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यजुर्वेद अध्याय - 23

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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 63
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - समाधाता देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    116

    सु॒भूः स्व॑य॒म्भूः प्र॑थ॒मोऽन्तर्म॑हत्यर्ण॒वे।द॒धे ह॒ गर्भ॑मृ॒त्वियं॒ यतो॑ जा॒तः प्र॒जाप॑तिः॥६३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒भूरिति॑ सु॒ऽभूः। स्व॒य॒म्भूरिति॑ स्व॒य॒म्ऽभूः। प्र॒थ॒मः। अ॒न्तः। म॒ह॒ति। अ॒र्ण॒वे। द॒धे। ह॒। गर्भ॑म्। ऋ॒त्विय॑म्। यतः॑। जा॒तः। प्र॒जाप॑ति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः ॥६३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुभूः स्वयम्भूः प्रथमो न्तर्महत्यर्णवे । दधे ह गर्भमृत्वियँयतो जातः प्रजापतिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुभूरिति सुऽभूः। स्वयम्भूरिति स्वयम्ऽभूः। प्रथमः। अन्तः। महति। अर्णवे। दधे। ह। गर्भम्। ऋत्वियम्। यतः। जातः। प्रजापतिरिति प्रजाऽपतिः॥६३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 63
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    ईश्वरः कीदृश इत्याह॥

    अन्वयः

    हे जिज्ञासो! यतः प्रजापतिर्जातो यश्च सुभूः स्वयम्भूः प्रथमो जगदीश्वरो महत्यर्णवऽन्तर्ऋत्वियं गर्भं दधे तं ह सर्वे जना उपासीरम्॥६३।

    पदार्थः

    (सुभूः) यः सुष्ठु भवतीति (स्वयम्भूः) यः स्वयम्भवत्युत्पत्तिनाशरहितः (प्रथमः) आदिमः (अन्तः) मध्ये (महति) (अर्णवे) यत्रार्णांस्युदकानि संबद्धानि सन्ति तस्मिन् संसारे (दधे) दधाति (ह) किल (गर्भम्) बीजम् (ऋत्वियम्) ऋतु सम्प्राप्तोऽस्य तम् (यतः) यस्मात् (जातः) (प्रजापतिः) प्रजापालकः सूर्यः॥६३॥

    भावार्थः

    यदि ये मनुष्याः सूर्य्यादीनां परं कारणं प्रकृतिं तत्र बीजधारकं परमात्मानं च विजानीयुस्तर्हि तेऽस्मिन् संसारे विस्तीर्णसुखा भवेयुः॥६३।

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    हिन्दी (3)

    विषय

    ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे जिज्ञासु जन! (यतः) जिस जगदीश्वर से (प्रजापतिः) विश्व का रक्षक सूर्य (जातः) उत्पन्न हुआ है और जो (सुभूः) सुन्दर विद्यमान (स्वयम्भूः) जो अपने आप प्रसिद्ध उत्पत्तिनाशरहित (प्रथमः) सब से प्रथम जगदीश्वर (महति) बड़े विस्तृत (अर्णवे) जलों से सम्बद्ध हुए संसार के (अन्तः) बीच (ऋत्वियम्) समयानुकूल प्राप्त (गर्भम्) बीज को (दधे) धारण करता है, (ह) उसी की सब लोग उपसना करें॥६३॥

    भावार्थ

    यदि जो मनुष्य लोग सूर्यादि लोकों के उत्तम कारण प्रकृति को और उस प्रकृति में उत्पत्ति की शक्ति को धारण करनेहारे परमात्मा को जानें तो वे जन इस जगत् में विस्तृत सुख वाले होवें॥६३॥

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    विषय

    प्रजापति की उत्पत्ति, पक्षान्तर में राजा और परमेश्वर के प्रजापति नाम होने का कारण ।

    भावार्थ

    (सुभूः) सबसे श्रेष्ठ, सर्वपूज्य, सर्वोत्पादक, (स्वयंभूः) स्वयं अपनी सत्ता से विद्यमान, ( प्रथम ) सबसे पूर्व विद्यमान, जगदीश्वर (महति अर्णवे) बड़े अर्णव, प्रकृति के परमाणु रूप सागर के (अन्तः) बीच में, ( ऋत्वियम् ) स्त्री के देह में ऋतुकाल के अवसर पर जैसे पुरुष संतति उत्पादक गर्भ को स्थापित करता है उसी प्रकार नियत काल में ( गर्भम् ) हिरण्यगर्भ को (दधे) स्थापन करता है । (यतः) जहां से (प्रजापतिः) प्रजा का पालक, सूर्य या संवत्सर (जात :) उत्पन्न होता है । इसी प्रकार राजा - (सुभूः) उत्तम सामर्थ्यवान्, (स्वयंभूः) स्वयं सत्तावान्, (प्रथमः) सबसे श्रेष्ठ, विद्वान् (महति अर्णवे अन्तः) बड़े भारी जन- सागर के बीच ( ऋत्वियम् ) राजसभा के सदस्यों के अनुकूल( गर्भम् ) राष्ट्र को वश करने वाले प्रबन्ध को (दधे) धारण करता है ( यतः) जिसमें से ( प्रजापतिः) प्रजा का पालक राजा और राष्ट्र (जातः) उत्पन्न होता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्देवता । विराड् अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    सुभू-स्वयंभू-प्रथम

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र की समाप्ति और वस्तुतः ब्रह्मादि के 'ब्रह्मोद्य' ज्ञानचर्चा की समाप्ति इस बात पर हुई थी कि सारी वेदवाणी का मुख्य प्रतिपाद्य विषय 'ब्रह्म' है। उसी सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता [ब्रह्म] का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि वह ('सुभूः') = [सुष्ठु भूः उत्पत्तिर्यस्मात् - उ० ] इस विश्व का उत्तम उत्पादन करनेवाला है, परन्तु उसे कोई बनानेवाला नहीं। वह तो (स्वयम्भूः) = स्वयं होनेवाला है। वह सदा से विद्यमान है, खुद आ है। २. (प्रथमः) = सबका आदि है। 'प्रथ विस्तारे' = अत्यन्त विस्तृत, सर्वव्यापक है। वह (महति अर्णवे अन्तः) = इस महान् प्रकृति के अणुसमुद्र के अन्दर विद्यमान है। वस्तुतः उसी की सत्ता के कारण यह महान् अणुसमुद्र भी सत्तावाला प्रतीत होता है, वहीं इस समुद्र को प्रथम गति देनेवाला है। ३. (ह) = निश्चय से वह (स्वयम्भू ऋत्वियम्) = [प्राप्तकालं] जिसका ठीक समय उपस्थित हुआ है उस (गर्भं दधे) = गर्भ को धारण करता है। काव्यभाषा में इस ब्रह्माण्ड की प्रकृति माता है तो प्रभु पिता हैं। वे प्रभु इस प्रकृति में बीज का धारण करते हैं और ये सब मूर्त्तियाँ [ मूर्त्त वस्तुएँ] उत्पन्न हो जाती हैं। गीता में कहते हैं- ('मम योनिर्महद् ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्। सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।') ४. (यतः) = प्रभु के प्रकृति में जिस गर्भ धारण करने पर (प्रजापतिः जातः) = प्रजापति ने संसार को जन्म दे दिया। (माता प्रजाता) = माता ने बच्चे को जन्म दिया, जिससे माता पैदा हो गई। इसी प्रकार 'प्रजापतिः जात:' - प्रजापति ने संसार को जन्म दे दिया, प्रजापति बन गया।

    भावार्थ

    भावार्थ-वे प्रभु 'सुभू, स्वयम्भू व प्रथम हैं। अणुसमुद्र के अन्दर भी विद्यमान हैं। वे इसमें गर्भ का धारण करते हैं और संसार के सब पदार्थ उत्पन्न हो जाते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे, सूर्य वगैरे गोलांचे कारण प्रकृती आहे हे जाणतात व त्या प्रकृतीमध्ये उत्पत्तीशक्ती धोरण करणाऱ्या परमेश्वराला जाणतात. त्यांना या जगात खूप सुख मिळू शकते.

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    विषय

    ईश्‍वर कसा आहे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    हे जिज्ञासू मनुष्या, ऐक (यतः) ज्या जगदीश्‍वरापासून (प्रजापतिः) विश्‍वाचा रक्षणकर्मा सूर्य (जातः) उत्पन्न ज्या जगदीश्‍वरापासून (प्रजापतिः) विश्‍वाचा रक्षणकर्ता सूर्य (जातः) उत्पन्न झाला आहे आणि जो (सुभूः) अत्यंत मनोहर आणि अस्तिृत्वान आहे तसेच जो (स्वयम्भूः) स्वतः प्रसिद्ध उत्पत्ती - नाश रहित अजन्मा, अमर असून (प्रथमः) सर्वप्रथम विद्यमान जगदीश्‍वर आहे, (त्याचीच सर्वांनी उपासना करावी.) तसेच जो (महति) अति विशाल (अर्णवे) जलाचा समूह वा जलाचे स्थान हा संसार आहे, त्या (अन्तः) जगामधे (ऋत्वियम्) समआनुकूल प्राप्त (गर्भम्) बी (दधे) धारण करतो (जलामुळे वनस्पती आदीचे बी उगवण्याची वृक्षवृद्धीची व्यवस्था करतो) (ह) निश्‍चयाने आम्ही सर्व लोकांनी त्याच परमेश्‍वराची उपासना केली पाहिजे. ॥63॥

    भावार्थ

    भावार्थ - मनुष्यांनी सूर्यादि लोकांचे जे उत्तम कारण म्हणजे प्रकृती, त्या प्रकृतीमधे ज्या परमेश्‍वराने उत्पन्न उत्पत्ति (बी, वनस्पती वा इतर पदार्थ) उत्पन्न करण्याची शक्ती दिली आहे. त्या परमेश्‍वराला आणि त्याच्या अनंत सामर्थ्याला जे लोक जाणतील ते अवश्य पुष्कळ सुख प्राप्त करतील ॥63॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    God, Who his produced the Sun, is Excellent, and Self-Existent, the First within the mighty world. He lays down the timely embryo. All should worship Him.

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    Meaning

    Gracious and glorious, self-existent and at the very centre in this grand ocean of the universe is Brahma. He plants the seed of creation into Prakriti according to the season of the creative cycle, and thence is born Prajapati, the sun, lord of life.

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    Translation

    The auspicious Being, born of His own will, the first one, lays down into the great ocean in proper season, the embryo, from which the Creator is born. (1)

    Notes

    Subhūḥ, auspicious being. Svayambhuḥ, born of His own will. Antarmahatyarņave, महत: अर्णवस्य जलसंघातस्य मध्ये, within the mighty flood of waters. Prajapatiḥ, the Lord of the creatures; the creator. Also, nourisher of his progeny.

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    बंगाली (1)

    विषय

    ঈশ্বরঃ কীদৃশ ইত্যাহ ॥
    ঈশ্বর কেমন এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে জিজ্ঞাসু ব্যক্তি! (য়তঃ) যে জগদীশ্বর হইতে (প্রজাপতিঃ) বিশ্বের রক্ষক সূর্য্য (জাতঃ) উৎপন্ন হইয়াছে এবং যে (সুভূঃ) সুন্দর বিদ্যমান (স্বয়ম্ভূঃ) যে স্বয়ং প্রসিদ্ধ উৎপত্তি, নাশরহিত (প্রথমঃ) সকলের পূর্বে জগদীশ্বর (মহতি) অত্যন্ত বিস্তৃত (অর্ণবে) জলের সঙ্গে সম্বদ্ধ সংসারের (অন্তঃ) মধ্যে (ঋত্বিয়ম্) সময়ানুকূল প্রাপ্ত (গর্ভম্) বীজকে (দধে) ধারণ করে (হ) সকলে তাহার উপাসনা করিবে ॥ ৬৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যদি মনুষ্যগণ সূর্য্যাদি লোকের উত্তম কারণ প্রকৃতিকে এবং সেই প্রকৃতিতে উৎপত্তির শক্তিকে ধারণকারী পরমাত্মাকে জানিবে, তাহারা এই জগতে বিস্তৃত সুখ যুক্ত হইবে ॥ ৬৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সু॒ভূঃ স্ব॑য়॒ম্ভূঃ প্র॑থ॒মো᳕ऽন্তর্ম॑হত্য᳖র্ণ॒বে ।
    দ॒ধে হ॒ গর্ভ॑মৃ॒ত্বিয়ং॒ য়তো॑ জা॒তঃ প্র॒জাপ॑তিঃ ॥ ৬৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সুভূরিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । সমাধাতা দেবতা । বিরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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