अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 7
सं वो॑ऽवन्तु सु॒दान॑व॒ उत्सा॑ अजग॒रा उ॒त। म॒रुद्भिः॒ प्रच्यु॑ता मे॒घा वर्ष॑न्तु पृथि॒वीमनु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । व॒: । अ॒व॒न्तु॒ । सु॒ऽदान॑व: । उत्सा॑: । अ॒ज॒ग॒रा: । उ॒त । म॒रुत्ऽभि॑: । प्रऽच्यु॑ता: । मे॒घा: । वर्ष॑न्तु । पृ॒थि॒वीम् । अनु॑ ॥१५.७॥
स्वर रहित मन्त्र
सं वोऽवन्तु सुदानव उत्सा अजगरा उत। मरुद्भिः प्रच्युता मेघा वर्षन्तु पृथिवीमनु ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । व: । अवन्तु । सुऽदानव: । उत्सा: । अजगरा: । उत । मरुत्ऽभि: । प्रऽच्युता: । मेघा: । वर्षन्तु । पृथिवीम् । अनु ॥१५.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वृष्टि की प्रार्थना और गुणों का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्यों !] (सुदानवः) महा दानी, (अजगराः) अजगर [समान स्थूल आकारवाले] (उत्साः) स्रोते (वः) तुम्हें (उत) अत्यन्त करके (सम्) यथावत् (अवन्तु) तृप्त करें। (मरुद्भिः) पवन से (प्रच्युताः) चलाये गये (मेघाः) मेघ (पृथिवीम्) पृथिवी पर (अनु) अनुकूल (वर्षन्तु) बरसें ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य मेह के समान परस्पर उपकार करें ॥७॥
टिप्पणी
७−(सम्) सम्यक्। एकीभूय (वः) युष्मान् हे जनाः (अवन्तु) तर्पयन्तु (सुदानवः) म० २। महादातारः (उत्साः) अ० १।१५।३। स्रोतांसि। कूपाः-निघ० ३।२३। (अजगराः) अज+गॄ निगरणे-अच्। अजान् गतिशीलान् जन्तून् गिरन्ति भक्षयन्ति ये। बृहत्सर्पाः। तद्वत् स्थूलाकाराः (उत) अत्यर्थम्। एव। (मरुद्भिः) वायुभिः (प्रच्युताः) प्रेरिताः (मेघाः) मिह सेचने-अच्, कुत्वम्। वारिवाहाः (वर्षन्तु) सिञ्चन्तु (पृथिवीम्) (अनु) अनुकूलम् ॥
विषय
मेघों से उत्पन्न जल-प्रवाह
पदार्थ
१. हे (सुदानव:) = शोभन दान करनेवाले मनुष्यो! ये (उत्सा:) = जलों के प्रवाह (उत अजगरा:) = जोकि अजगरों के समान स्थूल आकारवाले प्रतीत हो रहे हैं [उत वितर्के], वे (व:) = तुम्हें (समवन्तु) = सम्यक् रक्षित करें। २. (मरुद्भिः) = वायुओं से (प्रच्युता:) = प्रेरित हुए-हुए (मेघा:) = बादल (पृथिवीं अनु वर्षन्तु) = पृथिवी पर अनुकूलता से वर्षा करें।
भावार्थ
हम अग्निहोत्र में सम्यक् आहुति देनेवाले हों-सुदानु बनें, तब मेघों से वृष्टि होकर स्थूल जल-प्रवाह हमारा कल्याण करनेवाले होंगे।
भाषार्थ
(सुदानवः) उत्तम जलप्रदाता मानसून वायुएं (वः) तुम्हारी (अवन्तु) रक्षा करें, (उत) तथा (अजगरा:) अजगर साँप के सदृश (उत्साः) प्रवाहित होते हुए जलप्रवाह तुम्हारी रक्षा करें। (मरुद्भिः) मानसून वायुओं द्वारा (प्रच्युताः) गिरे (मेघाः) मेघ (पृथिवीमनु) पृथ्वी के अनुकूल (वर्षन्तु) बरसें।
टिप्पणी
[अजगरा:= नदियों में जल, टेढ़े मांगों में प्रवाहित होते हुए, अजगर के सदृश गति करते हुए प्रतीत होते हैं। अनु= अनुकूल, न कम, न अत्यधिक, अपि तु आवश्यकतानुसार बरसें।]
विषय
वृष्टि की प्रार्थना।
भावार्थ
हे मनुष्यो ! (वः) आप लोगों को (सुदानवः) कल्याणमय जल का प्रदान करने वाले, (उत अजगराः) और अजगर के समान स्थूल अथवा अज-सूर्य को निगल जाने वाले, मेघ (उत्साः) जल के महा स्रोत, जल-धाराएं (वः) आप लोगों की (अवन्तु) रक्षा करें। और (मरुद्भिः) वायुओं द्वारा (प्र-च्युताः) प्रेरित (मेघाः) मेघगण (पृथिवीम् अनु) पृथिवी पर (वर्षन्तु) वर्षा करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मरुतः पर्जन्यश्च देवताः। १, २, ५ विराड् जगत्याः। ४ विराट् पुरस्ताद् वृहती । ७, ८, १३, १४ अनुष्टुभः। ९ पथ्या पंक्तिः। १० भुरिजः। १२ पञ्चपदा अनुष्टुप् गर्भा भुरिक्। १५ शङ्कुमती अनुष्टुप्। ३, ६, ११, १६ त्रिष्टुभः। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Song of Showers
Meaning
Let the mighty bounteous showers save you from drought and promote you to prosperity. Let the clouds impelled and propelled by the winds rain down on earth in showers according to the needs of the season.
Translation
May the bounteous water-streams, moving like goat swallowing pythons, please you well, O men. May the rain bearing clouds, the maruts, by stormy winds, drench the earth thoroughly.
Translation
O people ! let the bounteous, coiling serpent-like torrential pours of rain keep you safe and the clouds agitated by the winds pour down rain upon the earth.
Translation
Let the bounteous springs and clouds tend you well. Urged by the winds let the clouds pour down their rain upon the earth.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(सम्) सम्यक्। एकीभूय (वः) युष्मान् हे जनाः (अवन्तु) तर्पयन्तु (सुदानवः) म० २। महादातारः (उत्साः) अ० १।१५।३। स्रोतांसि। कूपाः-निघ० ३।२३। (अजगराः) अज+गॄ निगरणे-अच्। अजान् गतिशीलान् जन्तून् गिरन्ति भक्षयन्ति ये। बृहत्सर्पाः। तद्वत् स्थूलाकाराः (उत) अत्यर्थम्। एव। (मरुद्भिः) वायुभिः (प्रच्युताः) प्रेरिताः (मेघाः) मिह सेचने-अच्, कुत्वम्। वारिवाहाः (वर्षन्तु) सिञ्चन्तु (पृथिवीम्) (अनु) अनुकूलम् ॥
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