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यजुर्वेद अध्याय - 23

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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 9
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - जिज्ञासुर्देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    176

    कः स्वि॑देका॒की चर॑ति॒ कऽउ॑ स्विज्जायते॒ पुनः॑। किस्वि॑द्धि॒मस्य॑ भेष॒जं किम्वा॒वप॑नं म॒हत्॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः। स्वि॒त्। ए॒का॒की। च॒र॒ति॒। कः। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। स्वि॒त्। जा॒य॒ते॒। पुन॒रिति॒ पुनः॑। किम्। स्वित्। हि॒मस्य॑। भे॒ष॒जम्। किम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। आ॒वप॑न॒मित्या॒ऽवप॑नम्। म॒हत्॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कः स्विदेकाकी चरति कऽउ स्विज्जायते पुनः । किँ स्विद्धिमस्य भेषजङ्किम्वावपनम्महत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कः। स्वित्। एकाकी। चरति। कः। ऊँऽइत्यूँ। स्वित्। जायते। पुनरिति पुनः। किम्। स्वित्। हिमस्य। भेषजम्। किम्। ऊँऽइत्यूँ। आवपनमित्याऽवपनम्। महत्॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 9
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वांसः किं किं प्रष्टव्या इत्याह॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो वयं युष्मान् कः स्विदेकाकी चरति, क उ स्वित् पुनः पुनर्जायते किं स्विद्धिमस्य भेषजं किमु महदावपनमस्तीति पृच्छामः॥९॥

    पदार्थः

    (कः) (स्वित्) प्रश्ने (एकाकी) असहायः (चरति) गच्छति (कः) (उ) वितर्के (स्वित्) (जायते) (पुनः) (किम्) (स्वित्) (हिमस्य) शीतस्य (भेषजम्) औषधम् (किम्) (उ) (आवपनम्) समन्ताद् वपति यस्मिंस्तत् (महत्) विस्तीर्णम्॥९॥

    भावार्थः

    एतेषां प्रश्नानामुत्तरस्मिन् मन्त्र उत्तराणि कथितानीति वेद्यम्। मनुष्या ईदृशानेव प्रश्नान् कुर्युः॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वान् जनों को क्या-क्या पूछना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो! हम लोग तुम को पूछते हैं कि (कः स्वित्) कौन (एकाकी) एकाएकी अकेला (चरति) विचरता है? (उ) और (कः, स्वित्) कौन (पुनः) बार-बार (जायते) प्रगट होता है? (किम्, स्वित्) क्या (हिमस्य) शीत का (भेषजम्) औषध और (किम्) क्या (उ) तो (महत्) बड़ा (आवपनम्) बीज बोने का स्थान है?॥९॥

    भावार्थ

    इन उक्त प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में कहे हुए हैं, यह जानना चाहिये। मनुष्यों को योग्य है कि सदा इसी प्रकार के प्रश्न किया करें॥९॥

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    विषय

    ब्रह्मोद्य | ब्रह्म औरः प्रभु राजा की शक्तिविषयक प्रश्नोत्तर । सूर्य, अग्नि, भूमि, द्यौ, अश्व, अवि और रात्रि विषयक प्रश्नोत्तर ।

    भावार्थ

    बतलाओ (क: स्वित् ) कौन (एकाकी चरति ) अकेला विचरता है ? (क: उस्वित् ) बतलाओ कौन (पुनः) बार २ पैदा होता है ? ( किं स्वित्) बतलाओ क्या पदार्थ (हिमस्य ) शीत का ( भेषजम् ) उपाय है? ( किम् ) और कौन सा पदार्थ ( महत् ) बड़ा भारी (आवपनम् ) बोने का खेत है ?

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    [९-१२ ] ब्रह्मोद्यम् । जिज्ञासुर्देवता । निचृद् अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    चार प्रश्न व उत्तर

    पदार्थ

    १. प्रस्तुत मन्त्रों में साहित्य में प्रश्नोत्तर के प्रकार से प्रतिपादन की शैली का सुन्दरतम उदाहरण मिलता है। वनपर्व की समाप्ति पर यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में यही शैली प्रयुक्त हुई है । २. प्रथम प्रश्न यह है कि (स्वित्) = भला (कः) = कौन, (एकाकी) = अकेला (चरति) = विचरता है ? इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि (सूर्य:) = सूर्य (एकाकी) = अकेला (चरति) = चलता है। [क] सब ब्रह्माण्ड को गति देनेवाला परमात्मा सूर्य है। वह अपने कार्यों में दूसरे की सहायता पर निर्भर न करता हुआ अकेला विचरता है। [ख] समाज में संन्यासी भी सूर्य है। वह भी अकेला विचरता है। 'अरुचिर्जनसंसदि' = उसे जनसंघ रुचिकर नहीं होता। [ग] शरीर में सूर्य 'चक्षु' है। यह चक्षु भी प्रमाणान्तर की अपेक्षा न करती हुई स्वयं प्रमाण होती है और इस प्रकार अकेली विचरती है। यही भावना 'प्रत्यक्षे किं प्रमाणाम्' इन शब्दों से कही गई है। [घ] मनुष्य को सामान्यतः यही प्रयत्न करना चाहिए कि वह अपने कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर न रहकर स्वयं कर सके तभी वह सूर्य के समान चमकेगा। सूर्य के आश्रित अन्य पिण्ड हैं, सूर्य उनका आश्रित नहीं, इसीलिए सूर्य 'सूर्य' है। ३. अब दूसरा प्रश्न यह है कि (स्वित्) = भला (कः) = कौन निश्चय से (पुनः) = फिर (जायते) = प्रादुर्भूत व विकसित होता है। उत्तर देते हुए कहते हैं कि (चन्द्रमा:) = चाँद (पुनः) = फिर (जायते) = विकसित होता है। [क] आधिदैविक जगत् में चन्द्रमा कृष्णपक्ष में क्षीण होकर शुक्लपक्ष में फिर प्रादुर्भूत होता दिखता है। [ख] शरीर में यह मन के रूप से है 'चन्द्रमा मनो भूत्वा' चन्द्रमा ही तो मन [moon] बनकर हृदय में प्रविष्ट होता है। किसी भी मनुष्य का विकास इस मन के विकास के अनुपात में ही होता है। मन की आह्लादमयता ही मनुष्य के स्वास्थ्य के विकास का भी कारण बनती है। [ग] एक गृहस्थ में नव उत्पन्न सन्तान 'चन्द्र' तुल्य है। यह दिन-ब-दिन विकास को प्राप्त होती चलती है। ४. तीसरा प्रश्न है (स्वित्) = भला (हिमस्य) = शीत का (किं भेषजम्) = क्या औषध है ? उत्तर देते हुए कहते हैं कि (अग्निः) = आग (हिमस्य) = शीत का (भेषजम्) = औषध है। [क] आधिदैविक जगत् का अग्निदेव तो शीत से त्राण करता ही है। [ख] आधिभौतिक जगत् में जब आन्दोलन ठण्डा पड़ जाता है और लोगों का उत्साह मन्द हो जाता है तब एक नेता अग्नि की प्रतिनिधिभूत वाणी से [अग्निर्वाग् भूत्वा] लोगों में फिर से उत्साह का सञ्चार कर देता है, आन्दोलन में फिर से गर्मी आ जाती है। [ग] शरीर में जब तक यह अग्नितत्त्व विद्यमान रहता है तब तक मनुष्य ठण्डा नहीं पड़ता, मरता नहीं । ५. चौथा प्रश्न है (किम् उ) = और कौन-सा (महत् आवपनम्) = महनीय, महत्त्वपूर्ण बोने का स्थान है ? उत्तर देते हुए कहते हैं कि (भूमिः) = यह पृथिवी ही (महत् आवपनम्) = महत्त्वपूर्ण बोने का स्थान है। [क] वस्तुतः सभी बीज इसी भूमि में बोये जाते हैं। यह भूमि ही सब साधनों का क्षेत्र है। [ख] अध्यात्म में 'पृथिवी शरीरम्' यह शरीर पृथिवी है। इसे 'क्षेत्र' कहते हैं। इसी में दिव्य गुणों व विकास के बीज बोये जाते हैं। इसी में बीज - सोम-वीर्य का आवपन करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । सोम को इस शरीर में सुरक्षित रखने पर ही सब प्रकार की उत्पत्ति [विकास] निर्भर है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमें सूर्य की भाँति अपराश्रित रूप में विचरना है, अपने कार्य स्वयं करने हैं। मन के विकास से अपने विकास को सिद्ध करना है। अपनी वाणी को अग्नि के समान ओजस्वी बनाकर सर्वत्र उत्साह का सञ्चार करना है और इस शरीररूप पृथिवी में सोम का वपन करते हुए इसे महत्त्वपूर्ण आवपन बनाना है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    कोण एकटा फिरतो? कोण वारंवार प्रकाशित होतो? सर्दीचे औषध कोणते? बीजवपनाचे स्थन कोणते? या प्रश्नांची उत्तरे पुढील मंत्रात दिलेली आहेत, हे जाणावे. माणसांनी अशा प्रकारचे प्रश्न नेहमी विचारावेत.

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    विषय

    विद्वानांनी काय काय म्हणजे कोणते प्रश्‍न विचारावेत याविषयी.-

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे विद्वज्जनहो, आम्ही (सामान्य वा अवेयज्ञ माणसें आपणाला विचारत आहोत की (कः स्वित्) तो कोण आहे की जो (एकाकी) एकटाच (चरति) सर्वत्र संचार करतो? (उ) आणि (कः स्वित्) तो कोण आहे की जो (पुनः) वारंवार (आयते) प्रकट होतो? (हिमस्य) शीत (ऋतू वा शीतलत्व) यावर (औषघम्) औषध (किम्, स्वित्) कोणते आहे? (उ) आणि (महत्) मोठे (आवपनम) बीजवपम, बी पेरण्यांचे मोठे ठिकाण ते (किंम) कोणते आहे? (हे आम्हांस सांगा) ॥9॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रातील प्रश्‍नांची उत्तरें पुढच्या मंत्रात दिली आहेत. मनुष्यांनी नेहमी असे प्रश्‍न विचारीत रहावे (जिज्ञासा जागृत ठेवून चिंतन, मनन करीत राहावे) ॥9॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Who moveth singly and alone ? Who is brought forth to life again ? What is the remedy of cold ? What is the vast field for production ?

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    Meaning

    Who moves alone (by itself, self-lighted)? Who is born again (in another’s light)? What is the antidote of cold? What is the great field for the sowing of seeds and the great store for things?

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    Translation

    Tell me, who is he, that wanders alone; and who is he, that is born again? What is the remedy for freezing cold; and which is the extensive field? (1)

    Notes

    āvapanam, उप्यते अस्मिन् इति, वपनस्थानं, a field where seeds are sown.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ বিদ্বাংসঃ কিং কিং প্রষ্টব্যা ইত্যাহ ॥
    এখন বিদ্বান্দিগকে কী কী জিজ্ঞাসা করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে বিদ্বান্গণ ! আমরা তোমাকে এই জিজ্ঞাসা করি যে, (কঃ স্বিৎ) কে (একাকী) একাকী (চরতি) বিচরণ করে (উ) এবং (কঃ, স্বিৎ) কে (পুনঃ) বারবার (জায়তে) প্রকট হয় (কিম্, স্বিৎ) কী (হিমস্য) শীতের (ভেষজম্) ওষধ এবং (কিম্) কী (উ) তো (মহৎ) বৃহৎ (আবপনম্) বীজ বপন করিবার স্থান ॥ ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- উক্ত প্রশ্নসমূহের উত্তর পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে, ইহা জানা উচিত । মনুষ্যদিগের উচিত যে, সর্বদা এই প্রকার প্রশ্ন করিতে থাকে ॥ ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    কঃ স্বি॑দেকা॒কী চর॑তি॒ কऽউ॑ স্বিজ্জায়তে॒ পুনঃ॑ ।
    কিᳬंস্বি॑দ্ধি॒মস্য॑ ভেষ॒জং কিম্বা॒বপ॑নং ম॒হৎ ॥ ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    কঃ স্বিদিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । জিজ্ঞাসুর্দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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