यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 26
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - वातादयो देवताः
छन्दः - स्वराडभिकृतिः
स्वरः - ऋषभः
5
वाता॑य॒ स्वाहा॑ धू॒माय॒ स्वाहा॒भ्राय॒ स्वाहा॑ मे॒घाय॒ स्वाहा॑ वि॒द्योत॑मानाय॒ स्वाहा॑ स्त॒नय॑ते॒ स्वाहा॑व॒स्फूर्ज॑ते॒ स्वाहा॒ वर्ष॑ते॒ स्वाहा॑व॒वर्ष॑ते॒ स्वाहो॒ग्रं वर्ष॑ते॒ स्वाहा॑ शी॒घ्रं वर्ष॑ते॒ स्वाहो॑द्गृह्ण॒ते स्वाहोद्गृ॑हीताय॒ स्वाहा॑ प्रुष्ण॒ते स्वाहा॑ शीकाय॒ते स्वाहा॒ प्रुष्वा॑भ्यः॒ स्वाहा॑ ह्रा॒दुनी॑भ्यः॒ स्वाहा॑ नीहा॒राय॒ स्वाहा॑॥२६॥
स्वर सहित पद पाठवाता॑य। स्वाहा॑। धू॒माय॑। स्वाहा॑। अ॒भ्राय॑। स्वाहा॑। मे॒घाय॑। स्वाहा॑। वि॒द्योत॑माना॒येति॑ वि॒ऽद्योत॑मानाय। स्वाहा॑। स्त॒नय॑ते। स्वाहा॑। अ॒व॒स्फूर्ज॑त॒ इत्य॑व॒ऽस्फूर्ज॑ते। स्वाहा॑। वर्ष॑ते। स्वाहा॑। अ॒व॒वर्ष॑त॒ इत्य॑व॒ऽवर्ष॑ते। स्वाहा॑। उ॒ग्रम्। वर्ष॑ते। स्वाहा॑। शी॒घ्रम्। वर्ष॑ते। स्वाहा॑। उ॒द्गृ॒ह्ण॒त इत्यु॑त्ऽगृह्ण॒ते। स्वाहा॑। उद्गृ॑हीता॒येत्युत्ऽगृ॑हीताय। स्वाहा॑। प्रु॒ष्ण॒ते। स्वाहा॑। शी॒का॒य॒ते। स्वाहा॑। प्रुष्वा॑भ्यः। स्वाहा॑। ह्रा॒दुनी॑भ्यः। स्वाहा॑। नी॒हा॒राय॑। स्वाहा॑ ॥२६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वाताय स्वाहा धूमाय स्वाहाभ्राय स्वाहा मेघाय स्वाहा विद्योतमानाय स्वाहा स्तनयते स्वाहावस्फूर्जते स्वाहा वर्षते स्वाहाववर्षते स्वाहोद्रँवर्षते स्वाहा शीघ्रँवर्षते स्वाहोद्गृह्णते स्वाहोद्गृहीताय स्वाहा प्रुष्णते स्वाहा शीकायते स्वाहा प्रुष्वाभ्यः स्वाहा ह्रादुनीभ्यः स्वाहा नीहाराय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
वाताय। स्वाहा। धूमाय। स्वाहा। अभ्राय। स्वाहा। मेघाय। स्वाहा। विद्योतमानायेति विऽद्योतमानाय। स्वाहा। स्तनयते। स्वाहा। अवस्फूर्जत इत्यवऽस्फूर्जते। स्वाहा। वर्षते। स्वाहा। अववर्षत इत्यवऽवर्षते। स्वाहा। उग्रम्। वर्षते। स्वाहा। शीघ्रम्। वर्षते। स्वाहा। उद्गृह्णत इत्युत्ऽगृह्णते। स्वाहा। उद्गृहीतायेत्युत्ऽगृहीताय। स्वाहा। प्रुष्णते। स्वाहा। शीकायते। स्वाहा। प्रुष्वाभ्यः। स्वाहा। ह्रादुनीभ्यः। स्वाहा। नीहाराय। स्वाहा॥२६॥
विषय - फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ -
जिन मनुष्यों ने (वाताय) जो बहता है, उस पवन के लिये (स्वाहा) उस को शुद्ध करने वाली यज्ञक्रिया (धूमाय) धूम के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (अभ्राय) मेघ के कारण के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (मेघाय) मेघ के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (विद्योतमानाय) बिजुली से प्रवृत्त हुए सघन बद्दल के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (स्तनयते) उत्तम शब्द करती हुई बिजुली के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (अवस्फूर्जते) एक-दूसरे के घिसने से वज्र के समान नीचे को चोट करते हुए विद्युत् के लिये (स्वाहा) शुद्ध करने हारी यज्ञक्रिया (वर्षते) जो बद्दल वर्षता है, उसके लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (अववर्षते) मिलावट से तले ऊपर हुए बद्दलों में जो नीचे वाला है, उस बद्दल के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (उग्रम्) अतितीक्ष्णता से (वर्षते) वर्षते हुए बद्दल के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (शीघ्रम्) शीघ्र लपट-झपट से (वर्षते) वर्षते हुए बद्दल के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (उद्गृह्णते) ऊपर से ऊपर बद्दलों के ग्रहण करने वाले बद्दल के लिये (स्वाहा) उक्त क्रिया (उद्गृहीताय) जिसने ऊपर से ऊपर जल ग्रहण किया उस बद्दल के लिये (स्वाहा) शुद्धि करने वाली यज्ञक्रिया (प्रुष्णते) पुष्टि करते हुए मेघ के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (शीकायते) जो सींचता अर्थात् ठहर-ठहर के वर्षता, उस मेघ के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (प्रुष्वाभ्यः) जो पूर्ण घनघोर वर्षा करते हैं, उन मेघों के अवयवों के लिये (स्वाहा) यज्ञक्रिया (ह्रादुनीभ्यः) अव्यक्त गड़गड़ शब्द करते हुए बद्दलों के लिये (स्वाहा) शुद्धि करने वाली यज्ञक्रिया और (नीहाराय) कुहर के लिये (स्वाहा) उस की शुद्धि करने वाली यज्ञक्रिया की है, वे संसार के प्राणपियारे होते हैं॥२६॥
भावार्थ - जो मनुष्य यथाविधि अग्निहोत्र आदि यज्ञों को करते हैं, वे पवन आदि पदार्थों के शोधनेहारे होकर सब का हित करने वाले हाते हैं॥२६॥
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal