । द॒स॒त् । मो इति॑ । अ॒पा॒न: । अपि॑ । धा॒यि॒ । ते॒ । सूर्य॑: । त्वा॒ । अधि॑ऽपति । मृ॒त्यो: । उ॒त्ऽआय॑च्छतु । र॒श्मिऽभि॑: ॥३०.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
मा ते प्राण उप दसन्मो अपानोऽपि धायि ते। सूर्यस्त्वाधिपतिर्मृत्योरुदायच्छतु रश्मिभिः ॥
स्वर रहित पद पाठमा । ते । प्राण: । उप । दसत् । मो इति । अपान: । अपि । धायि । ते । सूर्य: । त्वा । अधिऽपति । मृत्यो: । उत्ऽआयच्छतु । रश्मिऽभि: ॥३०.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 30; मन्त्र » 15
भाषार्थ -
(ते) तेरा (प्राणः) प्राण (मा) न (उपदसत्) उपक्षीण हो, ( मा उ) न (ते) तेरा (अपान:) अपान ( अपि धायि ) बन्द हो । ( अधिपति: सूर्यः ) अधिपति सूर्य ( रश्मिभिः) रश्मियों द्वारा (त्वा) तुझे (मृत्योः) मृत्यु से (उदायच्छतु) ऊपर की ओर आकृष्ट करे।
टिप्पणी -
[मृत्यु हो जाने पर स्थूलशरीर तो अग्निसात् होकर भस्मीभूत हो जाता है, परन्तु सूक्ष्मशरीर भस्मीभूत नहीं होता, इसमें प्राण-अपान की शक्तियां बची रहती हैं, इन शक्तियों के कारण जीवात्मा पुनर्जन्म के लिए मातृयोनि में प्रविष्ट होता है। मृत्यु हो जाने पर, सूक्ष्मशरीरसहित जीवात्मा, सूर्य की रश्मियों द्वारा उपरिलोक में जाता और वहाँ गतिमान् होता है।]