यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 36
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - स्त्रियो देवताः
छन्दः - भुरिगुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
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नार्य॑स्ते॒ पत्न्यो॒ लोम॒ विचि॑न्वन्तु मनी॒षया॑।दे॒वानां॒ पत्न्यो॒ दिशः॑ सू॒चीभिः॑ शम्यन्तु त्वा॥३६॥
स्वर सहित पद पाठनार्य्यः॑। ते॒। पत्न्यः॑। लोम॑। वि। चि॒न्व॒न्तु॒। म॒नी॒षया॑। दे॒वाना॑म्। पत्न्यः॑। दिशः॑। सू॒चीभिः॑। श॒म्य॒न्तु॒। त्वा॒ ॥३६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नार्यस्ते पत्न्यो लोम विचिन्वन्तु मनीषया । देवानाम्पत्न्यो दिशः सूचीभिः शम्यन्तु त्वा ॥
स्वर रहित पद पाठ
नार्य्यः। ते। पत्न्यः। लोम। वि। चिन्वन्तु। मनीषया। देवानाम्। पत्न्यः। दिशः। सूचीभिः। शम्यन्तु। त्वा॥३६॥
विषय - सोम-विचयन
पदार्थ -
१. मन्त्र संख्या २९ में राजा की सभा को नारी-नरिष्टा = नरहितकारिणी कहा गया था। प्रस्तुत मन्त्र में कहते हैं कि हे राजन् ! (ते पत्न्यः) = तेरी पत्नीभूत, राष्ट्रयज्ञ के चलाने के लिए जिनके साथ तेरा संयोग हुआ है वे ये तेरी पत्नियाँ [ पत्युर्नो यज्ञसंयोगे ] (नार्य:) = नरहितकारिणी सभाएँ, अर्थात् सभा के सब सभ्य (मनीषया) = [मनसः ईषा] मन पर शासन करने के दृष्टिकोण से लोम (विचिन्वन्तु) = [ सामानि यस्य लोमानि ] साम का, प्रभु की उपासना का सञ्चय करें, अर्थात् प्रभु की उपासना के मन्त्रों का संग्रह करके उन मन्त्रों से प्रभु-स्तवन के द्वारा अपने मनों को विषयों में जाने से रोकनेवाली हों। २. (देवानां पत्न्यः) = इन्द्रादि देवताओं की पत्नीभूत ये (दिशः) = पूर्वादि दिशाएँ (सूचीभिः) = सूत्रात्मक उपदेशों से (त्वा शम्यन्तु) = तुझे शान्त करनेवाली हों। 'प्राची' का उपदेश - प्र अञ्च् आगे बढ़ने का है, 'दक्षिणा' दक्षिण व कुशल बनने को कह रही है और 'प्रतीची' विषयव्यावृत्त होकर इन्द्रियों को प्रत्याहृत करने का उपदेश देती है 'उदीची' [उद् अञ्च्] ऊपर उठने का उपदेश दे रही है। ये सब उपदेश तेरे जीवन में शान्ति लानेवाले बनें । ३. 'छन्दांसि वै लोमानि' [श० ६|४|१|६ ] इस वाक्य में छन्द को, वेद मन्त्रों को 'लोम' नाम दिया गया है। ये वेदमन्त्र छन्द हैं, पापवृत्तियों से सचमुच बचानेवाले हैं। गृहपत्नियाँ खाली समय में इन्हीं का विचयन [संग्रह] अध्ययन करेंगी तो उनका मन व्यर्थ की बातों में जाएगा ही नहीं। ऐसी पत्नियाँ सचमुच 'नार्य' नरहितकारिणी होंगी। अपने पति के लिए उत्तम गृह का निर्माण करती हुई उसके जीवन को सुखी करेंगी। भाइयों में संघर्ष का कारण भी न बनेंगी।
भावार्थ - भावार्थ - राजसभा के सभ्य मन को वशीभूत करने के दृष्टिकोण से रिक्त समय में उपासना-मन्त्रों का संग्रह करें। दिशाएँ [पत्नियाँ] 'आगे बढ़ने' आदि उपदेशों से हमारे जीवनों में शान्ति स्थापित करें।
- नोट- 'लोम' शब्द का अर्थ 'लूञ् छेदने' से यदि छेदन किया जाए तो पूर्वार्द्ध का अर्थ इस प्रकार होगा कि हे राजन् ! (ते पत्न्यः) = तेरी कार्य की पूरिका ये (नार्यः) = नरहितकारिणी सभाएँ (मनीषया) = बुद्धि से पूर्ण विचार करके, (लोम) = राष्ट्र के दोषों के छेदन का तथा शत्रुओं के उपद्रव के भेदन का (विचिन्वन्तु) = विचार करें।
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