Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 6
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - अग्न्यादयो देवताः छन्दः - भुरिगतिजगती स्वरः - निषादः
    14

    अ॒ग्नये॒ स्वाहा॒ सोमा॑य॒ स्वाहा॒पां मोदा॑य॒ स्वाहा॑ सवि॒त्रे स्वाहा॑ वा॒यवे॒ स्वाहा॒ विष्ण॑वे॒ स्वाहेन्द्रा॑य॒ स्वाहा॒ बृह॒स्पत॑ये॒ स्वाहा॑ मि॒त्राय॒ स्वाहा॒ वरु॑णाय॒ स्वाहा॑॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नये॑। स्वाहा॑। सोमा॑य। स्वाहा॑। अ॒पाम्। मोदा॑य। स्वाहा। स॒वि॒त्रे। स्वाहा॑। वा॒यवे॑। स्वाहा॑। वि॒ष्णवे॑। स्वाहा॑। इन्द्रा॑य। स्वाहा॑। बृह॒स्पत॑ये। स्वाहा॑। वरु॑णाय। स्वाहा॑ ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहा अपाम्मोदाय स्वाहा सवित्रे स्वाहा वायवे स्वाहा विष्णवे स्वाहेन्द्राय स्वाहा बृहस्पतये स्वाहा मित्राय स्वाहा वरुणाय स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नये। स्वाहा। सोमाय। स्वाहा। अपाम्। मोदाय। स्वाहा। सवित्रे। स्वाहा। वायवे। स्वाहा। विष्णवे। स्वाहा। इन्द्राय। स्वाहा। बृहस्पतये। स्वाहा। वरुणाय। स्वाहा॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 22; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    यदि मनुष्य (अग्नये) अग्नि के लिये (स्वाहा) श्रेष्ठ क्रिया वा (सोमाय) ओषधियों के शोधने के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया वा (अपाम्) जलों के सम्बन्ध से जो (मोदाय) आनन्द होता है, उस के लिये (स्वाहा) सुख पहुंचाने वाली क्रिया वा (सवित्रे) सूर्यमण्डल के अर्थ (स्वाहा) उत्तम क्रिया वा (वायवे) पवन के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (विष्णवे) बिजुलीरूप आग में (स्वाहा) उत्तम क्रिया (इन्द्राय) जीव के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (बृहस्पतये) बड़ों की पालना करने वाले के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (मित्राय) मित्र के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया (वरुणाय) श्रेष्ठ के लिये (स्वाहा) उत्तम क्रिया करें तो कौन-कौन सुख न मिले?॥६॥

    भावार्थ - हे मनुष्यो! जो आग में उत्तमता से सिद्ध किया हुआ घी आदि हवि होमा जाता है, वह ओषधि, जल, सूर्य के तेज, वायु और बिजुली को अच्छे प्रकार शुद्ध कर ऐश्वर्य्य को बढ़ाने प्राण, अपान और प्रजा की रक्षारूप श्रेष्ठों के सत्कार का निमित्त होता है। कोई द्रव्य स्वरूप से नष्ट नहीं होता, किन्तु अवस्थान्तर को पाके सर्वत्र ही परिणाम को प्राप्त होता है; इसी से सुगन्ध, मीठापन, पुष्टि देने और रोगविनाश करने हारे गुणों से युक्त पदार्थ आग में छोड़कर ओषाधि आदि पदार्थों की शुद्धि के द्वारा संसार का नीरोगपन सिद्ध करना चाहिये॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top