यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 63
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - समाधाता देवता
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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सु॒भूः स्व॑य॒म्भूः प्र॑थ॒मोऽन्तर्म॑हत्यर्ण॒वे।द॒धे ह॒ गर्भ॑मृ॒त्वियं॒ यतो॑ जा॒तः प्र॒जाप॑तिः॥६३॥
स्वर सहित पद पाठसु॒भूरिति॑ सु॒ऽभूः। स्व॒य॒म्भूरिति॑ स्व॒य॒म्ऽभूः। प्र॒थ॒मः। अ॒न्तः। म॒ह॒ति। अ॒र्ण॒वे। द॒धे। ह॒। गर्भ॑म्। ऋ॒त्विय॑म्। यतः॑। जा॒तः। प्र॒जाप॑ति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः ॥६३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुभूः स्वयम्भूः प्रथमो न्तर्महत्यर्णवे । दधे ह गर्भमृत्वियँयतो जातः प्रजापतिः ॥
स्वर रहित पद पाठ
सुभूरिति सुऽभूः। स्वयम्भूरिति स्वयम्ऽभूः। प्रथमः। अन्तः। महति। अर्णवे। दधे। ह। गर्भम्। ऋत्वियम्। यतः। जातः। प्रजापतिरिति प्रजाऽपतिः॥६३॥
विषय - सुभू-स्वयंभू-प्रथम
पदार्थ -
१. गतमन्त्र की समाप्ति और वस्तुतः ब्रह्मादि के 'ब्रह्मोद्य' ज्ञानचर्चा की समाप्ति इस बात पर हुई थी कि सारी वेदवाणी का मुख्य प्रतिपाद्य विषय 'ब्रह्म' है। उसी सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता [ब्रह्म] का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि वह ('सुभूः') = [सुष्ठु भूः उत्पत्तिर्यस्मात् - उ० ] इस विश्व का उत्तम उत्पादन करनेवाला है, परन्तु उसे कोई बनानेवाला नहीं। वह तो (स्वयम्भूः) = स्वयं होनेवाला है। वह सदा से विद्यमान है, खुद आ है। २. (प्रथमः) = सबका आदि है। 'प्रथ विस्तारे' = अत्यन्त विस्तृत, सर्वव्यापक है। वह (महति अर्णवे अन्तः) = इस महान् प्रकृति के अणुसमुद्र के अन्दर विद्यमान है। वस्तुतः उसी की सत्ता के कारण यह महान् अणुसमुद्र भी सत्तावाला प्रतीत होता है, वहीं इस समुद्र को प्रथम गति देनेवाला है। ३. (ह) = निश्चय से वह (स्वयम्भू ऋत्वियम्) = [प्राप्तकालं] जिसका ठीक समय उपस्थित हुआ है उस (गर्भं दधे) = गर्भ को धारण करता है। काव्यभाषा में इस ब्रह्माण्ड की प्रकृति माता है तो प्रभु पिता हैं। वे प्रभु इस प्रकृति में बीज का धारण करते हैं और ये सब मूर्त्तियाँ [ मूर्त्त वस्तुएँ] उत्पन्न हो जाती हैं। गीता में कहते हैं- ('मम योनिर्महद् ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्। सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।') ४. (यतः) = प्रभु के प्रकृति में जिस गर्भ धारण करने पर (प्रजापतिः जातः) = प्रजापति ने संसार को जन्म दे दिया। (माता प्रजाता) = माता ने बच्चे को जन्म दिया, जिससे माता पैदा हो गई। इसी प्रकार 'प्रजापतिः जात:' - प्रजापति ने संसार को जन्म दे दिया, प्रजापति बन गया।
भावार्थ - भावार्थ-वे प्रभु 'सुभू, स्वयम्भू व प्रथम हैं। अणुसमुद्र के अन्दर भी विद्यमान हैं। वे इसमें गर्भ का धारण करते हैं और संसार के सब पदार्थ उत्पन्न हो जाते हैं।
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