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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 5/ मन्त्र 40
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ता छन्दः - विराड्विषमागायत्री सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त

    ब्रह्मा॒भ्याव॑र्ते। तन्मे॒ द्रवि॑णं यच्छन्तु॒ तन्मे॑ ब्राह्मणवर्च॒सम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॑ । अ॒भि॒ऽआव॑र्ते । तत् । मे॒ । द्रवि॑णम् । य॒च्छ॒तु॒ । तत् । मे॒ । ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सम् ॥५.४०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्माभ्यावर्ते। तन्मे द्रविणं यच्छन्तु तन्मे ब्राह्मणवर्चसम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्म । अभिऽआवर्ते । तत् । मे । द्रविणम् । यच्छतु । तत् । मे । ब्राह्मणऽवर्चसम् ॥५.४०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 40

    पदार्थ -
    (ब्रह्म) ब्रह्म [परमेश्वर] की ओर (अभ्यावर्ते) मैं घूमता हूँ। (तत्) वह [ब्रह्म] (मे) मुझे (द्रविणम्) बल और (तत्) वह (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञानी] का प्रताप (यच्छतु) देवे ॥४०॥

    भावार्थ - मनुष्य ब्रह्मज्ञान से ब्राह्मणसमान बलवान् और प्रतापी होवें ॥४०॥

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