यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 49
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - प्रष्टृसमाधातारौ देवते
छन्दः - निचृत त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
92
पृ॒च्छामि॑ त्वा चि॒तये॑ देवसख॒ यदि॒ त्वमत्र॒ मन॑सा ज॒गन्थ॑।येषु॒ विष्णु॑स्त्रि॒षु प॒देष्वेष्ट॒स्तेषु॒ विश्वं॒ भुव॑न॒मावि॑वेशाँ३ऽ॥४९॥
स्वर सहित पद पाठपृ॒च्छामि॑। त्वा॒। चि॒तये॑। दे॒व॒स॒खेति॑ देवऽसख। यदि॑। त्वम्। अत्र॑। मन॑सा। ज॒गन्थ॑। येषु॑। विष्णुः॑। त्रि॒षु। प॒देषु॑। आइ॑ष्ट॒ इत्याऽइ॑ष्टः। तेषु॑। विश्व॑म्। भुव॑नम्। आ। वि॒वे॒श॒ ॥४९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पृच्छामि त्वा चितये देवसख यदि त्वमत्र मनसा जगन्थ । येषु विष्णुस्त्रिषु पदेष्वेष्टस्तेषु विश्वम्भुवनमाविवेशा३ ॥
स्वर रहित पद पाठ
पृच्छामि। त्वा। चितये। देवसखेति देवऽसख। यदि। त्वम्। अत्र। मनसा। जगन्थ। येषु। विष्णुः। त्रिषु। पदेषु। आइष्ट इत्याऽइष्टः। तेषु। विश्वम्। भुवनम्। आ। विवेश॥४९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः प्रश्नानाह॥
अन्वयः
हे देवसख! यदि त्वमत्र मनसा जगन्थ तर्हि त्वा चितये पृच्छामि, यो विष्णुर्येषु त्रिषु पदेष्वेष्टोऽस्ति तेषु व्याप्तः सन् विश्वं भुवनमाविवेश तं च पृच्छामि॥४९॥
पदार्थः
(पृच्छामि) (त्वा) त्वाम् (चितये) चेतनाय (देवसख) देवानां विदुषां सुहृद् (यदि) (त्वम्) (अत्र) (मनसा) अन्तःकरणेन (जगन्थ) (येषु) (विष्णुः) व्यापकेश्वरः (त्रिषु) त्रिविधेषु (पदेषु) नामस्थानजन्माख्येषु (एष्टः) (तेषु) (विश्वम्) (भुवनम्) (आ) (विवेश) आविष्टो व्याप्तोऽस्ति॥४९॥
भावार्थः
हे विद्वन्! यश्चेतनः सर्वव्यापी पूजितुं योग्यः परमेश्वरोऽस्ति, तं मह्यमुपदिश॥४९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर प्रश्नों को अगले मन्त्र में कहते हैं॥
पदार्थ
हे (देवसख) विद्वानों के मित्र! (यदि) जो (त्वम्) तू (अत्र) यहाँ (मनसा) अन्तःकरण से (जगन्थ) प्राप्त हो तो (त्वा) तुझे (चितये) चेतन के लिये (पृच्छामि) पूछता हूँ जो (विष्णुः) व्यापक ईश्वर (येषु) जिन (त्रिषु) तीन प्रकार के (पदेषु) प्राप्त होने योग्य जन्म, नाम और स्थान में (एष्टः) अच्छे प्रकार इष्ट है, (तेषु) उनमें व्याप्त हुआ (विश्वम्) सम्पूर्ण (भुवनम्) पृथिवी आदि लोकों को (आ, विवेश) भलीभांति प्रवेश कर रहा है, उस परमात्मा को भी तुझ से पूछता हूँ॥४९॥
भावार्थ
हे विद्वान्! जो चेतनस्वरूप, सर्वव्यापी, पूजा, उपासना, प्रशंसा, स्तुति करने योग्य परमेश्वर है; उसका मेरे लिये उपदेश करो॥४९॥
विषय
व्यापक परमेश्वर के तीन चरणों में विश्व की स्थिति।
भावार्थ
हे (ब्रह्मन् ) विद्वन् ! ब्रह्मन् ! प्रभो ! हे (देवसख) देवों, विद्वानों के परम मित्र ! मैं (चितये) ज्ञान प्राप्ति के लिये (त्वा पृच्छामि ) तुझ से प्रश्न करता हूँ । (यदि) क्या ( त्वम् ) तू (अत्र) इस देवसभा में (मनसा) ज्ञान के साथ दत्तचित्त होकर (जगन्ध ) उपस्थित है । ईश्वर ज्ञानरूप से व्याप्त है ? ( येषु त्रिषु पदेषु ) जिन ज्ञान कराने वाले तीन साधनों या ज्ञान करने योग्य पदों और लोकों, चरणों, सृष्टि, स्थिति, संहार इन विविध सामर्थ्यौं में (विष्णुः) तू व्यापक परमेश्वर ही (इष्ट:) उपासना किया गया है ( तेषु) उनमें ही क्या ( विश्वं भुवनम् ) यह समस्त जगत् (आ विवेशां) समा जाता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रष्टृसमाधातारौ देवते । ब्रह्मविषयकः प्रश्नः । निचृत् त्रिष्टुप् । गान्धारः ॥
विषय
पद-त्रयी
पदार्थ
१. यज्ञ की समाप्ति पर परस्पर ज्ञानचर्चा करते हुए उद्गाता ब्रह्मा से कहता है कि हे ब्रह्मन्! (देवसख) = देवों के मित्र अथवा उस देवाधिदेव प्रभु के समान ख्यानवाले [ख्यान - नाम व दर्शन ] ! (चितये) = ज्ञान प्राप्ति के लिए त्वा पृच्छामि आपसे मैं यह पूछता हूँ कि (यदि) = अगर (त्वम्) = आप (अत्र) = इस विषय में (मनसा) = मनन के द्वारा (जगन्थ) = गये हैं, अर्थात् यदि विचार करते-करते आपने इस बात को समझा है, यदि आप जानते हैं तो मुझे भी बतलाइए। मैं केवल जिज्ञासुभाव से प्रश्न कर रहा हूँ- 'मुझमें कोई विजिगीषा की भावना हो' ऐसा नहीं। मैं जल्प व वितण्डा की वृत्ति को अपनाकर प्रश्न नहीं कर रहा हूँ। शुद्ध [सं] वाद के विचार से मेरा प्रश्न है। २. प्रश्न मेरा उन लोकों के विषय में है (येषु) = जिन (त्रिषु पदेषु) = तीन पदों में (विष्णुः) = वह सर्वव्यापक प्रभु (इष्टः) = [ = आ इष्टः ] सर्वथा चाहा गया है, [इष् इच्छायाम्], अर्थात् वह पूजा के योग्य [यज + क्त] है। तेषु उन्हीं तीन पदों में ही तो (विश्वं भुवनम्) = सम्पूर्ण भुवन (आविवेश) = प्रविष्ट हुआ हुआ है। इस प्रकार प्रश्न को सुनकर ब्रह्मा उत्तर देते हैं-
मराठी (2)
भावार्थ
हे विद्वानांनो ! जो चेतनस्वरूप, सर्वव्यापी, पूजा, उपासना प्रशंसा, स्तुती करण्यायोग्य असा परमेश्वरच आहे. त्यांच्यासंबंधी मला उपदेश करा.
विषय
पुढच्या मंत्रात आणखी काही प्रश्न विचारले आहेत, त्याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (देवसख) विद्वज्जनांच्या मित्रा, (त्वम्) तू (यदि) जर (अत्र) इथे (माझ्यासमोर) (मनसा) अंतकरणाने (जगन्थ) येत असशील, (लक्ष देऊन माझे ऐकत असशील, तर मी (त्वा) तुला (चितये) तुझ्या (विष्णुः) सर्वव्यापी ईश्वर (येषु) ज्या (त्रिषु) तीन प्रकारच्या (पदेषु) प्राप्तव्य विषयांच्या म्हणजे (व्यक्ती, व्यस्तुवा पदार्थ्यांच्या) जन्म, नाम आणि स्तानात (एष्टः) चांगल्याप्रकारे विद्यमान आहे आणि (तेषु) त्यामधे व्याप्त होत वा असून तो ईश्वर (विश्वम्) (भुवनम्) समस्त पृथ्वी आदी लोकांमधेदेखील (आ, विवेश) पूर्णतः अंतस्थित वा प्रविष्ट आहे, त्या परमात्म्या विषयी मी तुला विचारीत आहे. (त्याची तीन पद म्हणजे पाऊलें कोणती) व्यक्ती वा पदार्थांची उत्पत्ति, त्याचे नाम आणि स्थान या तीनही अवस्थात सर्वव्यापी ईश्वर विद्यमान आहे) ॥49॥
भावार्थ
भावार्थ - हे विद्वान जो, चेतनस्वरूप, सर्वव्यापी परमेश्वर आहे की ज्याची पूजा, उपासना आणि स्तुती करणे इष्ट आहे, त्याच्या विषयी तुम्ही मला उपदेश करा (त्याच्या विषयी अधिक विस्ताराने सांगा) ॥49॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God, Friend of the learned I ask, for information, if Thou in spirit hast pervaded the universe. Is this created world contained in the three steps in which Vishnu is worshipped ?
Meaning
Friend of the divine, I ask you for my understanding, if with your mind you can reach the answer: Does the living world exist in those three regions of the universe — the earth, the sky, and the heavens, wherein Vishnu, universal lord of the world, pervades?
Translation
O friend of the enlightened ones, I ask you for my knowledge. Tell me, if you have reached any conclusion in this regard; whether in the three steps, by which the sacrifice extends, the whole of the universe is encompassed or not? (1)
Notes
Vişnuḥ, यज्ञो वै विष्णु:, the sacrifice is Visnuḥ. Also, one of the twelve Adityas. Trișu padeșu iṣṭaḥ, was worshipped in three steps, i. e. three phases. Viśvam bhuvanam, whole of the universe; सर्व भूतजातं all the beings that exist.
बंगाली (1)
विषय
পুনঃ প্রশ্নানাহ ॥
পুনঃ প্রশ্নগুলিকে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (দেবসখ) বিদ্বান্দিগের মিত্র! (য়দি) যদি (ত্বম্) তুমি (অত্র) এখানে (মনসা) অন্তঃকরণ দ্বারা (জগন্থ) প্রাপ্ত হও তাহা হইলে (ত্বা) তোমাকে (চিতয়ে) চেতনের জন্য (পৃচ্ছামি) জিজ্ঞাসা করি, যে (বিষ্ণুঃ) ব্যাপক ঈশ্বর (য়েষু) যে (ত্রষু) তিন প্রকারের (পদেষু) প্রাপ্ত হওয়ার যোগ্য জন্ম, নাম ও স্থানে (ত্রষ্টঃ) উত্তম প্রকার ইষ্ট (তেষু) তন্মধ্যে ব্যাপ্ত (বিশ্বম্) সম্পূর্ণ (ভুবনম্) পৃথিবী আদি লোক-লোকান্তরকে (আ, বিবেশ) ভালমত প্রবেশ করিতেছে সেই পরমাত্মাকে তোমার নিকট জিজ্ঞাসা করি ॥ ৪ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–হে বিদ্বান্! যাহা চেতনাস্বরূপ সর্বব্যাপী, পূজা, উপাসনা, প্রশংসা, স্তুতি করিবার যোগ্য পরমেশ্বর, তাহাকে আমার জন্য উপদেশ কর ॥ ৪ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
পৃ॒চ্ছামি॑ ত্বা চি॒তয়ে॑ দেবসখ॒ য়দি॒ ত্বমত্র॒ মন॑সা জ॒গন্থ॑ ।
য়েষু॒ বিষ্ণু॑স্ত্রি॒ষু প॒দেষ্বেষ্ট॒স্তেষু॒ বিশ্বং॒ ভুব॑ন॒মা বি॑বেশাঁ৩ ॥ ৪ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
পৃচ্ছামীত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । প্রষ্টৃসমাধাতারৌ দেবতে । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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