Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 1
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - गायत्री, स्वरः - षड्जः
    14

    स॒मिधा॒ग्निं दु॑वस्यत घृ॒तैर्बो॑धय॒ताति॑थिम्। आस्मि॑न् ह॒व्या जु॑होतन॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मिधेति॑ स॒म्ऽइधा॑। अ॒ग्निम्। दु॒व॒स्य॒त॒। घृ॒तैः। बो॒ध॒य॒त॒। अति॑थिम्। आ। अ॒स्मि॒न्। ह॒व्या। जु॒हो॒त॒न॒ ॥१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समिधाग्निन्दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम् आस्मिन्हव्या जुहोतन ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    समिधेति सम्ऽइधा। अग्निम्। दुवस्यत। घृतैः। बोधयत। अतिथिम्। आ। अस्मिन्। हव्या। जुहोतन॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    Meaning -
    Oh learned persons, kindle the fire with the wood sticks, with butter, set ablaze the fire, which is worthy of respect like a Sanyasi. Put oblations in this fire of the yajna.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top