यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 44
शं ते॒ परे॑भ्यो॒ गात्रे॑भ्यः॒ शम॒स्त्वव॑रेभ्यः।शम॒स्थभ्यो॑ म॒ज्जभ्यः॒ शम्व॑स्तु त॒न्वै तव॑॥४४॥
स्वर सहित पद पाठशम्। ते॒। परे॑भ्यः। गात्रे॑भ्यः। शम्। अ॒स्तु॒। अव॑रेभ्यः। शम्। अ॒स्थभ्य॒ इत्य॒स्थऽभ्यः॑। म॒ज्जभ्य॒ इति॑ म॒ज्जऽभ्यः॑। शम्। ऊँऽइत्यूँ॑। अ॒स्तु॒। त॒न्वै। तव॑ ॥४४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शन्ते परेभ्यो गात्रेभ्यः शमस्त्ववरेभ्यः । शमस्थभ्यो मज्जभ्यः शम्वस्तु तन्वै तव ॥
स्वर रहित पद पाठ
शम्। ते। परेभ्यः। गात्रेभ्यः। शम्। अस्तु। अवरेभ्यः। शम्। अस्थभ्य इत्यस्थऽभ्यः। मज्जभ्य इति मज्जऽभ्यः। शम्। ऊँऽइत्यूँ। अस्तु। तन्वै। तव॥४४॥
विषय - शमन्वित [ शान्तिगुणयुक्त ] शरीर
पदार्थ -
१. बाह्य संसार की अनुकूलता होने पर यह शरीररूप छोटा पिण्ड भी बड़ा स्वस्थ बनता है, अतः कहते हैं कि गतमन्त्र के अनुसार द्युलोक आदि की अनुकूलता होने पर तेरे (परेभ्यः गात्रेभ्यः) = उत्कृष्ट, ऊपर के सिर, हाथ आदि अङ्गों के लिए शम् शान्ति हो । (अवरेभ्यः) [गात्रेभ्यः ] (शम् अस्तु) = अवर [lower], निचले पाँव आदि अङ्गों के लिए शान्ति हो । २. (अस्थभ्यः मज्जभ्यः) = शरीर की सब दुर्बलताओं को दूर फेंकनेवाली [अस्यन्ति = क्षिपन्ति ] इन हड्डियों के लिए तथा [मज्जन्ति शुचन्ति = शुद्धिं कुर्वन्ति ] शोधन करनेवाली मज्जा के लिए शम् शान्ति हो । हड्डियों के ठीक होने पर ही शरीर का ठीक होना निर्भर है। इनकी निर्बलता मनुष्य को दुःख देती है। मज्जा के ठीक होने पर शरीर शुद्ध बना रहता है। ३. इस प्रकार (तव) = तेरे (तन्वै) = सम्पूर्ण शरीर के लिए (उ) = निश्चय से (शम् अस्तु) = शान्ति हो ।
भावार्थ - भावार्थ- बाह्य द्युलोक आदि की अनुकूलता से हमारे पर, अवर सब गात्र तथा अस्थि व मज्जा तथा सम्पूर्ण शरीर रोगों के उपद्रव से रहित व शान्त हों।
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