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यजुर्वेद अध्याय - 23

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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 29
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    368

    यद्दे॒वासो॑ ल॒लाम॑गुं॒ प्र वि॑ष्टी॒मिन॒मावि॑षुः। स॒क्थ्ना दे॑दिश्यते॒ नारी॑ स॒त्यस्या॑क्षि॒भुवो॑ यथा॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। दे॒वासः॑। ल॒लाम॑गु॒मिति॑ ल॒लाम॑ऽगुम्। प्र। वि॒ष्टी॒मिन॑म्। आवि॑षुः। स॒क्थ्ना। दे॒दि॒श्य॒ते॒। नारी॑। स॒त्यस्य॑। अ॒क्षि॒भुव॒ इत्य॑क्षि॒ऽभुवः॑। य॒था॒ ॥२९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्देवासो ललामगुम्प्र विष्टीमिनमाविषुः । सक्थ्ना देदिश्यते नारी सत्यस्याक्षिभुवो यथा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। देवासः। ललामगुमिति ललामऽगुम्। प्र। विष्टीमिनम्। आविषुः। सक्थ्ना। देदिश्यते। नारी। सत्यस्य। अक्षिभुव इत्यक्षिऽभुवः। यथा॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 29
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे राजन्! यथा सत्यस्याक्षिभुवो मध्ये वर्त्तमाना देवासः सक्थ्ना नारीव यद्विष्टीमिनं ललामगुं न्यायं प्राविषुर्यथा चाऽऽप्तेन सत्यमेव देदिश्यते तथा त्वमाचर॥२९॥

    पदार्थः

    (यत्) यम् (देवासः) विद्वांसः (ललामगुम्) येन न्यायेनेप्सां गच्छन्ति प्राप्नुवन्ति तम् (प्र) (विष्टीमिनम्) विशिष्टा बहवः ष्टीमा आर्द्रीभूताः पदार्था विद्यन्ते यस्मिँस्तम् (आविषुः) व्याप्नुयुः (सक्थ्ना) शरीरावयवेन (देदिश्यते) भृशमुपदिश्येत (नारी) नरस्य स्त्री (सत्यस्य) (अक्षिभुवः) यदक्षिणि भवति प्रत्यक्षं तस्य (यथा)॥२९॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा शरीराङ्गैः स्त्रीपुरुषौ लक्ष्येते तथा प्रत्यक्षादिप्रमाणैः सत्यं लक्ष्यते। तेन सत्येन विद्वांसो यथा प्राप्तव्यमार्द्रीभावं प्राप्नुयुस्तथेतरे राजप्रजास्थाः स्त्रीपुरुषा विद्यया विनयं प्राप्य सुखमन्विच्छन्तु॥२९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे राजन्! (यथा) जैसे (सत्यस्य) सत्य (अक्षिभुवः) आंख के सामने प्रगट हुए प्रत्यक्ष व्यवहार के मध्य में वर्त्तमान (देवासः) विद्वान् लोग (सक्थ्ना) जांघ वा और अपने शरीर के अङ्ग से (नारी) स्त्री के समान (यत्) जिस (विष्टीमिनम्) जिस में सुन्दर बहुत गीले पदार्थ विद्यमान हैं (ललामगुम्) और जिससे मनोवांछित फल को प्राप्त होते हैं, ऐसे न्याय को (प्राविषुः) व्याप्त हों वा जैसे शास्त्रवेत्ता विद्वान् जन सत्य का (देदिश्यते) निरन्तर उपदेश करें, वैसे आप आचरण करो॥२९॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे शरीर के अङ्गों से स्त्री-पुरुष लखे जाते हैं, वैसे प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सत्य लखा जाता है, उस सत्य से विद्वान् लोग जैसे पाने योग्य कोमलता को पावें, वैसे राजा-प्रजा के स्त्री-पुरुष विद्या से नम्रता को पाकर सुख को ढूंढें॥२९॥

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    विषय

    न्यायशील पुरुषों को सभा में सत्य निर्णय करने का उपदेश | मन्त्रोक्त 'नारी' पद का रहस्य ।

    भावार्थ

    (यत्) जब ( देवासः ) विद्वान् पुरुष (ललामगुम् ) उत्तम वाणी वाले, (विष्टमिनिम् ) विशेष दया के भावों से युक्त, अथवा प्रजा के विविध कर्मों के विवेचक, न्यायाधीष पुरुष को ( प्र आविषुः ) प्राप्त होते हैं तब जैसे (सक्थ्ना) शरीर के जंघा भाग से (नारी देदिश्यते) स्त्री या मादीन का पता लग जाता है, उसी प्रकार ( अक्षिभुवः ) आंख से देखे प्रत्यक्ष ( सत्यस्य ) सत्य और उसके आश्रय पर हुए अनुमान ज्ञान का भी (देदिश्यते) वर्णन किया जाता है । 'ललामगुः' ललामं सुखं कर्तुं गच्छति इति ललामगुः । इति उवटः । (विष्टी मिनम् ) विविधाः स्तीमा: आर्द्रीभूताः पदार्था यस्मिन् अथवा 'विष्टीमिनम् ' विष्टीः कर्माणि वेतनानि वा मिनोति, माति, मन्यते, विवेचयति चा, शब्दयति वा स 'विष्टीमी' तम् । माङ् माने शब्दे च भयादिः माङ् माने । दिवादिः । ललामः ललाटे श्वैत्ययुक्तः इति सायण: । राष्ट्रपक्ष में-नारी पुरुषों की सभा । ( सक्थना) समवाय शक्ति से देखी जाती है । "पच समवाये । नारी नराणाम् इयम् ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    देवाः विद्वांसो देवताः । अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    नारी=नरहितकारिणी सभा

    पदार्थ

    १. राजा के राजकार्य में सहायकरूप से जो दशावरा व त्र्यवरा परिषद् बनती हैं उनका मुख्य उद्देश्य 'प्रजा का हित करना' है, अतः नर - हितकारिणी यह सभा यहाँ प्रस्तुत मन्त्र में 'नारी' शब्द से कही गई है। इस सभा में (यत्) = जब (ललामगुम्) = सुन्दर वाणीवाले [ललाम= सुन्दर, गो-वाणी] तथा (विष्टीमिन्) = विशेषरूप से प्रजा के लिए करुणार्द्रभाववाले [स्नीम् - आर्द्राभावे] राजा को (देवासः) = विद्वान् लोग, व्यवहारकुशल विद्वान् (प्र अमाविषुः) = प्रकर्षेण व्याप्त कर लेते हैं तब वे (यथा) = जैसे (सत्यस्य अक्षिभुवः) = सत्य की आँखों से देखनेवाले होते हैं, उसी प्रकार अर्थात् उसी अनुपात में नारी वह नरहितकारिणी सभा (सक्थ्ना) = [षच सवने सचने च षच् समवाये] सेवन की वृत्ति से, प्रजा पर सुख का सेचन करने से तथा अपने अन्दर समवाय व मेल से (देदिश्यते) = [Point out] संकेतित होती है, अर्थात् उस सभा के ये तीन मुख्य गुण हैं, [क] वह प्रजा की सेवा करनेवाली होती है, [ख] प्रजा पर सुखों का सेचन करती है और [ग] उस सभा के सभ्यों में परस्पर मेल होता है, वहाँ पक्ष, प्रति पक्ष की फूट प्रबल नहीं हो पाती । २. मन्त्रार्थ से स्पष्ट है- राजा सभा में कभी कटु वाणी नहीं बोलता, वह 'ललामगु' होता है। अथर्व० ७।१२।१। में राजा कहता है कि ('चारु वदानि पितरः संगतेषु') = हे सभासदो! मैं सभा के सभ्यों के एकत्र होने पर सदा सुन्दर शब्द ही बोलूँ। ३. अथर्व ७।१२।२ में इस सभा को नरिष्टा मनुष्यों के लिए इष्ट को सिद्ध करनेवाली' शब्द से स्मरण किया गया है। यही भाव यहाँ 'नारी' शब्द से कहा गया है ('विद्म सभे ते नाम नरिष्टा नाम वा असि') । ४. सभा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वहाँ पार्टीबाजी व वैमनस्य नहीं । ('ये ते के च सभासदः ते मे सन्तु सवाचसः') [अ० ७।१२।२] सब सभासद् ऐकमत्यवाले हों। जितना जितना सभासद सत्य की ओर झुकाववाले होंगे, सत्य की ही आँख से देखनेवाले होंगे उतना उतना वे परस्पर समीप होंगे। ५. ‘प्र अमाविषुः’=व्याप्त करते हैं। यह शब्द स्पष्ट कह रहा है कि राजा विद्वानों से ही घिरा होगा तो सभा प्रजा का कल्याण करनेवाली होगी, खुशामदियों से घिरा होगा तो वह राजा प्रजा का क्या कल्याण कर पाएगा?

    भावार्थ

    भावार्थ - जब राजा को विद्वान् लोग व्याप्त करते हैं तभी राजसभा प्रजा की सेवा कर पाती है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्याप्रमाणे शरीरावरून स्री व पुरुष ओळखले जातात. त्याप्रमाणे प्रत्यक्ष प्रमाणांनी सत्य ओळखले जाते. त्या सत्याला जाणून विद्वान लोक जसे नम्र असतात, तसे राजा व प्रजा यांच्या स्री-पुरुषांनी विद्येने नम्रतायुक्त बनावे व सुख शोधावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रात त्याचविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - राजन्, (यथा) ज्याप्रमाणे (सत्यस्या) सत्याचे अस्तित्व (अक्षिभुवः) डोळ्यासमोर प्रत्यक्ष होणार्‍या व्यवहारामधे विद्यमान असते आणि (देवासः) विद्वज्जन (सक्थना) जंघा वा शरीराची दुसरी अंगे (शिश्‍न, योनि आदी) पाहून (नारी) स्त्री वा पुरूषाला ओळखतात, तद्वत (विष्टीमिनम्) ज्या (प्रदेशात) वा पदार्थात अनेक ओलसर व सुंदर प्रिय पदार्थ असतात, आणि ज्यामुळे (ललागुम्) मनोवांछित फळें प्राप्त होतात, अशा पद्धतीला वा प्रक्रियेला (प्राविषूः) विद्वज्जन प्राप्त करतात (विद्वज्जन ज्ञानार्जनासाठी सुंदर प्रदेश निवडतात आणि मनोवांछित फळ प्राप्त करण्यासाठी योग्य पद्धती शोधून काढतात, असे ते शास्त्रवेत्ता विद्वान सत्याचा (देदिश्यते) लोकांना नित्य उपदेश करतात (वा केला पाहिजे. आपण शोधलेले सत्य ना सिद्धांत विद्वानांनी इतरांना सांगितले पाहिजेत) ॥29॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमाअलंकार आहे. ज्याप्रमाणे शरीराचे विशिष्ट अंग पाहून स्त्री वा पुरूष ओळखले जातात, त्याप्रमाणे सत्य हे प्रत्यक्ष आदी प्रमाणाद्वारे शोधले जाते. त्या सत्यामुळे जसे विद्वानांच्या स्वभावात आवश्यक ती कोमलता येते, त्याप्रमाणे स्वतः राजाच्या आणि प्रजाजनांच्या स्वभावात विद्येमुळे नम्रत्व यावे. अशाप्रकारे सर्वांनी सत्यातच सुख शोधावे. ॥29॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Just as we distinguish between man and woman from their organs, so we realise truth from visible evidence. Learned persons with the help of truth acquire humility and their desired objects.

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    Meaning

    Just as noble people approach an eminent and reasonable judge for justice, just as a woman is distinguished by her body, so the men of reason find out the truth by direct observation of evidence.

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    Translation

    When the enlightened ones enter the joy-giving field of knowledge, which is worth entering, then the truth is comprehended fully and directly as a woman by her thighs. (1)

    Notes

    When gods (or godly persons, i. e. the priests) thrust their erect male organ into moistening vagina, then the woman is known only by her thighs.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে রাজন্ ! (য়থা) যেমন (সত্যস্য) সত্য (অক্ষিভুবঃ) চক্ষুর সম্মুখে প্রকট প্রত্যক্ষ ব্যবহারের মধ্যে বর্ত্তমান (দেবাসঃ) বিদ্বান্গণ (সক্থ্না) জঙ্ঘা বা অন্য নিজের শরীরের অঙ্গ দ্বারা (নারী) নারীর সমান (য়ৎ) যাহা (বিষ্টীমিনম্) যাহাতে সুন্দর অত্যন্ত আর্দ্র পদার্থ বিদ্যমান (ললামগুম্) এবং যদ্দ্বারা মনোবাঞ্ছিত ফল প্রাপ্ত হয় এমন ন্যায়কে (প্রাবিষুঃ) ব্যাপ্ত হউন বা যেমন শাস্ত্রবেত্তা বিদ্বান্ সত্যের (দেদিশ্যতে) নিরন্তর উপদেশ করিবেন সেইরূপ স্বয়ং আচরণ কর ॥ ২ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যেমন শরীরের অঙ্গ দ্বারা স্ত্রী-পুরুষ লক্ষ্য করা হয় সেইরূপ প্রত্যক্ষাদি প্রমাণ দ্বারা সত্য লক্ষ্য করা হয় । সেই সত্য দ্বারা বিদ্বান্গণ যেমন পাইবার যোগ্য কোমলতাকে পায় সেইরূপ এবং রাজা প্রজার স্ত্রী-পুরুষ বিদ্যা দ্বারা নম্রতা প্রাপ্ত হইয়া সুখ অন্বেষণ করুক ॥ ২ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়দ্দে॒বাসো॑ ল॒লাম॑গুং॒ প্র বি॑ষ্টী॒মিন॒মাবি॑ষুঃ ।
    স॒ক্থ্না দে॑দিশ্যতে॒ নারী॑ স॒ত্যস্যা॑ক্ষি॒ভুবো॑ য়থা ॥ ২ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়দ্দেবাস ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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