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यजुर्वेद अध्याय - 23

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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 45
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - जिज्ञासुर्देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    97

    कः स्वि॑देका॒की च॑रति॒ कऽउ॑ स्विज्जायते॒ पुनः॑।किस्वि॑द्धि॒मस्य॑ भेष॒जं किम्वा॒वप॑नं म॒हत्॥४५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः। स्वि॒त्। ए॒का॒की। च॒र॒ति॒। कः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। स्वि॒त्। जा॒य॒ते॒। पुन॒रिति॒ पुनः॑। किम्। स्वि॒त्। हि॒मस्य॑। भे॒ष॒जम्। किम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। आ॒वप॑न॒मित्या॒ऽवप॑नम्। म॒हत्॥४५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कः स्विदेकाकी चरति कऽउ स्विज्जायते पुनः । किँ स्विद्धिमस्य भेषजङ्किम्वावपनम्महत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कः। स्वित्। एकाकी। चरति। कः। ऊँऽइत्यूँ। स्वित्। जायते। पुनरिति पुनः। किम्। स्वित्। हिमस्य। भेषजम्। किम्। ऊँऽइत्यूँ। आवपनमित्याऽवपनम्। महत्॥४५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 45
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विदुषः प्रति प्रश्ना एवं कर्त्तव्या इत्याह॥

    अन्वयः

    हे विद्वन्! अस्मिन् संसारे कः स्विदेकाकी चरति क उ स्वित् पुनर्जायते किं स्विद्धिमस्य भेषजं किमु महदावपनमस्तीति वदस्व॥४५॥

    पदार्थः

    (कः) (स्वित्) (एकाकी) असहायोऽद्वितीयः (चरति) प्राप्नोति (कः) (उ) (स्वित्) अपि (जायते) (पुनः) (किम्) (स्वित्) (हिमस्य) शीतस्य (भेषजम्) औषधम् (किम्) (उ) (आवपनम्) समन्तात् सर्वाधारम् (महत्)॥४५॥

    भावार्थः

    असहायः को भ्रमति? शीतनिवारकः कः? कः पुनः पुनरुत्पद्यते? महदुत्पत्तिस्थानं किमस्ति? इत्येतेषां प्रश्नानामुत्तरेण मन्त्रेण समाधानानि वेदितव्यानि॥४५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वानों के प्रति प्रश्न ऐसे करने चाहियें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वन्! इस संसार में (कः, स्वित्) कौन (एकाकी) एकाएकी अकेला (चरति) चलता वा प्राप्त होता है (उ) और (कः, स्वित्) कौन (पुनः) फिर-फिर (जायते) उत्पन्न होता (किं, स्वित्) कौन (हिमस्य) शीत का (भेषजम्) औषध (किम्, उ) और क्या (महत्) बड़ा (आवपनम्) अच्छे प्रकार सब बीज बोने का आधार है, इस सब को आप कहिये॥४५॥

    भावार्थ

    विना सहाय के कौन भ्रमता? कौन फिर-फिर उत्पन्न होता? शीत की निवृत्ति कर्त्ता कौन? और बड़ा उत्पत्ति का स्थान क्या है? इन सब प्रश्नों के समाधान अगले मन्त्र से जानने चाहियें॥४५॥

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    विषय

    पुन: ब्रह्मोद्य । सूर्य चन्द्र अग्नि, भूमि, ब्रह्म, द्यौ, इन्द्र, वाणी के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर ।

    भावार्थ

    इस मन्त्र की व्याख्या देखो इसी अध्याय के मन्त्र ९ में ।

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    विषय

    ब्रह्मोद्य = ज्ञानचर्चा

    पदार्थ

    १. गतमन्त्रों के अनुसार शरीर के स्वस्थ व शमगुणयुक्त होने पर मनुष्य उत्तम ज्ञानचर्चाएँ करते हुए परस्पर प्रश्नोत्तर के प्रकार से ज्ञान का विस्तार करते हैं और उदाहरण के लिए निम्न प्रश्न उपस्थित करते हैं- [क] (स्वित्) = भला (क:) = कौन एकाकी अकेला (चरति) = विचरता है? किसे दूसरे की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती ? [ख] (कः स्वित्) = कौन भला (पुनः) = फिर जायते विकास को प्राप्त करता है? [ग] (किं स्वित्) = भला क्या (हिमस्य भेषजम्) = हिम का, ठण्डक का औषध है ? [घ] (उ) = और (किम्) = क्या (महत्) = महान् (आवपनम्) = बोने का स्थान है? २. इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहते हैं कि [क] (सूर्य:) = सूर्य (एकाकी चरति) = अकेला विचरता है। पृथिवी आदि सूर्य से आकृष्ट होकर उसके चारों ओर घूमें तो घूमें, सूर्य को इनकी अपेक्षा नहीं। इसी प्रकार अपराश्रित रूप से विचरनेवाला व्यक्ति ही सूर्य की भाँति चमकता है। स्वतन्त्रता में ही चमक है, [ख] (चन्द्रमा) = चाँद (पुन:) = फिर, कृष्णपक्ष में क्षीण होकर शुक्लपक्ष में फिर से जायते - विकसित हो जाता है। शरीर में यही चन्द्रमा मन है और मन के विकास के अनुपात में ही मनुष्य का विकास होता है, [ग] (हिमस्य) = ठण्डक का (भेषजम्) = औषध (अग्निः) = अग्नि है। शरीर में वाणी ही अग्नि है। यह वाणी किसी भी ठण्डे पड़े आन्दोलन को फिर से प्रचण्ड कर देने का सामर्थ्य रखती है, [घ] (भूमिः) = यह भूमि ही (महत् आवपनम्) = सबसे महत्त्वपूर्ण बोने का स्थान है। 'पृथिवी शरीरम्' अध्यात्म में शरीर ही पृथिवी है। मनुष्य इसी में वीर्य का वपन करता है। शरीर में वीर्य को सुरक्षित करने पर ही यह बीज ज्ञानाङ्कुर व अन्य दिव्यांकुरों को जन्म देनेवाला होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - हम अपराश्रित होकर विचरेंगे तो सूर्य की भाँति चमकेंगे। मन को विकसित करके अपने विकास को साधेंगे। वाणी से उत्साह का सञ्चार करेंगे तो शरीर एवं पृथिवी को बीज - [वीर्य] - वपन का स्थान बनाते हुए ज्ञान व दिव्य गुणों के अंकुरों को प्रादुर्भूत करनेवाले होंगे।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    कुणाचीही मदत न घेता कोण भ्रमण करतो? पुन्हा पुन्हा कोण उत्पन्न होतो? थंडी कशामुळे नष्ट होते? सर्वात मोठे उत्पत्ती स्थान कोणते? या सर्व प्रश्नांची उत्तरे पुढील मंत्रात आहेत, हे जाणावे.

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    विषय

    विद्वानांना अशाप्रकारे प्रश्‍न विचारावेत, -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे विद्वान (आम्हा जिज्ञासू विद्यार्थ्यांना सांगा की) (कः स्वित्) या जगात कोण (एकाकी) एकटा (चरति) चालत आहे? (उ) आणि (कः स्वित्) कोण वारंवार वा अनेकदा (जायते) उत्पन्न होतो? तसेच (किं, स्वित्) कोण वा काय (हिमस्य) थंडीवर (भेषजम्) औषध आहे? (किम, उ) आणि कोणता पदार्थ आहे की जो (महत्) (आवपनम्) बी पेरण्याचा अथवा उगवण्याचा मुख्य (महत्) मोठा आधार आहे? आपण आम्हां विद्यार्थ्यांना या चार प्रश्‍नांची उत्तरे सांगा) ॥45॥

    भावार्थ

    भावार्थ - विना आधार वा कोणाच्या साहाय्याशिवाय कोण भ्रमण (वा आकाशात) संचार करतो, कोण वारंवार उत्पन्न होतो, शीत वा थंडी कशाने निवारित होते आणि उत्पत्तिचे मोठे महत्वाचे स्थान कोणते ? या चार प्रश्‍नांची उत्तरें पुढील मंत्रात दिली आहेत) ॥45॥

    टिप्पणी

    (टीप - हा मंत्र याच तेहतिसाव्या अध्यायात क्र. 9 वर याच स्वरूपात आला आहे. येथे त्याची पुनरावृत्ती आहे, महर्षीनी शब्दार्थ करतांना किंचित वेगळा अर्थ दिला आहे)

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Who moveth singly and alone ? Who is brought forth to life again ? What is the remedy of cold ? What is the vast field for production.

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    Meaning

    Who moves alone? Who is born again and again? What is the antidote of cold? And what is the great field and hold of life, seed and sustenance?

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    Translation

    Tell me, who is he, that wanders alone, and who is he, that is born again? What is the remedy for freezing cold; and which is the extensive field? (1)

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ বিদুষঃ প্রতি প্রশ্না এবং কর্ত্তব্যা ইত্যাহ ॥
    এখন বিদ্বান্দিগের প্রতি প্রশ্ন এমন করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে বিদ্বান্! এই সংসারে (কঃ, স্বিৎ) কে (একাকী) একাকী (চরতি) চলে বা প্রাপ্ত হয় (উ) এবং (কঃ, স্বিৎ) কে (পুনঃ) পুনঃ পুনঃ (জায়তে) উৎপন্ন হয় (কিং, স্বিৎ) কে (হিমস্য) শীতের (ভেষজম্) ঔষধ (কিম্, উ) এবং কী (মহৎ) বৃহৎ (আবপনম্) উত্তম প্রকার সকল বীজ বপন করার আধার, এই সবকে আপনি বলুন ॥ ৪৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–বিনা সাহায্যে কে ভ্রমণ করে, কে পুনঃ পুনঃ উৎপন্ন হয়, শীতের নিবৃত্তিকারী কে এবং বৃহৎ উৎপত্তির স্থান কী–এই সব প্রশ্নের সমাধান পরবর্ত্তী মন্ত্রে জানা উচিত ॥ ৪৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    কঃ স্বি॑দেকা॒কী চ॑রতি॒ কऽউ॑ স্বিজ্জায়তে॒ পুনঃ॑ ।
    কিᳬंস্বি॑দ্ধি॒মস্য॑ ভেষ॒জং কিম্বা॒বপ॑নং ম॒হৎ ॥ ৪৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    কঃ স্বিদিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । জিজ্ঞাসুর্দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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