Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 15

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 15/ मन्त्र 6
    सूक्त - अथर्वा देवता - मरुद्गणः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - वृष्टि सूक्त

    अ॒भि क्र॑न्द स्त॒नया॒र्दयो॑द॒धिं भूमिं॑ पर्जन्य॒ पय॑सा॒ सम॑ङ्धि। त्वया॑ सृ॒ष्टं ब॑हु॒लमैतु॑ व॒र्षमा॑शारै॒षी कृ॒शगु॑रे॒त्वस्त॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । क्र॒न्द॒ । स्त॒नय॑ । अ॒र्दय॑ । उ॒द॒ऽधिम् । भूमि॑म् । प॒र्ज॒न्य॒ । पय॑सा । सम् । अ॒ङ्धि॒ । त्वया॑ । सृ॒ष्टम् । ब॒हु॒लम् । आ । ए॒तु॒ । व॒र्षम् । आ॒शा॒र॒ऽए॒षी । कृ॒शऽगु॑: । ए॒तु॒ । अस्त॑म् ॥१५.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि क्रन्द स्तनयार्दयोदधिं भूमिं पर्जन्य पयसा समङ्धि। त्वया सृष्टं बहुलमैतु वर्षमाशारैषी कृशगुरेत्वस्तम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । क्रन्द । स्तनय । अर्दय । उदऽधिम् । भूमिम् । पर्जन्य । पयसा । सम् । अङ्धि । त्वया । सृष्टम् । बहुलम् । आ । एतु । वर्षम् । आशारऽएषी । कृशऽगु: । एतु । अस्तम् ॥१५.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 15; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. हे (पर्जन्य) = मेघ! तू (अभिक्रन्द) = चारों ओर से गर्जना करनेवाला हो। (स्तनय) = विद्युत् की कड़क को उत्पन्न कर, (उदधि अर्दय) = [अर्द याचने] समुद्र से जल की याचना कर। तू समुद्र से जल प्राप्त करनेवाला हो और (भूमिम्) = इस पृथिवी को (पयसः) = जल से (समंग्धि) = समक्त संसिक्त कर। २. (त्वया सृष्टम्) = तुझसे उत्पन्न की हुई बहुलं (वर्षम्) = खूब वर्षा (आ एतु) = यहाँ भूमि पर (समन्तात्) = प्राप्त हो। (कृशगु:) = वृष्टि के अभाव में घास के न होने से कृश गौओंवाला यह किसान (आशार एषी) = धारा-सम्पात को चाहनेवाला, खूब वृष्टि होने पर प्रसन्न मन से (अस्तम् एतु) = घर को आये। मूसलधार वर्षा में बाहर खड़ा होना सम्भव ही न हो।

    भावार्थ -

    मूसलधार वृष्टि होकर भूमि तृणसंकुल हो जाए। गौ आदि पशु पर्याप्त चारे को प्राप्त करके कृश न रहें, आप्यायित शरीरोंवाले हो जाएँ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top