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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 137

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 137/ मन्त्र 12
    सूक्त - सुकक्षः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त १३७

    तमिन्द्रं॑ वाजयामसि म॒हे वृ॒त्राय॒ हन्त॑वे। स वृषा॑ वृष॒भो भु॑वत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । इन्द्र॑म् । वा॒ज॒या॒म॒सि॒ । म॒हे । वृ॒त्राय॑ । हन्त॑वे ॥ स: । वृषा॑ । वृ॒ष॒भ: । भु॒व॒त् ॥१३७.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमिन्द्रं वाजयामसि महे वृत्राय हन्तवे। स वृषा वृषभो भुवत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । इन्द्रम् । वाजयामसि । महे । वृत्राय । हन्तवे ॥ स: । वृषा । वृषभ: । भुवत् ॥१३७.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 12

    पदार्थ -
    व्याख्या अथर्व० २०.४७.१-३ पर द्रष्टव्य है। प्रभु-स्तवन करता हुआ यह प्रभु का प्रिय बनता है। यह 'वत्स' कहलाता है। यह 'वत्स' ही अगले सूक्त का ऋषि है -

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