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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 28
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - स्वराड् बृहती स्वरः - मध्यमः
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    आ॒जुह्वा॑न॒ऽईड्यो॒ वन्द्य॒श्चाया॑ह्यग्ने॒ वसु॑भिः स॒जोषाः॑।त्वं दे॒वाना॑मसि यह्व॒ होता॒ सऽए॑नान् यक्षीषि॒तो यजी॑यान्॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒जुह्वा॑न॒ इत्या॒ऽजुह्वा॑नः। ईड्यः॑। वन्द्यः॑। च॒। आ। या॒हि॒। अ॒ग्ने॒। वसु॑भि॒रिति॒ वसु॑ऽभिः। स॒जोषा॒ इति॑ स॒ऽजोषाः॑। त्वम्। दे॒वाना॑म्। अ॒सि॒। य॒ह्व॒। होता॑। सः। ए॒ना॒न्। य॒क्षि॒। इ॒षि॒तः। यजी॑यान् ॥२८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आजुह्वानऽईड्यो वन्द्यश्चा याह्यग्ने वसुभिः सजोषाः । त्वन्देवानामसि यह्व होता सऽएनान्यक्षीषितो यजीयान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आजुह्वान इत्याऽजुह्वानः। ईड्यः। वन्द्यः। च। आ। याहि। अग्ने। वसुभिरिति वसुऽभिः। सजोषा इति सऽजोषाः। त्वम्। देवानाम्। असि। यह्व। होता। सः। एनान्। यक्षि। इषितः। यजीयान्॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 28
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    पदार्थ -
    हे (यह्व) बड़े उत्तम गुणों से युक्त (अग्ने) अग्नि के तुल्य पवित्र विद्वन्! जो (त्वम्) आप (देवानाम्) विद्वानों के बीच (होता) दानशील (यजीयान्) अति समागम करने हारे (असि) हैं, (इषितः) प्रेरणा किये हुए (एनान्) इन विद्वानों का (यक्षि) सङ्ग कीजिए (सः) सो आप (वसुभिः) निवास के हेतु विद्वानों के साथ (सजोषाः) समान प्रीति निबाहने वाले (आजुह्वानः) अच्छे प्रकार स्पर्द्धा ईर्ष्या करते हुए (ईड्यः) प्रशंसा (च) तथा (वन्द्यः) नमस्कार के योग्य इन विद्वानों के निकट (आ) (याहि) आया कीजिए॥२८॥

    भावार्थ - जो मनुष्य पवित्रात्मा प्रशंसित विद्वानों के संग से आप पवित्रात्मा होवें, तो वे धर्मात्मा हुए सर्वत्र सत्कार को प्राप्त होवें॥२८॥

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