अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 127/ मन्त्र 7
सूक्त -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
राज्ञो॑ विश्व॒जनी॑नस्य॒ यो दे॒वोऽमर्त्याँ॒ अति॑। वै॑श्वान॒रस्य॒ सुष्टु॑ति॒मा सु॒नोता॑ परि॒क्षितः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठराज्ञ॑: । विश्व॒जनी॑नस्य । य: । दे॒व: । मर्त्या॒न् । अति॑ ॥ वै॒श्वा॒न॒रस्य॒ । सुष्टु॑ति॒म् । आ । सु॒नोत । परि॒क्षित॑: ॥१२७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
राज्ञो विश्वजनीनस्य यो देवोऽमर्त्याँ अति। वैश्वानरस्य सुष्टुतिमा सुनोता परिक्षितः ॥
स्वर रहित पद पाठराज्ञ: । विश्वजनीनस्य । य: । देव: । मर्त्यान् । अति ॥ वैश्वानरस्य । सुष्टुतिम् । आ । सुनोत । परिक्षित: ॥१२७.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 127; मन्त्र » 7
विषय - विश्वजनीन राजा
पदार्थ -
१. उस (राज्ञः) = सम्पूर्ण संसार का शासन [regulation] करनेवाले, (विश्वजनीनस्य) = सब मनुष्यों का हित करनेवाले, (वैश्वानरस्य) = सब मनुष्यों को उन्नति-पथ पर ले-चलनेवाले, (परिक्षितः) = समन्तात् निवास व गतिवाले [सर्वव्यापक] प्रभु की (सुष्टुतिम्) = उत्तम स्तुति को (आसुनोत) = उत्पन्न करो। प्रभु के गुणों का गायन करो। २. उन प्रभु का स्तवन करो (यः) = जोकि (देव:) = प्रकाशमय है तथा (अमान् अति) = अमरणधर्मा देवों को लाँघकर स्थित हैं। सब देवों को देवत्व प्राप्त करानेवाले वे ही 'महादेव' हैं-देवाधिदेव हैं।
भावार्थ - हम संसार के शासक, सबके हितकारी, सबको उन्नति-पथ पर ले-चलनेवाले, सर्वव्यापक प्रभु का स्मरण करें। वे प्रभु ही प्रकाशमय है, देवों के देव 'महादेव' हैं। सबको देवत्व प्राप्त करानेवाले हैं।
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