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  • यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 25
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - जलादयो देवताः छन्दः - अष्टिः स्वरः - मध्यमः
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    अ॒द्भ्यः स्वाहा॑ वा॒र्भ्यः स्वाहो॑द॒काय॒ स्वाहा॒ तिष्ठ॑न्तीभ्यः॒ स्वाहा॒ स्रव॑न्तीभ्यः॒ स्वाहा॒ स्यन्द॑मानाभ्यः॒ स्वाहा॒ कूप्या॑भ्यः॒ स्वाहा॒ सूद्या॑भ्यः॒ स्वाहा॒ धार्या॑भ्यः॒ स्वाहा॑र्ण॒वाय॒ स्वाहा॑ समु॒द्राय॒ स्वाहा॑ सरि॒राय॒ स्वाहा॑॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒द्भ्य इत्य॒त्ऽभ्यः। स्वाहा॑। वा॒र्भ्य इति॑ वाः॒ऽभ्यः। स्वाहा॑। उ॒द॒काय॑। स्वाहा॑। तिष्ठ॑न्तीभ्यः। स्वाहा॑। स्रव॑न्तीभ्यः। स्वाहा॑। स्यन्द॑मानाभ्यः। स्वाहा॑। कूप्या॑भ्यः। स्वाहा॑। सूद्या॑भ्यः। स्वाहा॑। धार्य्या॑भ्यः। स्वाहा॑। अ॒र्ण॒वाय॑। स्वाहा॑। स॒मु॒द्राय॑। स्वाहा॑। स॒रि॒राय॑। स्वाहा॑ ॥२५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अद्भ्यः स्वाहा वार्भ्यः स्वाहोदकाय स्वाहा तिष्ठन्तीभ्यः स्वाहा स्रवन्तीभ्यः स्वाहा स्यन्दमानाभ्यः स्वाहा कूप्याभ्यः स्वाहा सूद्याभ्यः स्वाहा धार्याभ्यः स्वाहार्णवाय स्वाहा समुद्राय स्वाहा सरिराय स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अद्भ्य इत्यत्ऽभ्यः। स्वाहा। वार्भ्य इति वाःऽभ्यः। स्वाहा। उदकाय। स्वाहा। तिष्ठन्तीभ्यः। स्वाहा। स्रवन्तीभ्यः। स्वाहा। स्यन्दमानाभ्यः। स्वाहा। कूप्याभ्यः। स्वाहा। सूद्याभ्यः। स्वाहा। धार्य्याभ्यः। स्वाहा। अर्णवाय। स्वाहा। समुद्राय। स्वाहा। सरिराय। स्वाहा॥२५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 22; मन्त्र » 25
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    पदार्थ -
    जिन मनुष्यों ने यज्ञकर्मों में सुगन्धि आदि पदार्थ होमने के लिये (अद्भ्यः) सामान्य जलों के लिये (स्वाहा) उन को शुद्ध करने की क्रिया (वार्भ्यः) स्वीकार करने योग्य अति उत्तम जलों के लिये (स्वाहा) उनको शुद्ध करने की क्रिया (उदकाय) पदार्थों को गीले करने वा सूर्य की किरणों से ऊपर को जाते हुए जल के लिये (स्वाहा) उनको शुद्ध करने वाली क्रिया (तिष्ठन्तीभ्यः) बहते हुए जलों के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (स्रवन्तीभ्यः) शीघ्र बहते हुए जलों के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (स्यन्दमानाभ्यः) धीरे-धीरे चलते जलों के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (कूप्याभ्यः) कुएं में हुए जलों के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (सूद्याभ्यः) भलीभांति भिगोने हारे अर्थात् वर्षा आदि से जो भिगोते हैं, उन जलों के लिये (स्वाहा) उनके शुद्ध करने की क्रिया (धार्याभ्यः) धारण करने योग्य जो जल हैं, उनके लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (अर्णवाय) जिस में बहुल जल है, उस बड़े नद के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (समुद्राय) जिस में अच्छे प्रकार नद-महानद, नदी-महानदी, झील, झरना आदि के जल जा मिलते हैं, उस सागर वा महासागर के लिये (स्वाहा) शुद्ध करने वाली क्रिया और (सरिराय) अति सुन्दर मनोहर जल के लिये (स्वाहा) उसकी रक्षा करने वाली क्रिया विधान की है, वे सब को सुख देनेहारे होते हैं॥२५॥

    भावार्थ - जो मनुष्य आग में सुगन्धि आदि पदार्थों को होमें, वे जल आदि पदार्थों की शुद्धि करने हारे हो पुण्यात्मा होते हैं और जल की शुद्धि से ही सब पदार्थों की शुद्धि होती है, यह जानना चाहिये॥२५॥

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