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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 44
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - वीरा देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    ती॒व्रान् घोषा॑न् कृण्वते॒ वृष॑पाण॒योऽश्वा॒ रथे॑भिः स॒ह वा॒जय॑न्तः।अ॒व॒क्राम॑न्तः॒ प्रप॑दैर॒मित्रा॑न् क्षि॒णन्ति॒ शत्रूँ॒१॥ऽरन॑पव्ययन्तः॥४४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ती॒व्रान्। घोषा॑न्। कृ॒ण्व॒ते॒। वृष॑पाणय॒ इति॒ वृष॑ऽपाणयः। अश्वाः॑। रथे॑भिः। स॒ह। वा॒जय॑न्तः। अ॒व॒क्राम॑न्त॒ इत्य॑व॒ऽक्राम॑न्तः। प्रप॑दै॒रिति॒ प्रऽप॑दैः। अ॒मित्रा॑न्। क्षि॒णन्ति॑। शत्रू॑न्। अन॑पव्ययन्त॒ इत्य॑नपऽव्ययन्तः ॥४४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तीव्रान्घोषान्कृण्वते वृषपाणयोश्वा रथेभिः सह वाजयन्तः । अवक्रामन्तः प्रपदैरमित्रान्क्षिणन्ति शत्रूँरनपव्ययन्तः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तीव्रान्। घोषान्। कृण्वते। वृषपाणय इति वृषऽपाणयः। अश्वाः। रथेभिः। सह। वाजयन्तः। अवक्रामन्त इत्यवऽक्रामन्तः। प्रपदैरिति प्रऽपदैः। अमित्रान्। क्षिणन्ति। शत्रून्। अनपव्ययन्त इत्यनपऽव्ययन्तः॥४४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 44
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    पदार्थ -
    हे वीर पुरुष! जो (वृषपाणयः) जिनके बलवान् बैल आदि उत्तम प्राणी हाथों के समान रक्षा करने वाले हैं (रथेभिः) रमण के योग्य यानों के (सह) साथ (वाजयन्तः) वीर आदि को शीघ्र चलाने हारे (प्रपदैः) उत्तम पगों की चालों से (अमित्रान्) मित्रता रहित दुष्टों को (अवक्रामन्तः) धमकाते हुए (अश्वाः) शीघ्र चलाने हारे घोड़े (तीव्रान्) तीखे (घोषान्) शब्दों को (कृण्वते) करते हैं और जो (अनपव्ययन्तः) व्यर्थ खर्च न कराते हुए योद्धा (शत्रून्) वैरियों को (क्षिणन्ति) क्षीण करते हैं, उन को तुम लोग प्राण के तुल्य पालो॥४४॥

    भावार्थ - जो राजपुरुष हाथी, घोड़ा, बैल आदि भृत्यों और अध्यक्षों को अच्छी शिक्षा दे तथा अनेक प्रकार के यानों को बना के शत्रुओं के जीतने की अभिलाषा करते हैं तो उनका निश्चल दृढ़ विजय होता है॥४४॥

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