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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 23
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - मनुष्या देवताः छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    उप॒ प्रागा॒च्छस॑नं वा॒ज्यर्वा॑ देव॒द्रीचा॒ मन॑सा॒ दीध्या॑नः। अ॒जः पु॒रो नी॑यते॒ नाभि॑र॒स्यानु॑ प॒श्चात् क॒वयो॑ यन्ति रे॒भाः॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑। प्र। अ॒गा॒त्। शस॑नम्। वा॒जी। अर्वा॑। दे॒व॒द्रीचा॑। मन॑सा। दीध्या॑नः। अजः॑। पु॒रः। नी॒य॒ते॒। नाभिः॑। अ॒स्य। अनु॑। प॒श्चात्। क॒वयः॑। य॒न्ति॒। रे॒भाः ॥२३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपप्रागाच्छसनँवाज्यर्वा देवद्रीचा मनसा दीध्यानः । अजः पुरो नीयते नाभिरस्यानु पश्चात्कवयो यन्ति रेभाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उप। प्र। अगात्। शसनम्। वाजी। अर्वा। देवद्रीचा। मनसा। दीध्यानः। अजः। पुरः। नीयते। नाभिः। अस्य। अनु। पश्चात्। कवयः। यन्ति। रेभाः॥२३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 23
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    पदार्थ -
    जो (दीध्यानः) सुन्दर प्रकाशमान हुआ (अजः) फेंकने वाला (वाजी) वेगवान् (अर्वा) चालाक घोड़ा (देवद्रीचा) विद्वानों को प्राप्त होते हुए (मनसा) मन से (शसनम्) जिसमें हिंसा होती है, उस युद्ध को (उप, प्र, अगात्) अच्छे प्रकार समीप प्राप्त होता है। विद्वानों से (अस्य) इसका (नाभिः) मध्यभाग अर्थत् पीठ (पुरः) आगे (नीयते) प्राप्त की जाती अर्थात् उस पर बैठते हैं, उसको (पश्चात्) पीछे (रेभाः) सब विद्याओं की स्तुति करने वाले (कवयः) बुद्धिमान् जन (अनु, यन्ति) अनुकूलता से प्राप्त होते हैं॥२३॥

    भावार्थ - जो विद्वान् लोग उत्तम विचार से घोड़ों को अच्छी शिक्षा दे और अग्नि आदि पदार्थों को सिद्ध कर ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं, वे जगत् के हितैषी होते हैं॥२३॥

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