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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 19
    ऋषिः - वत्सार काश्यप ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - भूरिक् आर्षी पङ्क्ति स्वरः - धैवतः
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    ये दे॑वासो दि॒व्येका॑दश॒ स्थ पृ॑थि॒व्यामध्येका॑दश॒ स्थ। अ॒प्सु॒क्षितो॑ महि॒नैका॑दश॒ स्थ ते दे॑वासो य॒ज्ञमि॒मं जु॑षध्वम्॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। दे॑वा॒सः॒। दि॒वि। एका॑दश। स्थ। पृ॒थि॒व्याम्। अधि॑। एका॑दश। स्थ। अप्सु॒क्षित॒ इत्य॑प्सु॒ऽक्षितः॑। म॒हि॒ना। एका॑दश। स्थ। ते। दे॒वा॒सः॒। य॒ज्ञम्। इ॒मम्। जु॒ष॒ध्व॒म् ॥१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये देवासो दिव्येकादश स्थ पृथिव्यामध्येकादश स्थ अप्सुक्षितो महिनैकादश स्थ ते देवासो यज्ञमिमथ्जुषध्वम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये। देवासः। दिवि। एकादश। स्थ। पृथिव्याम्। अधि। एकादश। स्थ। अप्सुक्षित इत्यप्सुऽक्षितः। महिना। एकादश। स्थ। ते। देवासः। यज्ञम्। इमम्। जुषध्वम्॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 19
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- (য়ে) যাহারা (মহিমা) স্বীয় মহিমা বলে (দিবি) বিদ্যুৎ স্বরূপে (একাদশ) একাদশ অর্থাৎ প্রাণ, অপান, উদান, ব্যান, সমান, নাগ, কূর্ম্ম, কৃকল, দেবদত্ত, ধনঞ্জয় ও জীবাত্মা (দেবাসঃ) দিব্যগুণযুক্ত দেব (স্থ) আছে, (পৃথিব্যাম্) ভূমির (অধি) উপর (একাদশ) একাদশ অর্থাৎ পৃথিবী, জল, অগ্নি, পবন, আকাশ, আদিত্য, চন্দ্রমা, নক্ষত্র, অহংকার, মহত্ত্ব, প্রকৃতি (স্থ) আছে তথা (অপ্সুক্ষিতঃ) প্রাণে স্থির থাকা (একাদশ) শ্রৌত্র, ত্বক্, চক্ষু জিহ্বা, নাসিকা, বাণী, হস্ত, পদ, গুহ্য, লিঙ্গ ও মন (স্থ) আছে (তে) তাহারা যেমন নিজ নিজ কাজে বর্ত্তমান সেইরূপ হে (দেবাসঃ) রাজসভার সভাসদ বর্গ! আপনারা যথাযোগ্য নিজ নিজ কর্ম্মে বর্ত্তমান থাকিয়া (ইমম্) এই (য়জ্ঞম্) রাজা ও প্রজা সম্পর্কীয় ব্যবহারের (জুষধ্বম্) সেবন করিতে থাকুন ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমা অলঙ্কার আছে । যেমন নিজের নিজের কাজে প্রবৃত্ত অন্তরিক্ষাদিতে সকল পদার্থ বিদ্যমান সেইরূপ রাজ সভাসদ্ বর্গের উচিত যে তাহারা নিজ নিজ কর্ম্মে প্রবৃত্ত থাকুন ॥ ১ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়ে দে॑বাসো দি॒ব্যেকা॑দশ॒ স্থ পৃ॑থি॒ব্যামধ্যেকা॑দশ॒ স্থ ।
    অ॒প্সু॒ক্ষিতো॑ মহি॒নৈকা॑দশ॒ স্থ তে দে॑বাসো য়॒জ্ঞমি॒মং জু॑ষধ্বম্ ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য়ে দেবাস ইত্যস্য বৎসারঃ কাশ্যপ ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । ভুরিগার্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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