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  • यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 4
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
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    स्व॒गा त्वा॑ दे॒वेभ्यः॑ प्र॒जाप॑तये॒ ब्रह्म॒न्नश्वं॑ भ॒न्त्स्यामि॑ दे॒वेभ्यः॑ प्र॒जाप॑तये॒ तेन॑ राध्यासम्। तं ब॑धान दे॒वेभ्यः॑ प्र॒जाप॑तये॒ तेन॑ राध्नुहि॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒गेति॑ स्व॒ऽगा। त्वा॒। दे॒वेभ्यः॑। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। ब्रह्म॑न्। अश्व॑म्। भ॒न्त्स्यामि॑। दे॒वेभ्यः॑। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। तेन॑। रा॒ध्या॒स॒म्। तम्। ब॒धा॒न॒। दे॒वेभ्यः॑। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। तेन॑। रा॒ध्नु॒हि॒ ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वगा त्वा देवेभ्यः प्रजापतये ब्रह्मन्नश्वम्भन्त्स्यामि देवेभ्यः प्रजापतये तेन राध्यासम् । तम्बधान देवेभ्यः प्रजापतये तेन राध्नुहि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्वगेति स्वऽगा। त्वा। देवेभ्यः। प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। ब्रह्मन्। अश्वम्। भन्त्स्यामि। देवेभ्यः। प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। तेन। राध्यासम्। तम्। बधान। देवेभ्यः। प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। तेन। राध्नुहि॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 22; मन्त्र » 4
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    पदार्थ -
    हे (ब्रह्मन्) विद्या से वृद्धि को प्राप्त! मैं (त्वा) तुझे (स्वगा) आप जाने वाला करता हूँ (देवेभ्यः) विद्वानों और (प्रजापतये) सन्तानों की रक्षा करने हारे गृहस्थ के लिये (अश्वम्) बड़े सर्वव्यापी उत्तम गुण को (भन्त्स्यामि) बांधूंगा (तेन) उससे (देवेभ्यः) दिव्यगुणों और (प्रजापतये) सन्तानों को पालनेहारे गृहस्थ के लिये (राध्यासम्) अच्छे प्रकार सिद्ध होऊं (तम्) उस को तू (बधान) बांध (तेन) उससे (देवेभ्यः) दिव्य गुण, कर्म और स्वभाव वालों तथा (प्रजापतये) प्रजा पालने वाले के लिये (राध्नुहि) अच्छे प्रकार सिद्ध होओ॥४॥

    भावार्थ - सब मनुष्यों को चाहिये कि विद्या, अच्छी शिक्षा, ब्रह्मचर्य और अच्छे संग से शरीर और आत्मा के अत्यन्त बल को सिद्ध कर दिव्य गुणों को ग्रहण और विद्वानों के लिये सुख देकर अपनी और पराई वृद्धि करें॥४॥

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