Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 15 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मरुद्गणः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - वृष्टि सूक्त
    75

    अ॒भि क्र॑न्द स्त॒नया॒र्दयो॑द॒धिं भूमिं॑ पर्जन्य॒ पय॑सा॒ सम॑ङ्धि। त्वया॑ सृ॒ष्टं ब॑हु॒लमैतु॑ व॒र्षमा॑शारै॒षी कृ॒शगु॑रे॒त्वस्त॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । क्र॒न्द॒ । स्त॒नय॑ । अ॒र्दय॑ । उ॒द॒ऽधिम् । भूमि॑म् । प॒र्ज॒न्य॒ । पय॑सा । सम् । अ॒ङ्धि॒ । त्वया॑ । सृ॒ष्टम् । ब॒हु॒लम् । आ । ए॒तु॒ । व॒र्षम् । आ॒शा॒र॒ऽए॒षी । कृ॒शऽगु॑: । ए॒तु॒ । अस्त॑म् ॥१५.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि क्रन्द स्तनयार्दयोदधिं भूमिं पर्जन्य पयसा समङ्धि। त्वया सृष्टं बहुलमैतु वर्षमाशारैषी कृशगुरेत्वस्तम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । क्रन्द । स्तनय । अर्दय । उदऽधिम् । भूमिम् । पर्जन्य । पयसा । सम् । अङ्धि । त्वया । सृष्टम् । बहुलम् । आ । एतु । वर्षम् । आशारऽएषी । कृशऽगु: । एतु । अस्तम् ॥१५.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 15; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वृष्टि की प्रार्थना और गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (पर्जन्य) हे मेघ ! तू (अभि) सब ओर (क्रन्द) गड़गड़ कर, (स्तनय) गरज, (उदधिम्) समुद्र को (अर्दय) हिलादे, (भूमिम्) भूमि (पयसा) जलसे (सम्अङ्धि) भरदे। (त्वया) तुझ करके (सृष्टम्) भेजा हुआ (बहुलम्) बहुत पदार्थ लानेवाला (वर्षम्) वृष्टि जल (ऐतु) आवे, (आशारैषी) शरण चाहनेवाला, (कृशगुः) दुबली गौ बैलवाला किसान (अस्तम्) अपने घर (एतु) जावे ॥६॥

    भावार्थ

    पृथिवी पर वृष्टि होने से अनेक पदार्थ उपजते हैं, तब किसान आनन्दपूर्वक थके दुर्बल पशुओं को चराकर घर ले जाते हैं ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(अभि) अभितः (क्रन्द) शब्दं कुरु (स्तनय) घोषय। गर्ज (अर्दय) पीडय (उदधिम्) जलधिम् (भूमिम्) (पर्जन्य) हे मेघ (पयसा) वृष्टिजलेन (सम् अङ्धि) अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु। समक्तो संसिक्तां कुरु (त्वया) (सृष्टम्) प्रेरितम् (बहुलम्) अ० ३।१४।६। बहूनर्थान् लातीति, बहु+ला दानादानयोः-क। बहुपदार्थप्रापकम् (आ एतु) आगच्छतु (वर्षम्) वृष्टिजलम् (आशारैषी) शॄ वायुवर्णनिवृत्तेषु। वा० पा० ३।३।२१। इति आङ्+शॄ हिंसायाम्-घञ्। आशृणाति दुःखम् आशारः शरणम्। आशारमिच्छतीति, इष-णिनि। शरणेच्छुः (कृशगुः) गोस्त्रियोरुपसर्जनस्य। पा० १।२।४८। इति ह्रस्वः। कृशा दुर्बला गावः पशवो यस्य तथाविधिः कर्षकः (एतु) गच्छतु (अस्तम्) हसिमृग्रिण्०। उ० ३।८६। अस गतिदीप्त्यादानेषु-तन्। गृहम्-निघ० ३।४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मूसलधार वृष्टि

    पदार्थ

    १. हे (पर्जन्य) = मेघ! तू (अभिक्रन्द) = चारों ओर से गर्जना करनेवाला हो। (स्तनय) = विद्युत् की कड़क को उत्पन्न कर, (उदधि अर्दय) = [अर्द याचने] समुद्र से जल की याचना कर। तू समुद्र से जल प्राप्त करनेवाला हो और (भूमिम्) = इस पृथिवी को (पयसः) = जल से (समंग्धि) = समक्त संसिक्त कर। २. (त्वया सृष्टम्) = तुझसे उत्पन्न की हुई बहुलं (वर्षम्) = खूब वर्षा (आ एतु) = यहाँ भूमि पर (समन्तात्) = प्राप्त हो। (कृशगु:) = वृष्टि के अभाव में घास के न होने से कृश गौओंवाला यह किसान (आशार एषी) = धारा-सम्पात को चाहनेवाला, खूब वृष्टि होने पर प्रसन्न मन से (अस्तम् एतु) = घर को आये। मूसलधार वर्षा में बाहर खड़ा होना सम्भव ही न हो।

    भावार्थ

    मूसलधार वृष्टि होकर भूमि तृणसंकुल हो जाए। गौ आदि पशु पर्याप्त चारे को प्राप्त करके कृश न रहें, आप्यायित शरीरोंवाले हो जाएँ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (पर्जन्य) हे मेघ ! (अभीक्रन्द) हमारी ओर आक्रन्दन कर, (स्तनय) गर्ज, (उदधिम्) समुद्र को (अर्दय) पीड़ित कर, (भूमिम्) भूमि को (पयसा) जल द्वारा (समङ्धि) संसिक्त कर। (त्वया) तुझ द्वारा (सृष्टम्) प्रेरित (बहुलम्) प्रभूत (वर्षम्) वर्षा जल (ऐतु आ एतु) हमें प्राप्त हो, (आशारैषी) आशाओं अर्थात दिशाओं [के भेदों] को पूर्णतया नष्ट करता हुआ, (कृशगुः) क्षीणरश्मि हुआ सूर्य (अस्तम् एतु) अस्त हो।

    टिप्पणी

    [वर्षाऋतु में यद्यपि जल अर्थात् मेघ, समुद्र से उठते हैं, परन्तु वे बरसते हैं पृथिवी पर, नकि समुद्र पर, अतः वर्षाभाव से समुद्र मानो पीड़ित१ होता है। आशारैषी=सूर्य मानो बहुल वर्षा के कारण, पर्जन्यों द्वारा, दिशाओं को पूर्णतया आच्छादित कर, दिग्भेद को नष्ट कर देता है और स्वयं भी पर पर्जन्याच्छादित रहने के कारण क्षीणरश्मि हुआ, अस्त होता है। कृशगुः= कृश + गुः (गौओं, रश्मियोंवाला। गाव:= रश्मयः। गाव: रश्मिनाम (निघं० १।५)। रैषी=रिष हिसांयाम् (दिवादिः)। आशारैषी=आशा+आ+रिस+ घञ् + इनिः।] [१. अथवा वर्षा ऋतु में सूर्य की प्रखर रश्मियों द्वारा पीड़ित होकर समुद्र उछलता है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वृष्टि की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (पर्जन्य) मेघ ! तू (अभिक्रन्द) गर्जना कर, (बिजली कड़का, (उदधिं) जल को घरने वाले अपने स्वरूप को (अर्दय) पीड़ित कर, जिससे खूब जल बरसे, और (पयसा) अपने जल से (भूमिं समङ्धि) भूमि को सींच डाल। (त्वया सृष्टं वर्षं) तेरे से बरसाया गया जल (बहुलं) बहुत सारा (एतु) नीचे आवे। (आ-शारैषी) आशार = चारों तरफ से जल प्रपात की इच्छा करने वाला (कृशगुः) कृश-दुबले बैलों वाला, अथवा गौ=भूमि को कर्षण करने अर्थात् हल बाहने वाला किसान अपनी भूमि को हल बाह कर (अस्तं एतु) अपने घर पर आ जाय।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मरुतः पर्जन्यश्च देवताः। १, २, ५ विराड् जगत्याः। ४ विराट् पुरस्ताद् वृहती । ७, ८, १३, १४ अनुष्टुभः। ९ पथ्या पंक्तिः। १० भुरिजः। १२ पञ्चपदा अनुष्टुप् गर्भा भुरिक्। १५ शङ्कुमती अनुष्टुप्। ३, ६, ११, १६ त्रिष्टुभः। षोडशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Song of Showers

    Meaning

    Thunder and roar, O cloud, shake the flood of the firmament into showers, and bless the earth with life giving rain. Let the showers released by you fall and flow profusely, and let the hopeful farmer go home happy.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Lord of rain, may you roar aloud; make the clouds thunder; agitate the ocean, and drench the earth with water. Generated by you, may the rain-cloud come in plenty (abundance). May the cow-herd of lean cows, longing for torrential rains, speed up for his home. (May the sun with feeliled rays set down seeking refuge here.)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the cloud roar and thunder, and set the sea in agitation, let it moisten the earth with its rain. Let the plenteous showers rained by cloud come to people desiring the rush of water and the peasant possessing lean cows go to his home for shelter.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Cloud, roar, thunder, set the sea in agitation, bedew the ground with thy sweet rain. Send down plenteous rainy water. Let the cultivator, desiring for rain from all sides, plough his field and come home!

    Footnote

    An agriculturist ploughs his field when it becomes wet through rain.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(अभि) अभितः (क्रन्द) शब्दं कुरु (स्तनय) घोषय। गर्ज (अर्दय) पीडय (उदधिम्) जलधिम् (भूमिम्) (पर्जन्य) हे मेघ (पयसा) वृष्टिजलेन (सम् अङ्धि) अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु। समक्तो संसिक्तां कुरु (त्वया) (सृष्टम्) प्रेरितम् (बहुलम्) अ० ३।१४।६। बहूनर्थान् लातीति, बहु+ला दानादानयोः-क। बहुपदार्थप्रापकम् (आ एतु) आगच्छतु (वर्षम्) वृष्टिजलम् (आशारैषी) शॄ वायुवर्णनिवृत्तेषु। वा० पा० ३।३।२१। इति आङ्+शॄ हिंसायाम्-घञ्। आशृणाति दुःखम् आशारः शरणम्। आशारमिच्छतीति, इष-णिनि। शरणेच्छुः (कृशगुः) गोस्त्रियोरुपसर्जनस्य। पा० १।२।४८। इति ह्रस्वः। कृशा दुर्बला गावः पशवो यस्य तथाविधिः कर्षकः (एतु) गच्छतु (अस्तम्) हसिमृग्रिण्०। उ० ३।८६। अस गतिदीप्त्यादानेषु-तन्। गृहम्-निघ० ३।४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top