Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 84
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - सरस्वती देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    0

    पा॒व॒का नः॒ सर॑स्वती॒ वाजे॑भिर्वा॒जिनी॑वती। य॒ज्ञं व॑ष्टु धि॒याव॑सुः॥८४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पा॒व॒का। नः॒। सर॑स्वती। वाजे॑भिः। वा॒जिनी॑व॒तीति॑ वा॒जिनी॑ऽवती। य॒ज्ञम्। व॒ष्टु॒। धि॒याव॑सु॒रिति॑ धि॒याऽव॑सुः ॥८४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञँवष्टु धियावसुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पावका। नः। सरस्वती। वाजेभिः। वाजिनीवतीति वाजिनीऽवती। यज्ञम्। वष्टु। धियावसुरिति धियाऽवसुः॥८४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 84
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    १. गतमन्त्रों के अनुसार शासन किये गये सुव्यवस्थित राष्ट्र में (नः) = हमारे लिए (सरस्वती) = ज्ञानाधिदेवता (पावका) = पवित्र करनेवाली हो। हम सब ज्ञान की रुचिवाले हों। वेदवाणी को पढ़ें और यह वेदवाणी हमारे जीवनों को पवित्र कर दे। वस्तुतः ज्ञान के समान कोई पवित्र करनेवाली वस्तु नहीं है। २. यह ज्ञान (वाजेभिः) = शक्तियों के दृष्टिकोण से (वाजिनीवती) = प्रशस्त अन्नोंवाला हो। इस ज्ञान के द्वारा उत्तम अन्नों का उत्पादन करके और उनका ठीक प्रयोग करके हम अङ्ग-प्रत्यङ्ग की शक्ति को प्राप्त करनेवाले हों। इस ज्ञान से हमारे भोजन का मापक पौष्टिकता हो जाती है न कि स्वाद ! ३. (धियावसुः) = [धिया कर्मणा वसु धनं यस्याः सा म०] ज्ञानपूर्वक कर्मों के द्वारा धन को प्राप्त करानेवाली यह सरस्वती (यज्ञं वष्टु) = यज्ञ की कामना करे, अर्थात् सरस्वती की कृपा से [क] हम समझदारी से कर्मों को करते हुए [ख] धनों को कमाएँ और [ग] यज्ञादि उत्तम कर्मों में उन धनों का विनियोग करें।

    भावार्थ - भावार्थ- सरस्वती, अर्थात् ज्ञान हमारे जीवनों को पवित्र करता है। हमें पौष्टिक अन्नों को प्राप्त कराता है। बुद्धिपूर्वक कर्म करते हुए हम धनों को प्राप्त करते हैं, यज्ञादि उत्तम कर्मों में उसका विनियोग करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top