यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 7
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - इन्द्रो देवता
छन्दः - निचृद्बृहती
स्वरः - मध्यमः
187
यद्वातो॑ऽअ॒पोऽअग॑नीगन्प्रि॒यामिन्द्र॑स्य त॒न्वम्। ए॒तस्तो॑तर॒नेन॑ प॒था पुन॒रश्व॒माव॑र्त्तयासि नः॥७॥
स्वर सहित पद पाठयत्। वातः॑। अ॒पः। अग॑नीगन्। प्रि॒याम्। इन्द्र॑स्य। त॒न्व᳖म्। ए॒तम्। स्तो॒तः॒। अ॒नेन॑। प॒था। पुनः॑। अश्व॑म्। आ। व॒र्त्त॒या॒सि॒। नः॒ ॥७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वातोऽअपोऽअगनीगन्प्रियामिन्द्रस्य तन्वम् । एतँ स्तोतरनेन पथा पुनरश्वमा वर्तयासि नः ॥
स्वर रहित पद पाठ
यत्। वातः। अपः। अगनीगन्। प्रियाम्। इन्द्रस्य। तन्वम्। एतम्। स्तोतः। अनेन। पथा। पुनः। अश्वम्। आ। वर्त्तयासि। नः॥७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यः कस्य सङ्गं कुर्य्यादित्याह॥
अन्वयः
हे स्तोतर्यथा शिल्पिजना इन्द्रस्य प्रियां तन्वं वात इव प्राप्य यद्यमपोऽगनीगँस्तथैतमश्वमनेन पथा त्वं प्राप्नोषि पुनर्नोस्मानावर्त्तयासि तं भवन्तं वयं सत्कुर्याम॥७॥
पदार्थः
(यत्) यं कलायन्त्राश्वम् (वातः) वायुः (अपः) जलानि (अगनीगन्) प्राप्नुवन्ति (प्रियाम्) कमनीयम् (इन्द्रस्य) विद्युतः (तन्वम्) विस्तृतं शरीरम् (एतम्) (स्तोतः) स्तावक (अनेन) (पथा) मार्गेण (पुनः) (अश्वम्) आशुगामिनम् (आ) (वर्त्तयासि) वर्त्तयेः (नः) अस्मान्॥७॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः! ये युष्मान् सुमार्गेण गमयन्ति, तत्सङ्गेन यूयं वायुविद्युदादिविद्यां प्राप्नुत॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य किसका संग करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (स्तोतः) स्तुति करनेहारे जन! जैसे शिल्पी लोग (इन्द्रस्य) बिजुली के (प्रियाम्) अति सुन्दर (तन्वम्) विस्तारयुक्त शरीर को (वातः) पवन के समान पाकर (यत्) जिस कलायन्त्र रूपी घोड़े और (अपः) जलों को (अगनीगन्) प्राप्त होते हैं, वैसे (एतम्) इस (अश्वम्) शीघ्र चलने हारे कलायन्त्र रूप घोड़े को (अनेन) उक्त बिजुली रूप (पथा) मार्ग से आप प्राप्त होते (पुनः) फिर (नः) हम लोगों को (आ, वर्त्तयासि) भलीभांति वर्त्ताते अर्थात् इधर-उधर ले जाते हो, उन आपका हम लोग सत्कार करें॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो! जो तुम को अच्छे मार्ग से चलाते हैं, उनके संग से तुम लोग पवन और बिजुली आदि की विद्या को प्राप्त होओ॥७॥
विषय
राजा को सन्मार्ग पर लेजाने के लिये उसके स्तोतृ नायक विद्वान् की नियुक्ति ।
भावार्थ
(यद्) जब (वातः) वायु के समान तीव्रगति या प्रचण्ड यह राजा (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् पुरुष के ( प्रियाम्) प्रिय (तन्वम् ) स्वरूप और (अपः) जल के समान शीतल स्वभाव वाले आप्त प्रजाओं को (अगनीगन् ) प्राप्त हो, तब हे (स्तोतः) विद्वन् ! (नः) हमारे ( एतम् ) इस (अश्वम् ) राष्ट्र के भोक्ता स्वामी को अश्ववत् (अनेन पथा) इस सन्मार्ग से ( आवर्त्तयासि ) ले आ । राजा वायुवत् प्रचण्ड होकर चले तब विद्वान् पुरुष उसको सौम्य मार्ग में प्रवृत्त करें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इन्द्रो देवता । निचृद् बृहती । मध्यमः ॥
विषय
अभ्यावर्तन
पदार्थ
१. इन्द्रियरूप घोड़े विषयों में जा भटकते हैं, उनको न भटकने देने के लिए आवश्यक है-(यत्) = कि (वातः) = [वा गतौ = अत् गतौ] आत्मा (अपः) = कर्मों को अगनीगन्= प्राप्त हो । अत सातत्यागमने' धातु से आत्मा शब्द बनता है और 'वा गतौ' से 'वातः' । एवं, वातः व आत्मा पर्याय हैं। ('वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तः शरीरम्') = में शरीर के प्रतिकूल 'वायुः ' आत्मा का ही वाचक है। २. इस कर्मशीलता के द्वारा (यत्) = जब यह (इन्द्रस्य) = इन्द्र के, परमैश्वर्यशाली प्रभु के (प्रियां तन्वम्) = प्रिय शरीर को प्राप्त करता है, अर्थात् कर्मशीलता के द्वारा शरीर को इस प्रकार स्वस्थ व तेजस्वी बनाता है कि यह शरीर प्रभु का प्रिय होता है । ३. हे (स्तोतः) = प्रभु के उपासक (नः एतं अश्वम्) = हमारे इस इन्द्रियरूप घोड़े को (अनेन पथा) = इस कर्मशीलता के मार्गों से (पुन:) = फिर (नः आवर्त्तयासि) = विषयों से व्यावृत्त करके हमारी ओर लानेवाला बन, इन्द्रियाश्व प्रभु की ओर चलनेवाले तभी होते हैं जब विषयों के बन्धनों से बद्ध नहीं होते। इनको विषयों से प्रत्यावृत्त व प्रत्याहृत करके ही हम आत्मतत्त्व का दर्शन किया करते हैं। उपनिषद् के शब्दों में- ('कश्चिद् धीरः प्रत्यगात्मानमैक्षदावृत्तचक्षुरमृतत्त्वमिच्छन्') = कोई एक-आध ही ऐसा धीर पुरुष होता है जो आवृत्त चक्षु होकर अन्तःस्थित आत्मतत्त्व को देखता है।
भावार्थ
भावार्थ- जीवात्मा वात-वायु क्रियाशील है। क्रियाशीलता से यह अपने इस शरीर को प्रभु का प्रिय बनाये रखता है। इस क्रियाशीलता के मार्ग से हमें इन्द्रियाश्वों को विषयों से व्यावृत्त करके आत्मतत्त्व का दर्शन करना चाहिए।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे तुम्हाला चांगल्या मार्गाकडे नेतात त्यांच्याकडून तुम्ही लोक वायू व विद्युत इत्यादींची विद्या प्राप्त करा.
विषय
माणसाने कोणाचा संग करावा या विषयी.-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (स्तोतः) स्तुती करण्यास योग्य विद्वान, ज्याप्रमाणे, शिल्पी वा कारीगर लोक (इन्द्रस्थ) विजेच्या (प्रियाम्) अतिप्रिय वा अत्युपयोगी (तन्वम्) विस्तारशील शरीराला (विजेच्या दूरगामी प्रवाहाला) (वातः) वायूप्रमाणे दूरगामी असलेला पाहून(यद्) जे कलायंत्र (वा मशीन, इंजिन) रूप घोड्याला आणि (अपः) पाण्याला (अगनीगन) प्राप्त करतात (यंत्राच्या सहाय्याने पाण्यातून विजेची निर्मिती करतात त्या त्याप्रमाणे (एवम्) या (अश्वम्) शीघ्रगामी कलायंत्ररूप घोड्याला (मोटार आदी वाहनाला) (अनेन) त्या विद्युतेच्या (पक्ष) मार्गाने साह्याने प्राप्त करून (पुनः) नंतर (नः) आपण आम्हा सर्वजनांसाठी (आ, वर्त्तयामसि) चांगल्या प्रकारे त्या विजेला वापरता, इकडून तिकडून घेऊन जाता. त्यामुळे आम्ही (नागरिकजणांनी) आपला सत्कार केला पाहिजे. ॥7॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. हे मनुष्यांनो, जे (वैज्ञानिक, अभियंता वा तांत्रिक ज्ञानी) लोक तुम्हाला चांगल्या सुख- सोयीच्या मार्गावर नेतात, (तुमच्यासाठी जीवनाच्या सुख-सोयींची व्यवस्था करतात) त्यांच्या संगतीत राहून तुम्हीदेखील वायु आणि विद्युतशक्तीची विद्या शिकून घ्या ॥7॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O laudable learned person, just as artisans control the beautiful diffused form of electricity, swift like the wind, and erect electrical contrivances worked with water, so do ye prepare with the aid of electricity a fast moving machine, that takes us from one place to the other.
Meaning
O man of the science-mantra, the celestial horse, mighty carrier, flies across the waters of the sky and the wondrous oceans of space on the wings of the winds. The same horse, by the same paths of energy, you bring us back and take us round.
Translation
May the fast-moving wind, carrying water vapours to the mid-space, bring back by the same path the rains to us. (1)
Notes
Vātaḥ, tempestuous wind. Apaḥ, waters. Aganigan, have carried. Tanvam, to the body. Anena pathā, by the same way. Āvartayāmasi, आवर्तय, may you bring back.
बंगाली (1)
विषय
পুনর্মনুষ্যঃ কস্য সঙ্গং কুর্য়্যাদিত্যাহ ॥
পুনঃ মনুষ্য কাহার সঙ্গ করিবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (স্তোতঃ) স্তুতি কারীগণ ! যেমন শিল্পীগণ (ইন্দ্রস্য) বিদ্যুতের (প্রিয়াম্) অতিসুন্দর (তন্বম্) বিস্তারযুক্ত শরীরকে (বাতঃ) পবনের সমান প্রাপ্ত হইয়া (য়ৎ) যে কলা যন্ত্ররূপী অশ্ব ও (অপঃ) জলকে (অগনীগন্) প্রাপ্ত হয়, তদ্রূপ (এতম্) এই (অশ্বম্) শীঘ্র গমনশীল কলাযন্ত্ররূপ অশ্বকে (অনেন) উক্ত বিদ্যুৎরূপ (পথা) মার্গ দ্বারা আপনি প্রাপ্ত হয়েন (পুনঃ) আবার (নঃ) আমাদিগকে (আ, বর্ত্তয়াসি) ভালমত ব্যবহার করেন অর্থাৎ ইতস্ততঃ লইয়া যান, সেই আপনাদের আমরা সৎকার করি ॥ ৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্য ! যাহারা তোমাদিগকে সুমার্গে চালনা করে তাহাদের সঙ্গ দ্বারা তোমরা বায়ু ও বিদ্যুৎ ইত্যাদির দ্বারা বিদ্যা প্রাপ্ত হও ॥ ৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়দ্বাতো॑ऽঅ॒পোऽঅগ॑নীগন্প্রি॒য়ামিন্দ্র॑স্য ত॒ন্ব᳖ম্ ।
এ॒তᳬंস্তো॑তর॒নেন॑ প॒থা পুন॒রশ্ব॒মা ব॑র্ত্তয়াসি নঃ ॥ ৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়দ্বাত ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । নিচৃদ্বৃহতী ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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